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ओमिक्रॉन सभी को एक बार जरूर बनाएगा शिकार, 100 टेस्ट में 25 निकलेंगे पॉजिटिव; जानिए कब थमेगा कहर

12 जनवरी 2022 | कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की वजह से दुनिया भर में कोरोना के केसेज बढ़ रहे हैं। डेल्टा की तुलना में 70 गुना ज्यादा संक्रामक ओमिक्रॉन तेजी से दुनिया के कई देशों में डोमिनेंट वैरिएंट बनता जा रहा है। अमेरिका और यूरोप में ओमिक्रॉन की वजह से नए कोरोना केसेज के रिकॉर्ड बन रहे हैं। हालांकि ओमिक्रॉन से अब तक डेल्टा के मुकाबले कम गंभीर बीमारी हो रही है। लेकिन एक्सपर्ट इस नए वैरिएंट को हल्के में न लेने की चेतावनी दे रहे हैं।

ऐसे में ये समझना जरूरी है कि आने वाले कुछ हफ्तों या महीनों में दुनिया और भारत में क्या होगा कोरोना का हाल? क्या और खराब होगी स्थिति या हालत में होगा सुधार? चलिए जानते हैं…

ओमिक्रॉन तेजी से बन रहा डोमिनेंट वैरिएंट

कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन तेजी से पूरी दुनिया में अपने पैर पसार चुका है और दो महीने से भी कम समय में ये दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में फैल चुका है।

  • एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले कुछ दिनों या हफ्तों में ओमिक्रॉन ही डोमिनेंट वैरिएंट बन जाएगा।
  • अमेरिका के मैसाचुसेट्स जनरल हॉस्पिटल में इंटरनेशनल इंफेक्टिशियस डिजीज के डायरेक्टर और एमडी, डॉक्टर एडवर्ड रेयान का कहना है कि अमेरिका के न्यू इंग्लैंड इलाके में करीब शत-प्रतिशत मामले अब ओमिक्रॉन के हैं और डेल्टा वैरिएंट वहां से लगभग खत्म हो चुका है।
  • जनवरी के पहले हफ्ते तक ब्रिटेन में कोरोना के नए मामलों में से करीब 96% और अमेरिका और फ्रांस में 80% से ज्यादा मामलों के लिए ओमिक्रॉन जिम्मेदार था।
  • साउथ अफ्रीका जहां पहली बार ओमिक्रॉन मिला था, वहां भी 93% से ज्यादा केसेज अब इसी वैरिएंट के हैं।
  • भारत में भी दिसंबर अंत तक नए केसेज में से करीब 35% ओमिक्रॉन के थे। जनवरी के पहले हफ्ते तक लगभग 40% नए केसेज के लिए ओमिक्रॉन जिम्मेदार था।
  • दिल्ली, मुंबई, कोलकाता जैसे महानगरों में तो कोरोना के नए केसेज में से करीब 75% ओमिक्रॉन के हैं।

कोरोना की ताजा लहर का पीक कब आएगा?

विशेषज्ञों का आकलन है कि भारत में कोरोना की ताजा लहर का पीक फरवरी में आने की संभावना है।

पहले आईआईटी कानपुर ने और अब हाल ही में आईआईटी मद्रास ने अपनी स्टडी में 1 से 15 फरवरी के दौरान देश में ताजा लहर का पीक आने की संभावना जताई है।

अमेरिकी एक्सपर्ट डॉ. एडवर्ड रेयान के मुताबिक, अमेरिका में कोरोना का पीक जनवरी अंत तक आ सकता है और फरवरी में मामले घटने शुरू हो जाएंगे और मार्च तक जिंदगी के पटरी पर लौट आने की संभावना है।

20-25% तक पहुंच सकता है पॉजिटिविटी रेट?

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 09 जनवरी तक देश का डेली पॉजिटिविटी रेट 10.21% और वीकली पॉजिटिविटी रेट 6.77% हो गया है। आने वाले दिनों में इसके और तेजी से बढ़ने की आशंका है।

देश की R वैल्यू भी बढ़कर 4 हो गई है, यानी अब एक संक्रमित व्यक्ति 4 लोगों को संक्रमित कर सकता है। दूसरी लहर के दौरान देश की R वैल्यू 1.9 थी।

अमेरिकी एक्सपर्ट डॉ. एडवर्ड रेयान के मुताबिक, कई देशों में डेली पॉजिटिविटी रेट 20%-25% तक पहुंचने की आशंका है।

क्या होता है पॉजिटिविटी रेट

सीधे शब्दों में कहें तो पॉजिटिविटी रेट कोरोना वायरस के फैलने का इंडिकेटर होता है। पॉजिटिविटी रेट बढ़ने का मतलब होता है कि कुल कोरोना टेस्ट में से पॉजिटिव पाए जाने वाले केसेज की संख्या बढ़ रही है। पॉजिटिविटी रेट बढ़ने का मतलब होता है कि कुल किए गए कोरोना टेस्ट में से पॉजिटिव पाए जाने वालों की संख्या बढ़ी है।

पॉजिटिविटी रेट का पर्सेंट इस बात का संकेत होता है कि जिस देश या इलाके में कोरोना टेस्टिंग हो रही है, वहां इंफेक्शन कितना फैला है।

सबको होगा ओमिक्रॉन, तभी बनेगी हर्ड इम्यूनिटी?

ओमिक्रॉन को लेकर एक संभावना ये भी जताई जा रही है कि ये कोरोना के अंत की शुरुआत हो सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि जितनी तेजी से ये फैल रहा है, उससे किसी का भी इससे बचना मुश्किल है और एक बार सभी के ओमिक्रॉन से संक्रमित होने की आशंका है। ऐसा होने पर ही इस वैरिएंट के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो पाएगी।

  • अमेरिकी एक्सपर्ट डॉ. एडवर्ड रेयान का कहना है कि ओमिक्रॉन से बचने का रास्ता ही नहीं है और ये एक बार सबको होगा, तभी इसके खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी विकसित होगी।
  • ओमिक्रॉन जितनी तेजी से फैल रहा है, ऐसे में इससे दुनिया में हर्ड इम्यूनिटी जल्दी विकसित होने की संभावना है।
  • हर्ड इम्यूनिटी एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें लगभग पूरी आबादी में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित हो जाती है। ऐसा पिछले या वर्तमान इंफेक्शन या वैक्सीनेशन की वजह से हो सकता है।
  • अमेरिका के टेनेसी स्थित वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के डॉ. विलियम शेफनर का मानना है कि अगर 2022 में ओमिक्रॉन के बाद और नए वैरिएंट नहीं आए तो ये कोरोना के अंत या एंडेमिक की ओर बढ़ने की शुरुआत हो सकती है।

ओमिक्रॉन ऊपरी श्वसन अंग पर करता है अटैक, इसलिए ज्यादा संक्रामक

ओमिक्रॉन अपर रेस्परेटरी ट्रैक्ट यानी गले पर अटैक करता है, इसलिए ये तेजी से फैलता है। कोरोना के अन्य वैरिएंट्स की तुलना में ओमिक्रॉन लोअर रेस्परेटरी ट्रैक्ट जैसे- फेफड़ों को कम प्रभावित करता है।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की एक हालिया स्टडी में भी ओमिक्रॉन से फेफड़ों के सेल को कम प्रभावित होने की बात कही गई है।

पहले से बीमार लोग ही ज्यादा हो रहे हॉस्पिटल में भर्ती

ओमिक्रॉन के मामले तेजी से बढ़ने के बावजूद डेल्टा की तुलना में इससे हॉस्पिटलाइजेशन रेट कम है।

  • बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, यूके की एक स्टडी में कहा गया है कि डेल्टा और अन्य वैरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन से हॉस्पिटलाइजेशन की दर 50%-70% कम है।
  • भारत के लिहाज से भी ये बात काफी हद तक सच है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, देश में ओमिक्रॉन से संक्रमित लोगों में से महज 1%-2% ही हॉस्पिटल में भर्ती हो रहे हैं, जोकि दूसरी लहर से काफी कम है।
  • इस रिपोर्ट के मुताबिक, हॉस्पिटल में भर्ती होने वालों में पहले से ही बीमार, 60+ उम्र के लोग या अनवैक्सीनेटेड लोग अधिक हैं।
  • दिल्ली में 08 जनवरी को 20 हजार से ज्यादा कोरोना केसेज दर्ज हुए और पॉजिटिविटी रेट बढ़कर 19% हो गया। लेकिन दिल्ली में जनवरी के पहले हफ्ते में हॉस्पिटलाइजेशन रेट में गिरावट आई है।
  • इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 1 जनवरी को दिल्ली का हॉस्पिटलाइजेशन रेट 6.6% था, जो 07 जनवरी को घटकर 4.81% रह गया। यानी दिल्ली में भले ही कोरोना केसेज बढ़ रहे हैं, लेकिन हॉस्टिपल में भर्ती होने वालों की संख्या में गिरावट आई है।

ओमिक्रॉन के ज्यादातर संक्रमित होंगे एसिम्प्टोमेटिक?

दुनिया में आ रहे ओमिक्रॉन के ज्यादातर केसेज एसिम्प्टोमेटिक हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक देश में ओमिक्रॉन केसेज में से करीब 70% मामले एसिम्प्टोमेटिक हैं।

देश के ओमिक्रॉन केसेज में से 90% उन लोगों में मिले हैं, जोकि वैक्सीनेटेड हैं। यानी ओमिक्रॉन के वैक्सीन को चकमा देने की आशंका भी सच साबित होती दिख रही है।

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक, शुरुआती स्टडी दिखाती हैं कि ओमिक्रॉन भले ही डेल्टा वैरिएंट से ज्यादा तेजी से फैलता है, लेकिन इसके लक्षण कम गंभीर हैं और ज्यादातर केस एसिम्प्टोमेटिक हैं।

ओमिक्रॉन के लिए बूस्टर डोज कितनी फायदेमंद?

ओमिक्रॉन वैरिएंट के मौजूदा वैक्सीनों के चकमा देने की आशंका के बाद बूस्टर डोज लगाए जाने की मांग उठने लगी है।

  • दुनिया के कई देश बूस्टर डोज देना शुरू भी कर चुके हैं। भारत में भी 10 जनवरी से 60+ उम्र के लोगों को प्रिकॉशन या तीसरी डोज दी जा रही है।
  • लेकिन कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि कोरोना के नए वैरिएंट के लिए हर छह महीने में बूस्टर डोज दे पाना संभव नहीं है।
  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हाल ही में कहा है कि हर चार से छह महीने में पूरी दुनिया को वैक्सीनेट नहीं किया जा सकता, ये न तो दीर्घकालिक है और नहीं इसे अफोर्ड किया जा सकता है।
  • रिसर्चर्स का कहना है कि हर किसी को बूस्टर डोज देने के बजाय केवल अतिसंवेदनशील लोगों को ही इसे दिया जाना चाहिए।
  • अमेरिकी एक्सपर्ट डॉ. एडवर्ड रेयान का कहना है कि जब तक हम लोगों को बूस्टर डोज देंगे, उससे पहले ही ओमिक्रॉन का कहर खत्म हो चुका होगा।

रैपिड टेस्ट से ओमिक्रॉन को डिटेक्ट करने की संभावना कम

कोरोना के लिए किए जाने वाले रैपिड एंटीजन टेस्ट और RT-PCR टेस्ट ओमिक्रॉन संक्रमण को शुरुआती दिनों में पकड़ पाने में कारगर नहीं हैं।

अमेरिकी विशेषज्ञ डॉ. एडवर्ड रेयान के मुताबिक, जिन लोगों में सिम्प्टम्स हैं उनके लिए रैपिड टेस्ट 50-80% तक सेंसिटिव होता है जबकि, एसिम्प्टोमेटिक लोगों के लिए ये महज 30-60% ही सेंसिटिव है।

क्या कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग से रुकेगा ओमिक्रॉन?

ओमिक्रॉन को रोकने के लिए सरकारें इससे संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले लोगों को भी ट्रेस कर रही हैं, ताकि इसे फैलने से रोका जा सके।

क्लोज कॉन्टैक्ट उसे माना जाता है, जब कोई व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के साथ घर जैसी जगह में चार या उससे ज्यादा घंटे बिताए।

ओमिक्रॉन के डेल्टा की तुलना में 70 गुना ज्यादा तेजी से फैलने का खतरा रहता है, ऐसे में कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को ओमिक्रॉन को फैलने से रोकने में कारगर माना जा रहा है।

हालांकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले एसिम्प्टोमेटिक लोगों की कोरोना टेस्टिंग को जरूरी नहीं बताया है।

क्या अब भी वर्क फ्रॉम है सबके लिए जरूरी?

भले ही कोरोना केसेज तेजी से बढ़ने के दौरान एक बार फिर से वर्क फ्रॉम होम का दौर लौट रहा है, लेकिन अमेरिका एक्सपर्ट डॉ. एडवर्ड रेयान का मानना है कि सभी के लिए इसकी जरूरत नहीं है।

उनका कहना है कि केवल 85 साल से ज्यादा के लोगों और कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों के लिए वर्क फ्रॉम होम की आवश्यकता है।

Source :- “दैनिक भास्कर “

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