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कमलेश्वर डोडियार के वेटर से विधायक बनने तक का सफ़र

ByADMIN

Dec 9, 2023 ##prompt times

9 दिसंबर 2023 ! वो रतलाम की सैलाना विधानसभा सीट से चुनाव जीत कर आए हैं.

चुनाव में मिली जीत के बाद जब कमलेश्वर को भोपाल आने के लिए कार नहीं मिली तो उन्होंने अपने बहनोई की बाइक से ही भोपाल पहुंचने का सोचा.

कमलेश्वर ने अपने गांव से भोपाल तक 330 किलोमीटर का सफर 9 घंटे में बाइक से पूरा किया.

राजधानी भोपाल में अब वो लोगों से मिल रहे हैं. उन्होंने गुरुवार रात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मुलाक़ात की. वो शुक्रवार को भी कई अधिकारियों से मिले.

शिवराज सिंह चौहान ने कमलेश्वर को मिठाई खिलाकर बधाई दी. उन्होंने शिवराज सिंह चौहान से मंत्रिमंडल में शामिल होने की भी इच्छा जताई.

विधानसभा पहुंच कर वो सबसे पहले उसके गेट पर नतमस्तक हुए. इसके बाद उन्होंने विधानसभा में निर्वाचन से जुड़ी प्रकिया को पूरा किया.

कमलेश्वर ने भारतीय आदिवासी पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की है.

वह भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों के अलावा एक मात्र व्यक्ति है जिन्हें इस विधानसभा चुनाव में जीत मिली है.

वो रतलाम जिले में आदिवासियों के लिए आरक्षित सैलाना विधानसभा सीट से चुनाव जीते हैं.

उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार हर्षविजय गहलोत को 4,618 वोटों से हराया है.

कमलेश्वर की ज़िंदग़ी बहुत ही संघर्ष भरी रही है. उनके माता-पिता मज़द़ूरी करके अपना और अपने परिवार का जीवनयापन करते रहे हैं. कमलेश्वर ने भी मज़दूरी की है.

तीन दिसंबर को जब चुनाव परिणाम आ रहे थे, उस दिन भी कमलेश्वर की मां सीता बाई मज़दूरी करने गई थीं.

हाथ टूट जाने की वजह से उनके पिता ने इन दिनों मज़दूरी करना बंद कर दिया है.

लेकिन चुनाव जीतने के बाद कमलेश्वर ने अपनी मां की मज़दूरी बंद करा दी है.

उन्होंने बीबीसी से कहा, ”मैंने जिस दिन जीत हासिल की, उसी दिन मैंने फैसला कर लिया था कि मेरी मां अब मज़दूरी नहीं करेंगी. इसलिए अब उन्होंने यह काम छोड़ दिया है.”

कमलेश्वर के परिवार में 6 भाई और 3 बहनें हैं. वो उनमें सबसे छोटे हैं. परिवार के सभी सदस्य मज़दूरी करते हैं. इनका परिवार मज़दूरी करने के लिए गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में भी जाता है.

उन्होंने पांचवीं तक की पढ़ाई अपने गांव में ही की. 8वीं तक की पढ़ाई उन्होंने सैलाना में की. 12वीं की पढ़ाई उन्होंने रतलाम से की. वहीं से उन्होंने बीए अंग्रेज़ी में किया और फिर एलएलबी करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी का रुख किया.

उन्होंने बताया, ”पढ़ाई में जो भी रुकावट आई वो आर्थिक वजह से ही रही. परिवार के हर सदस्य के पास मात्र सवा बीघा ज़मीन है, जिससे कुछ नहीं हो सकता. इसलिए मज़दूरी करना मजबूरी है.”

कमलेश्वर की मां को रोज़ाना मज़दूरी करने के 200 रुपये ही मिलते थे लेकिन कई बार उन्हें 300 रुपए तक मिल जाते हैं.

कमलेश्वर ने 2006 में 11वीं की परीक्षा के बाद पहली बार मज़दूरी की थी. उस समय वो राजस्थान के कोटा अपनी मां के साथ मज़दूरी करने गए थे. उन्होंने उस समय करीब 3 महीने तक मज़दूरी की थी.

इसके बाद उन्होंने रतलाम के एक होटल में वेटर का भी काम किया. उन्होंने कई अन्य जगहों पर भी मज़दूरी की है.

कमलेश्वर अपने परिवार के साथ टीन की चादर वाले घर में रहते हैं. बारिश के समय पानी उनके घर में आ जाता है.

  सोर्स :-“BBC  न्यूज़ हिंदी”                                  

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