• May 18, 2024 9:41 am

 सरोगेसी कानून को सिर्फ परोपकारी बनाए जाने को हाईकोर्ट में चुनौती, केंद्र सरकार को दिया पक्ष रखने का निर्देश

28 मई 2022 | कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार से छह हफ्ते में जवाब देने को कहा है और सुनवाई 29 नवंबर के लिए स्थगित कर दी है।बच्चे पैदा करने के विकल्प के रूप में सरोगेसी संबंधी कानून को सिर्फ परोपकारी ही बनाए जाने को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता एक महिला व एक पुरुष ने इसे व्यावसायिक भी बनाने की मांग की है ताकि वे भी सरोगेसी के जरिये बच्चे का पिता व माता बन सके। हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखने का निर्देश देते हुए कहा कि इस पर विचार करने की जरूरत है।कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने इस मामले में केंद्र सरकार से छह हफ्ते में जवाब देने को कहा है और सुनवाई 29 नवंबर के लिए स्थगित कर दी है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस कानून की वजह से वे पिता व माता नहीं बन सकते जो उनके मौलिक अधिकार का हनन है। इसलिए इस कानून में संशोधन किया जाए। उन्होंने इसको लेकर सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम तथा सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी है।यह याचिका अविवाहित पुरुष करण बलराज मेहता तथा विवाहिता व एक बच्चे की मां डा. पंखुरी चंद्रा ने दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वे सरोगेसी के जरिये पिता व माता बनने के विकल्प के रूप में  सरोगेसी का लाभ उठाने से वंचित हैं, जो भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन है।

उम्र सत्यापन में देरी पर पुलिस को हाईकोर्ट की फटकार

उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक आरोपी के उम्र सत्यापन में देरी के लिए दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाई है। पुलिस के रवैये के कारण आरोपी को जमानत मिलने के बावजूद उसे रिहा नहीं किया गया। अदालत की नाराजगी के बाद पुलिस ने टेलीफोन पर सत्यापन रिपोर्ट दाखिल कर बताया कि आरोपी शुक्रवार को ही रिहा हो जाएगा।

इस मामले में मजिस्ट्रेट ने आरोपी को 23 मई को 25 हजार रुपये की जमानत राशि देने की शर्त पर जमानत दी थी। बालिग होने पर आरोपी को मजिस्ट्रेट को जमानत देनी होती है और नाबालिग होने पर उसे जुवेनाइल कोर्ट में जमानत देनी होती है। चूंकि पुलिस ने आरोपियों की उम्र की पुष्टि नहीं की इस कारण उसे रिहा नहीं किया गया।

आरोपी ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर बताया कि उम्र सत्यापन में समय लग रहा है, क्योंकि आरोपी बिहार का है और उम्र का पता लगाने के लिए स्कूल के रिकॉर्ड का सत्यापन किया जाना है।  न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद को बताया गया कि एक पुलिस अधिकारी आरोपी के स्कूल पहुंचने के लिए पटना गए हैं जो एक छोटे से गांव में स्थित है। न्यायमूर्ति प्रसाद ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह अवैध हिरासत है। उनके पास पहले से ही उनके पक्ष में जमानत का आदेश है। हम जानते हैं कि पुलिस कितनी तेजी से कार्रवाई कर सकती है जब वे चाहते हैं। सिर्फ इसलिए कि वह गरीब है इस कारण देरी की जा रही है।

Source;-“अमर उजाला”  

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