1 जुलाई 2022 | सात साल की उम्र। उसकी उम्र के कई बच्चे, टोलियों में भागते-दौड़ते, कभी खेत में छीमी खाते, कभी नदी में कूदते, पहाड़ चढ़ते और न जाने क्या-क्या अठखेलियां करते। उसे कभी याद था महुआ बीनना। बरसात के दिन भी याद हैं जब वह रुगड़ा (एक तरह का मशरूम) चुनती थी। पर कब इस कच्ची उम्र में वह दिल्ली की बड़ी इमारतों के बीच पहुंच गई, पता नहीं चला। 2000 रुपए में बेच दी गई थी। तब सात वर्ष की थी। अब 19 साल की हो गई और इन 12 सालों में पांच बार बेची गई। जैसे-गाय-बैल बेचे जाते हैं वैसे ही बेची जाती रही। अंतिम बार 25 हजार में बेची गई थी। यह कहानी है गुमला के रायडीह ब्लॉक की रहनेवाली उषा (नाम बदला हुआ) की।
दूरदराज के इलाकों की होती हैं लड़कियां
दलाल कैसे महज कुछ हजार रुपए के लिए अपनी ही कम्युनिटी की लड़कियों का सौदा करते हैं इसका पता आरपीएफ की ‘नन्हें फरिश्ते’ और ‘मेरी सहेली’ टीम के चलाए गए ऑपरेशन से चलता है। रांची रेल डिवीजन में आईपीएफ सीमा कुजुर बताती हैं कि मानव तस्कर प्राय: लड़कियों को ट्रेनों से दिल्ली ले जाते हैं। ये लड़कियां दूरदराज के इलाकों की होती हैं। इन लड़कियों के हाव-भाव से पता चल जाता है कि उन्हें मानव तस्करी के लिए ले जाया जा रहा है।
दिल्ली में मिलता डोमेस्टिक हेल्प का काम
सीमा बताती हैं कि इसी 12 जून को रांची रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर हटिया-आनंद विहार ट्रेन लगी थी। इसके जनरल कोच में एक लड़की सहमी सी बैठी थी। नन्हें फरिश्ते और मेरी सहेली टीम को शक हुआ तो लड़की से पूछताछ हुई। शुरू में उसने संकोच किया, फिर बताया कि उसे दिल्ली में नौकरानी का काम दिलाने के लिए ले जाया जा रहा है।
कमीशन में मिलते पांच हजार रुपए
उसने अपना नाम मीरा टोपनो (नाम बदला हुआ) बताया जो सिमडेगा की रहनेवाली थी। उसकी उम्र 12 साल थी। उसके साथ दो महिलाएं थीं। वो भी सिमडेगा की ही रहनेवाली थीं। मीरा को दिल्ली पहुंचाने के लिए दोनों महिलाओं बिनिता और आशा को पांच-पांच हजार रुपए मिलते। उन दोनों को पकड़ कर एंटी ह्यमून ट्रैफिकिंग यूनिट को सौंप दिया गया।
डोमेस्टिक हेल्प के लिए बेच देते हैं लड़कियां
एंटी ट्रैफिकिंग पर काम कर रही संस्था एटीएसईसी इंडिया (एक्शन एगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्शुअल एक्सप्लाटेशन ऑफ चिल्ड्रेन) के झारखंड को-ऑर्डिनेटर संजय मिश्रा कहते हैं पूरी दुनिया में आर्म्स और ड्रग्स की तरह मानव तस्करी भी सबसे बड़ा चैलेंज है। उषा या मीरा जैसी हजारों लड़कियां हैं जिन्हें डोमेस्टिक हेल्प या दूसरे कारणों के लिए बेच दिया जाता है।
दिल्ली से बड़ी संख्या में रेस्क्यू करायी जाती हैं लड़कियां
पिछले दो वर्ष के अंदर 508 लड़कियों को केवल दिल्ली से ही रेस्क्यू कराया गया है। इनमें से कई लड़कियों को यह पता भी नहीं कि वो दिल्ली कब लाई गईं। उन्हें अपने माता-पिता का चेहरा तक याद नहीं था। उषा का उदाहरण देते हुए संजय मिश्रा बताते हैं कि जब उसे रेस्क्यू कराया गया तो काफी मशक्कत के बाद गुमला में उसके घर को ट्रेस किया जा सका। न तो उषा को अपने माता-पिता का चेहरा याद था और न ही मां उसे पहचान पा रही थी। उसकी बड़ी बहन जब अपनी मां से मुंडारी में बात कर रही थी, तब उषा उनसे जाकर लिपट गई।
Source;- ‘’दैनिकभास्कर’’