• May 3, 2024 7:59 pm

अनहोनी का संकेत दे रहीं हिमालय की झीलें, संकट में डेढ़ करोड़ लोग

बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग के चलते एक खतरा हमारी तरफ तेजी से आ रहा है, वो खतरा हिमालय रीजन में पिघलती ग्लेशियल झीलों का है, जिससे निचले इलाकों में रहने वाले डेढ़ करोड़ लोगों की जान खतरे में है. पिघलते ग्लेशियर क्या आने वाले समय में फिर से केदारनाथ घाटी जैसी त्रासदी का कारण बन सकते हैं या हम इस खतरे को भांपने के लिए पहले से तैयार हैं,

16 जून, 2013 की रात पूरी केदारनाथ घाटी पर कहर बनकर गुजरी. पहाड़ के ऊपरी इलाके में मौजूद एक झील फटने से वहां पानी का ऐसा सैलाब आया कि कुछ ही मिनटों में सबकुछ तबाह हो गया. 5 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. इस हादसे को 10 साल बीत चुके हैं लेकिन इसकी तबाही के निशान आज भी मौजूद हैं. ये तबाही इस बात का साफ संकेत थी कि हिमालय क्षेत्र में सबकुछ ठीक नहीं है. इसे वैज्ञानिक भाषा में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) कहा जाता है. झील फटने की घटना न तो हिमालय क्षेत्र में पहली थी और न ही इसके बाद ऐसी घटनाओं पर विराम लगा. बल्कि हिमालय घाटी में पिघलते ग्लेशियरों के कारण लगातार ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं. पिछले साल 3 अक्टूबर, 2023 की रात सिक्किम में साउथ ल्होनक लेक के फटने से हिमनद झील में भारी बाढ़ आई, जिससे चार जिले बुरी तरह तबाह हो गए. ऐसा ही हादसा 2021 में चमोली में देखा गया जहां कई लोग बेघर हो गए.

क्या होता है ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF)

ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) वो स्थिति है जब ग्लेशियर पिघलने से मैदानी इलाकों में पानी का बहाव ज़्यादा हो जाता है और प्राकृतिक बांध या झील में पानी का स्तर बढ़ने से बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. इस कारण इसकी दीवारें टूट जाती हैं और आसपास के इलाकों में जल प्रलय आ जाती है. इसे आसान शब्दों में झील का फटना भी कहते हैं जिससे झील से सटे और निचले इलाके प्रभावित होते हैं. इस दौरान पानी का बहाव इतनी तेजी से आता है कि उससे बचना नामुमकिन सा हो जाता है, जिससे ये अपने साथ सबकुछ बहाकर ले जाता है.

GLOF फिर चर्चा में क्यों हैं?

जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी तेज होती जा रही है. यही कारण है कि हाल के दिनों में ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड की घटनाएं हिमालय क्षेत्र में बढ़ी हैं. साथ ही इन इलाकों में निर्माण की गतिविधि तेज होने से हालात और ज़्यादा खराब हुए हैं. 1980 के बाद से हिमालयी क्षेत्र में खासतौर पर दक्षिण पश्चिमी तिब्बत, चीन और नेपाल की सीमा के पास तेजी से ग्लेशियर पिघलने के प्रभाव देखे गए हैं. 2023 में नेचर जरनल में प्रकाशित एक रिपोर्ट – ‘एनहांस्ड ग्लेशियल लेक एक्टिविटी थ्रेटंस न्यूमेरिस कम्यूनिटी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर इन द थर्ड पोल,’ में इसका जिक्र किया गया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक करीब 6353 वर्ग किलोमीटर के इलाके में GLOF का खतरा सबसे ज्यादा है. जिसके कारण करीब 55 हजार इमारतों, 105 हाइड्रो पावर प्रोजोक्ट, 5005 किलोमीटर रोड, 4038 पुल खतरे में हैं. 2023 में नेचर जरनल में ही छपी एक और रिपोर्ट भी इसी खतरे की ओर इशारा करती है. जिसके मुताबिक इस इलाके में मौजूद ग्लेशियल लेक का आकार जरूर पेसिफिक नोर्थ वेस्ट या तिब्बत के इलाके में मौजूद लेक के बराबर न हो, लेकिन यहां आबादी बहुत ज्यादा है जिसके कारण खतरा काफी बढ़ गया है.

एक्शन में सरकार

बदतर होते हालात को ध्यान में रखते हुए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथारिटी ने हिंदु कुश हिमालय रीजन में ऐसी 188 ग्लेशियर झीलों को चुना है, जिनसे भारी बारिश होने की स्थिति में आने वाले समय में खतरा बढ़ने की आशंका है. इससे करीब 1.5 करोड़ लोगों की जान को खतरा है. मालूम हो कि हिंदु कुश हिमालय का इलाका अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3,500 किमी (2,175 मील) तक फैला है. ये 1.5 करोड़ लोग वो हैं जो इन झीलों के निचले हिस्सों में बसे हैं और भारी जल सैलाब की वजह से इनकी जान खतरे हैं.

किन झीलों पर खतरा

इसी फेहरिस्त में गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड की 13 झीलों का नाम भी चिन्हित किया है, जिनमें आगे चलकर खतरा पैदा हो सकता है. गृह मंत्रालय ने इन झीलों को असुरक्षित होने के आधार पर तीन अलग-अलग कैटेगरी में बांटा है. गृह मंत्रालय द्वारा उत्तराखंड में चिन्हित की गई इन 13 झीलों में से 5 झीलें A कैटेगरी में रखी गई हैं, जिन पर सबसे ज्यादा खतरा है. इसके बाद थोड़ा कम जोखिम वाली B कैटेगरी में 4 झीलें और C कैटेगरी में भी 4 झीलें चिन्हित की गई हैं.

A-कैटेगरी की 5 झीलों में से चमोली जिले में एक और पिथौरागढ़ जिले में चार झीलें हैं. B कैटेगरी में 4 झीलों में से 1 चमोली में, 1 टिहरी में और 2 झीलें पिथौरागढ़ में मौजूद हैं. इसके बाद की C कैटेगरी की 4 झीलें उत्तरकाशी, चमोली और टिहरी में मौजूद हैं. वैज्ञानिक मानते हैं कि 2 झील सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं. इनमें पहली वसुंधरा ताल और दूसरी भीलांगना है. इन झीलों का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है जो भविष्य में केदारनाथ जैसी आपदा ला सकता है.

दो टीमों का गठन

उत्तराखंड के सचिव आपदा प्रबंधन डॉ. रंजीत सिन्हा बताते हैं कि उत्तराखंड सरकार ने इस खतरे को देखते हुए दो टीमों का गठन किया है. इसके लिए पांच गैर सरकारी एजेंसियों की मदद भी ली जाएगी. ये एजेंसियां ग्लेशियल झीलों का अध्ययन करेंगी और सेटेलाइट इमेज और निरीक्षण के जरिए मैपिंग करेंगी. ये एजेंसियां संभावित झीलों पर डाटा जुटाने के लिए इंस्ट्रूमेंट्स भी लगाएंगी ताकि इससे बचने के उपाय सुझाए जा सकें, जिससे भविष्य में किसी भी अप्रिय घटना से जान-माल की हानि से बचा जा सके.

इंडियन हिमालयन रीजन में ग्लेशियर पर अध्ययन करने वाले और इस्लामिक यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के वाइस चांसलर शकील अहमद रोमशू का कहना है कि सरकार पहले इन ग्लेशियल झीलों के खतरे से अनजान थी, लेकिन पिछले दस सालों में लगातार ग्लेशियर झीलों के फटने से हुई भारी तबाही को देखते हुए सरकार का ध्यान इस बढ़ते खतरे की तरफ गया है. जम्मू-कश्मीर में इस खतरे को भांपते हुए बचाव के तरीकों के अध्ययन के लिए उत्तराखंड सरकार की तर्ज पर एक कमेटी का गठन किया गया है. प्रोफेसर शकील अहमद रोमशू भी इस कमेटी का हिस्सा हैं.

प्रोफेसर रोमशू बताते हैं कि हिमालय, सिक्किम और लद्दाख रीजन में 550 ग्लेशियल झीलें हैं, हालांकि सभी खतरनाक नहीं हैं. लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के चलते 2010 से 2019 में ग्लेशियल झीलों पर सबसे ज्यादा असर देखा गया है और इसी दौरान ग्लेशियर पिघलने के चलते ग्लेशियर झीलों के फटने का सिलसिला बढ़ा है.

सरकार की तरफ से गठित टीम के काम

– जम्मू-कश्मीर में ग्लेशियर की वर्तमान स्थिति का पता लगाना

– नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट की तरफ से जारी लिस्ट के मुताबिक ऐसी ग्लेशियल झीलों की पहचान करना, जिनसे भविष्य में ज्यादा खतरा है

– चिन्हित खतरनाक झीलों से बचाव के लिए बेस्ट टेक्निकल उपाय सुझाना

– ये कमेटी डिजास्टर मैनेजमेंट रिलीफ रिहैबिलिटेशन एंड रिकंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट के साथ काम करेंगी और इस बढ़ते खतरे को कम करने के उपाय सुझाएंगी

प्रोफेसर रोमशू कहते हैं कि इन ग्लेशियल झीलों के फटने की वजह ग्लोबल वार्मिंग, इन क्षेत्रों में बढ़ता इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलेपमेंट, टूरिज्म और जनसंख्या भार है. क्योंकि पिछले एक दशक में साउथ ईस्टर्न एरिया जिसमें तिब्बत, चीन और नेपाल बॉडर शामिल हैं, वहां इस तरह के मामले बढ़े हैं. इन ग्लेशियर झीलों के फटने से न सिर्फ भारत प्रभावित है बल्कि पाकिस्तान, नेपाल और चीन के भी कई इलाके प्रभावित होने की आशंका है.

वहीं पर्यावरणविद् डॉ. जितेंद्र नागर कहते हैं कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) आने वाले समय में एक बड़ा खतरा बन सकता है, लेकिन किसी सरकार ने इसे कभी गंभीरता से नहीं लिया. जिसका खामियाजा हमने केदारनाथ, चमोली और जोशीमठ जैसी घटनाओं के तौर पर भुगता है. ऐसे में राज्य और केंद्र सरकार को बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए क्लाइमेट नॉर्म्स का पालन करने का सुझाव देना चाहिए साथ ही ग्रीन और विंड एनर्जी के इस्तेमाल पर जोर देना चाहिए. मुनाफा आधारित विकास के साथ-साथ सरकार को पर्यावरण को प्राथमिकता देना बेहद जरूरी है, वर्ना आने वाले समय में हमें भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है. ऐसे में सरकार को इस बढ़ते खतरे को समझने और उचित कार्यवाही करने की तुरंत जरूरत है, ताकि इन झीलों के आस-पास और इन घाटियों में रह रहे करोड़ों लोगों की जान को सुरक्षित किया जा सके.

अंत में हमें यह समझना होगा कि हिंदु कुश हिमालय में दोनों पोल के बाद सबसे ज्यादा बर्फ मौजूद है. इसी कारण इसे तीसरा पोल कहा जाता है. ये वो इलाका है जिसमें 7000 मीटर से ज्यादा ऊंचाई की चोटियां मौजूद हैं. इसमें 12 नदियों के मुहाने निकलते हैं. ये नदियां एशिया के 16 देशों में बहती हैं. इसे नजरअंदाज करना किसी त्रासदी से कम नहीं होगा.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

source tv9 bharatvarsh

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