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एनिमल का केमिकल लोचा, गूंगे बॉबी देओल जब बहरे रणबीर कपूर से भिड़े

ByADMIN

Dec 2, 2023 ##prompt times

2  दिसंबर 2023 ! रणबीर कपूर की फिल्म एनिमल वीकेंड पर अच्छा बिजनेस कर रही है लेकिन इसकी कहानी, डायरेक्शन और एडिटिंग से लेकर इसके कई सीन पर बहस शुरू हो गई है. किसी फिल्म में आखिर कितनी हिंसा होनी चाहिए? क्या महिलाएं केवल चुंबन और शारीरिक संबंध के लिए होती हैं? जैसा कि इस फिल्म में रश्मिका मंदाना के रोल या अन्य महिला किरदारों के माध्यम से दिखाया गया है. गीतांजलि के किरदार में रश्मिका मंदाना रणविजय बने रणबीर कपूर की कई बुरी और सनकी आदतों का विद्रोह तो करती है लेकिन अंत में पति के समक्ष न्योछावर होना ही उसके किरदार की नियति है.

सिनेमा हॉल में लाखों दर्शकों और तमाम फिल्म समीक्षकों के बीच सवाल और बहस इस बात पर भी है कि फिल्म के ट्रेलर में बॉबी देओल को जिस फ्रेम में जैसा दिखाया गया है वह तीन घंटे इक्कीस मिनट की पूरी पिक्चर में करीब 12-15 मिनट तक ही क्यों सिमट गया? बाद में पता ये भी चला कि अबरार हक बने बॉबी देओल बोल नहीं सकता. वह गूंगा है और स्कॉटलैंड में रहता है. वह अय्याश किरदार है और नृशंस हत्यारा भी. फिल्म में रणबीर कपूर भी कम सनकी नहीं है. वह बात-बात पर गोली चलाता है तो बॉबी बात-बात पर चाकू से किसी का भी खून कर देता है.
जाहिर है बॉबी देओल के रोल में बहुत सारे कलर थे, बहुत सारे शेड्स थे लेकिन उसे इतना छोटा कर दिया गया कि दर्शकों की तड़प बनी रह गई. सिनेमा हॉल के भीतर ज्यादातर लोगों में इस बात को लेकर निराशा देखी गई कि बॉबी देओल का रोल इतना कम क्यों था? लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि छोटा और गूंगा किरदार होकर भी बॉबी देओल ने अबरार हक के किरदार में अपनी-सी छाप छोड़ी. हां, यह सही है अगर उनका रोल थोड़ा और बड़ा होता तो वह एनिमल की एक यूएसपी बनकर उभरते लेकिन शायद डायरेक्टर-राइटर संदीप रेड्डी ने लीड हीरो रणबीर कपूर के सामने उन्हें इस रूप में उभारना नहीं चाहा होगा.
इंटरवल के काफी देर के बाद बॉबी देओल के दो सबसे खास सीन आते हैं. एक सीन में वह शादी कर रहा है. लेकिन इस दौरान भी एक शख्स को गले में चाकू गोदकर वह उसकी हत्या कर देता है फिर खून से लथपथ पत्नी के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है. महफिल में लोग हक्का बक्का रह जाते हैं. महज दो मिनट के इस सीन में इमोशन के ज्वार भाटा को बॉबी के चेहरे पर बहुत ही बारीकी से देखा जा सकता है. उसकी खूनी आंखें, उसके चेहरे पर उभरी क्रूरता की स्याह रेखाएं और बिखरी हुई दाढ़ी सब चीख चीख कर जैसे संवाद बोलती हैं गोयाकि वह गूंगा किरदार है लेकिन उसकी बॉडी लेंग्वेज डायलॉग चिल्ला रही है.
इसके बाद बॉबी देओल को एक और अहम सीन दिया गया है जिसमें वह रणबीर कपूर के साथ फाइट कर रहे हैं. वैसे तो यह सीन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रेसलिंग से कम नहीं लेकिन दोनों एक्टर ने यहां दर्शकों को बेहतरीन तरीके से एंटरटेन किया है. दिलचस्प बात ये कि जिस वक्त दोनों एक-दूसरे पर मुक्के बरसा रहे हैं, उस वक्त रणबीर कपूर बहरे हो चुके हैं तो बॉबी देओल पहले ही गूंगे हैं. एक सुन नहीं सकता, दूसरा बोल नहीं सकता और दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे हैं. यह सीन काफी रोंगटे खड़े कर देने वाला है. कहना गलत नहीं होगा बतौर हीरो रणबीर कपूर काफी प्रभावशाली लगे हैं लेकिन गूंगे बॉबी देओल का हर एक्सप्रेशन बोलता हुआ प्रतीत होता है.
फिल्म में महिलाओं को लेकर नजरिया आधुनिक नहीं है. पुरुषवादी सोच हावी है. चाहे वह गीतांजलि सिंह के तौर पर रश्मिका मंदाना का किरदार हो या जोया के रूप में तृप्ति डीमरी का रोल. यहां तक कि स्वस्तिक कंपनी के परिवार में रणविजय सिंह की मां और दोनों बहनों के रोल भी बेहद परंपरावादी सांचे के अंदर हैं. यह एक कॉरपोरेट घराना है यहां महिलाएं ड्रेस और मेकअप से तो सुसज्जित हैं लेकिन उनकी अपनी कोई अहमियत नहीं. घर में वही होता है जो पिता बलबीर सिंह बने अनिल कपूर चाहते हैं या फिर अपने पिता को हीरो मानने वाला उसके स्नेह और दुलार से महरूम रहने वाला और इसी वजह से सनकी बन जाने वाला रणविजय सिंह चाहता है.

कई बार डायरेक्टर अपने मूवी के प्रोडक्ट को एक्ट्राऑर्डिनरी बनाने की कोशिश में जरूरत से ज्यादा एक्सपेरिमेंट कर लेते हैं. एनिमल के साथ भी यही होता दिखता है. कहानी, पटकथा के मुकाबले संवाद ज्यादा बेहतर और दमदार है. देखें तो बाप-बेटे के टकराव की कहानी हिंदी फिल्मों में कई बार देखी जा चुकी है. ‘बॉबी’ का व्यस्त बिजनेसमैन प्राण और कमसिन प्रेमिका के साथ घर से भागने वाला उनका बेटा ऋषि कपूर, ‘शक्ति’ में दो विपरीत विचारों पर दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का टकराव, वहीं ‘शराबी’ में एक बार फिर प्राण अपनी ‘बॉबी’ वाली ही व्यस्त बिजनेसमैन पिता की भूमिका को रिपीट करते हैं और सामने होते हैं नशे में धुत् बेटा के तौर पर अमिताभ बच्चन.

तो एनिमल के बाप-बेटे के इस रिश्ते में एक्स्ट्रा क्या है? वास्तव में एनिमल में डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने यह एक्ट्राऑर्डिनरी दिखाने की कोशिश की है कि जो पिता अत्यधिक व्यस्तता के चलते अपने बेटे को दुलार और स्नेह नहीं दे पाते उसका अंजाम क्या हो सकता है.अब तक ऐसे हालात का शिकार बेटा पर्दे पर आवारा, जुआरी, लुटेरा, शराबी, गली का बदमाश तो हो जाता रहा है, लेकिन एनिमल में उसने बंदूक उठा ली है, क्रोधी, सनकी और खूनी हो गया है, उसके ब्लड में तमाम दवाइयों के जरिए एनिमल का केमिकल समा गया है और यही उसका सबसे बड़ा लोचा बन गया है.

संदीप रेड्डी यह बताना चाहते हैं कि जो बेटा पिता को हीरो मानता है अगर उसे उसका वात्सल्य नहीं मिलता तो वह रणविजय सिंह की तरह की टूटकर बिखरकर बंदूक उठा ले सकता है.रणबीर कपूर ने इस खूनी किरदार को बहुत ही बेहतरीन तरीके से प्ले किया है. हां यहां ‘संजू’ और ‘वास्तव’ के संजय दत्त वाली छवि बार-बार झलकती है लेकिन रणबीर कपूर की ये एक्टिंग यादगार मानी जाएगी.

सोर्स :- ” TV9 भारतवर्ष    

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