9 दिसंबर 2023 ! इतिहास अपने गर्भ में कई ऐसे रहस्यमयी स्थानों को दबाए बैठा है जो आजतक केवल रहस्य बनकर ही रहे हैं. आज, हम एक ऐसे ही रहस्यमयी स्थान से रूबरू होंगे जहां न केवल पांडवों ने शरण ली थी, बल्कि कईं तरह की मूर्तियां और शिलाएं भी बनाई गई थीं. यहां बात हो रही है देवभूमि हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में स्थित औहर के बारे में. पौराणिक किस्सों के अनुसार, पांडवों ने 14 वर्ष के वनवास के दौरान अज्ञातवास का महत्वपूर्ण समय औहर में भी बिताया था. इस समय, उन्होंने यहां ठहरकर देवताओं की पूजा-आराधना के लिए मूर्तियों का निर्माण किया और शिलाएं भी स्थापित की.
अज्ञातवास के दौरान, औहर में पांडवों ने शिवलिंग की स्थापना की, और भगवान हनुमान जी की मूर्ति भी स्थापित की. इसके अलावा, कुछ ही दूरी पर पांडवों ने शीतला माता के पिंडी रूप की भी स्थापना की. पांडव इस स्थान से इतने प्रभावित थे कि वे इसे हरिद्वार का रूप देना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने दो-तीन पौड़ियों का निर्माण किया. मगर एक स्थानीय महिला ने सुबह के समय छाछ-मट्ठा छोलने के दौरान उनकी आवाज सुनी, और उन्हें अहसास हुआ कि सुबह हो रही है. इसके बाद वह औहर से आगे की यात्रा के लिए रवाना हो गए, जिसके कारण पूरी पौड़ियों का निर्माण नहीं हो पाया. हालांकि, आज भी इस स्थान को मिनी हरिद्वार के नाम से जाना जाता है.
जानकारी के अनुसार, औहर में पांडवों द्वारा स्थापित इस मंदिर और शिलाओं को लोग अपनी आस्था का केंद्र मानते हैं. श्रद्धालुओं के अनुसार, यहां आने वाले लोग इस ऐतिहासिक स्थल की कहानियों से प्रभावित होते हैं और इसे एक पवित्र स्थान के रूप में समझते हैं. इसके साथ ही, यहां स्थापित शिलाएं और मूर्तियां आज भी लोगों को यह सिखाती हैं कि पांडवों ने इस स्थान को अपने अज्ञातवास के दौरान चुना था और यहां पर देवी-देवताओं की पूजा-आराधना भी की गई थी.
यहां के स्थानीय लोग कहते हैं कि उन्होंने अपने बुजुर्गों से इस ऐतिहासिक स्थल की कहानियां सुनी हैं और उन्हें यहां स्थापित शिलाओं और मूर्तियों पर पूरा विश्वास है कि पांडवों ने इस पवित्र स्थान को चुना था और यहां पर देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित कर पूजा-आराधना भी की थी. इसके अलावा, दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं का कहना है कि औहर में पांडवों द्वारा स्थापित इस मंदिर व शिलाओं को वे अपनी आस्था का केंद्र मानते हैं, और शादी, विवाह, या किसी समारोह के दौरान वह यहां आना नहीं भूलते हैं.
भक्तों का कहना है कि इस स्थान पर आकर श्रद्धालु जो भी कामना करते हैं, वह अवश्य ही पूरी होती है. इस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख न होने के कारण, यहां की पोड़ियां नाम मात्र की ही रह गई हैं, वहीं “मिनी हरिद्वार” भी आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. इस परिस्थिति में, जरूरी हो गया है कि हिमाचल प्रदेश की प्राचीन संस्कृति और ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित रखने के लिए प्रदेश सरकार को आगे बढ़ना चाहिए.इससे ऐसे प्राचीन स्थानों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जा सकता है और इन ऐतिहासिक धरोहरों का जीर्णोद्धार करने के लिए आने वाली पीढ़ी को इन स्थानों के प्रति जागरूक किया जा सकता है.
सोर्स :-“न्यूज़ 18 हिंदी|”