नवा शहर की जसपाल कौर (51) तड़के पांच बजे मुरथल से पैदल चलती हुई सिंधु बॉर्डर तक पहुंची हैं। इस ठंड में जसपाल कौर 20 किलोमीटर की यह दूरी पैदल चलकर तय की हैं। जसपाल कौर के साथ दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं है। बुलंद हौंसलो वाली जसपाल कहती हैं कि मैं यहां सिर्फ रोटी बनाने नही आई हूँ। किसानों के अलावा अब मजदूर, कलाकार और खिलाड़ियों से आर्थिक और सामाजिक मदद मिलने से आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। वहीं महिलाएं भी आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भाग ले रही हैं।
महिलाएं आंदोलन के हर मोड़ पर हैं। वो मंच पर हैं। खाने पीने के सामान की व्यवस्था संभाल रही हैं। प्रदर्शन में शामिल हैं। पंजाब के बठिंडा से आई हरिंदर बिंद अपनी कार से पूरे मार्ग पर व्यवस्थाओं का जायजा लेते हुए आई हैं। वो पहुंचने के कुछ देर बाद ही सिंधु बॉर्डर पर विरोध प्रदर्शन में शामिल होती हैं। हरिंदर मुखर हैं और पत्रकारों से प्रबल आत्मविश्वास से बात करती हैं। वो बताती हैं, ‘आज हमें खलिस्तानी बताया जा रहा है जबकि मेरे पिता मेघराज भक्तुआना का 30 साल पहले खालिस्तान समर्थकों ने कत्ल कर दिया था।’ अब यह किसान यूनियन उग्राहां की सचिव हैं और पंजाब की महिलाओं को इस आंदोलन से जोड़ने में भूमिका निभा रही हैं। वो कहती हैं, ‘हम दिहाड़ी मजदूर लगते हैं। हम यहाँ अपने बच्चों को छोड़कर सर्दी में खुले आसमान के नीचे अपने हक़ के लिए हैं।’
टिकरी बॉर्डर पर मंच के ठीक बगल में बैठी जसबीर कौर क्लर्क के पद से रिटायर होने के बाद किसान यूनियन से जुड़ गईं है। इनका बेटा सिंघू बार्डर पर धरना दे रहा है। आंदोलन की फंडिंग से लेकर मंच संचालन की व्यवस्था जसबीर कौर ही तय कर रही हैं। यहां गुरमेल कौर जैसी कई बुजुर्ग महिलाएं भी हैं, जो किसी संगठन से तो जुड़ी नहीं, लेकिन गांव से अपने जत्थे के साथ आंदोलनकारियों का हौसला बढ़ाने आई हैं।
दिल्ली में किसानों का प्रदर्शन मुख्यत: तीन मुख्य जगह पर चल रहा है। इनमें महिलाओं की सबसे अधिक संख्या सिंघु बॉर्डर पर है। सिंघु बॉर्डर पर तो यह महिलाएं सिस्टम चला रही हैं। सिम्मी सहोता कहती हैं, ‘हम जब एक परिवार हैं तो सुख दुख भी एक है। अब हम घर बैठ कर नहीं रह सकते। मिट्टी को हम हमेशा जान से ज्यादा तरज़ीह दी है। घर रहकर भी क्या करना है, हम हर मुश्किल में अपने परिवार के साथ हैं।
प्रदर्शनकारी प्रभजोत कौर कहती हैं, ‘हमें उम्मीद है कि सरकार को हमारे आगे झुकना ही पड़ेगा, क्योंकि अंदर से सब महीनों तक लड़ने का इरादा बनाकर आए हैं।’ प्रभजोत बताती हैं कि यहां सब दस महीने का राशन साथ लेकर आए हैं, जिसे इन्होंने अभी तक छुआ भी नहीं है। आंदोलन के समर्थन के लिए लगातार लोग मदद कर रहे हैं। आंदोलन में महिलाओं के जज्बे का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आंदोलन को एक समाचार पत्र के लिए कवर करने पहुँची एक महिला पत्रकार खुद यहां कारसेवा में जुट गई हैं और वो देशी घी के मीठे चावल बनवाने में जुटी हैं।
इन महिलाओं में अधिकांश अपने बच्चे घर पर छोड़ कर आई हैं। सुखदीप कौर कहती हैं, ‘यह किसानी का सवाल अब बहुत बड़ा सवाल बन गया है। इसके हल होगा तो बच्चों का फ्यूचर भी बनेगा।’ यहां महिलाओं के कई समूह है, इनमे हरा दुपट्टा और पीला दुपट्टा वाले समूह की महिलाएं पंजाबी में गीत गा रही हैं। सुखदीप कौर कहती हैं कि आपस मे एक दूसरे को प्रेरित करने के लिए है। वो कहती हैं कि किसान अपनी जमीन दूसरे के हाथ मे कैसे दे देंगे, लोग सड़कों पर खड़े हैं। यह खेल नही है ! हम तक़लीफ़ में हैं। किसान भोले भाले लोग हैं मगर हमें अपने अधिकारों की समझ है। यह कानून किसानों के हक़ में नहीं हैं। कोरोनकाल में इस कानून को लाने की भी इनकी नियत सही नहीं है।