कई उतार चढ़ावों, वाद-विवादों के बाद आख़िरकार भारत और फ्रांस के बीच रफ़ाल विमानों का सौदा अपने अंजाम तक पहुँचा और अब पाँच रफ़ाल विमान भारत पहुँच गए हैं.
ये विमान फ्रांस से 27 जुलाई को ही चल दिए थे, लेकिन दुबई में रुकने में बाद ये बुधवार को भारत पहुँचे. भारत की सेना ने अपने आपात अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इन उन्नत लड़ाकू विमानों के लिए हैमर मिसाइलों की ख़रीद को भी मंज़ूरी दी है.
भारतीय हवाई सीमा में इन विमानों के प्रवेश करने के बाद रक्षा मंत्रालय ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रफ़ाल के आने पर भारतीय वायुसेना को बधाई दी है.
रक्षा मंत्री ने कहा कि वायु सेना की क्षमता बिल्कुल सही वक़्त पर बढ़ाई गई है. उन्होंने इसके लिए ख़ुशी ज़ाहिर की. राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ”रफ़ाल विमान और हथियारों की वक़्त पर डिलिवरी के लिए वो फ़्रांस की सरकार और डसॉ एविएशन को धन्यवाद देते हैं. फ़्रांस ने महामारी के वक़्त में भी देरी नहीं की.”
राजनाथ सिंह ने अपने अगले ट्वीट में कहा, ”रफ़ाल की ख़रीदारी इसलिए हो पाई क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सही फ़ैसला लिया. ये एयरक्राफ़्ट प्रदर्शन में माकूल हैं और इनके हथियार भी अचूक. इनके रडार, सेंसर्स और इलेक्ट्रॉनिक युद्धक क्षमता दुनिया भर में सबसे बेहतरीन हैं. रफ़ाल के आने से भारतीय वायु सेना किसी भी चुनौती से निपटने के लिए तैयार रहेगी. जो हमारी क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देने की मंशा रखते हैं उन्हें भारतीय वायुसेना की इस नई क्षमता को लेकर चिंतित होना चाहिए.”
भारत और चीन के बीच सीमा पर बढ़ते तनाव और बदलते वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य में भारत के लिए ये विमान बेहद अहम हैं.
ये भारतीय वायुसेना की क्षमता को एकदम से बढ़ा देंगे. अब तक लड़ाकू विमानों के लिए रूस पर निर्भर रहे भारत में अब ये नए दौर के यूरोपीय विमान अपने सथ नई तकनीक भी लाएंगे.
अंबाला पहुँचे रफ़ाल विमानों के लिए भारत 60-70 किलोमीटर की दूरी तक सटीक मार करने वाली हैमर मिसाइल भी ख़रीद रहा है.
हैमर मिसाइल तैयार करने वाली कंपनी साफ़्रान इलेक्ट्रॉनिक एंड डिफ़ेंस के मुताबिक़ ‘हैमर मिसाइल दूर से ही आसानी से इस्तेमाल की जा सकती है.’ हवा-से-धरती पर मार कर सकने वाली इस मिसाइल का निशाना बहुत सटीक बताया जाता है.
ढाई सौ किलो वज़न से शुरू होने वाली हैमर मिसाइल राफ़ेल के अलावा मिराज लड़ाकू विमानों में भी फ़िट हो सकती है. हैमर मिसाइलें पहाड़ी इलाक़ों में बनाए गए बंकरों पर भी कारगर होती हैं.
कंपनी का दावा है कि ‘ये सिस्टम बहुत आसानी से तालमेल बैठा सकता है, ये गाइडेंस किट के सहारे निशाने हिट करता है और कभी जाम नहीं होता. मिसाइल के आगे लगे गाइडेंस किट में जीपीएस, इंफ्रारेड और लेसर जैसी चीज़े फिट होती हैं.’
जो लड़ाकू रफ़ाल विमान भारत ने फ़्रांस से लिये हैं, उनमें पहले से ही हवा से हवा में मार करने वाले ‘मेटियोर’ यानी लंबी दूरी वाली मिसाइलें लगी होती हैं, जो भारतीय वायुसेना की क्षमता को पड़ोसी मुल्कों की तुलना में कई गुना बढ़ा देंगे.
क्या रफ़ाल वाक़ई लाजवाब है?
फ्रांस के साथ 36 रफ़ाल विमान ख़रीदने का सौदा भारत में बेहद विवादित रहा है. विपक्षी कांग्रेस इन विमानों की ख़रीद में भ्रष्टाचार के आरोप लगाती रही है.
ऐसे में ये सवाल उठता रहा है कि क्या रफ़ाल विमान वाक़ई में लाजवाब हैं और इनका कोई तोड़ नहीं है?
द इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस (IDSA) में फ़ाइटर जेट पर विशेषज्ञता रखने वाले एक विश्लेषक ने पहले कहा था, ”कोई भी लड़ाकू विमान कितना ताक़तवर है यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियार पर निर्भर करता है. मतलब कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी दूरी से देख सकता है और कितनी दूर तक मार कर सकता है.
ज़ाहिर है इस मामले में रफ़ाल बहुत आधुनिक लड़ाकू विमान है. भारत ने इससे पहले 1997-98 में रूस से सुखोई ख़रीदा था. सुखोई के बाद रफ़ाल ख़रीदा जा रहा है. 20-21 साल के बाद यह डील हो रही है तो ज़ाहिर है इतने सालों में टेक्नॉलोजी बदली है.”
कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी ऊंचाई तक जाता है यह उसकी इंजन की ताक़त पर निर्भर करता है. सामान्य रूप से फ़ाइटर प्लेन 40 से 50 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई तक जाते ही हैं, लेकिन हम ऊंचाई से किसी लड़ाकू विमान की ताक़त का अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं. फ़ाइटर प्लेन की ताक़त मापने की कसौटी हथियार और सेंसर क्षमता ही है.”
एशिया टाइम्स में रक्षा और विदेश नीति के विश्लेषक इमैनुएल स्कीमिया ने नेशनल इंटरेस्ट में लिखा है, ”परमाणु हथियारों से लैस रफ़ाल हवा से हवा में 150 किलोमीटर तक मिसाइल दाग सकता है और हवा से ज़मीन तक इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर है. कुछ भारतीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि रफ़ाल की क्षमता पाकिस्तान की एफ़-16 से ज़्यादा है.”
क्या भारत इसके दम पर जंग जीत पाएगा?
क्या भारत पाकिस्तान से इस लड़ाकू विमान के ज़रिए युद्ध जीत सकता है? IDSA से जुड़े एक विशेषज्ञ का कहना है, ”पाकिस्तान के पास जो फ़ाइटर प्लेन हैं वो किसी से छुपे नहीं हैं. उनके पास जे-17, एफ़-16 और मिराज हैं. ज़ाहिर है कि रफ़ाल की तरह इनकी टेक्नॉलजी एडवांस नहीं है. पर हमें यह समझना चाहिए कि अगर भारत के पास 36 रफ़ाल हैं तो वो 36 जगह ही लड़ाई कर सकते हैं. अगर पाकिस्तान के पास इससे ज़्यादा फाइटर प्लेन होंगे तो वो ज़्यादा जगहों से लड़ाई करेगा. मतलब संख्या मायने रखती है.”
पूर्व रक्षा मंत्री और वर्तमान में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर भी रफ़ाल समझौते को आगे बढ़ाने में शामिल रहे हैं. पर्रिकर ने एक बार कहा था कि रफ़ाल के आने से भारत, पाकिस्तान की हवाई क्षमता पर भारी पड़ेगा.
पर्रिकर ने गोवा कला और साहित्य उत्सव में कहा था, ”इसका टारगेट अचूक होगा. रफ़ाल ऊपर-नीचे, अगल-बगल यानी हर तरफ़ निगरानी रखने में सक्षम है. मतलब इसकी विजिबिलिटी 360 डिग्री होगी. पायलट को बस विरोधी को देखना है और बटन दबा देना है और बाक़ी काम कंप्यूटर कर लेगा. इसमें पायलट के लिए एक हेलमेट भी होगा.”
वहीं रक्षा विश्लेषक राहुल बेदी का कहना है कि रफ़ाल से भारतीय एयर फ़ोर्स की ताक़त बढ़ेगी, लेकिन इसकी संख्या बहुत कम है. बेदी का मानना है कि 36 रफ़ाल अंबाला और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन में ही खप जाएंगे.
दो ही स्क्वाड्रन में खप जाएंगे रफ़ाल
वो कहते हैं, ”दो स्क्वाड्रन काफ़ी नहीं हैं. भारतीय वायु सेना की 42 स्क्वाड्रन आवंटित हैं और अभी 32 ही हैं. जितने स्क्वाड्रन हैं उस हिसाब से तो लड़ाकू विमान ही नहीं हैं. हमें गुणवत्ता तो चाहिए ही, लेकिन साथ में संख्या भी चाहिए. अगर आप चीन या पाकिस्तान का मुक़ाबला कर रहे हैं तो आपको लड़ाकू विमान की तादाद भी चाहिए.”
वो कहते हैं, ”चीन के पास जो फ़ाइटर प्लेन हैं वो हमसे बहुत ज़्यादा हैं. रफ़ाल बहुत अडवांस है, लेकिन चीन के पास ऐसे फ़ाइटर प्लेन पहले से ही हैं. पाकिस्तान के पास एफ़-16 है और वो भी बहुत अडवांस है. रफ़ाल साढ़े चार जेनरेशन फ़ाइटर प्लेन है और सबसे अडवांस पांच जेनरेशन है.”
राहुल कहते हैं, ”रफ़ाल हमें बना बनाया मिला है. इसमें टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र नहीं है. रूस के साथ जो डील होती थी उसमें वो टेक्नॉलजी भी देता था. हम इसी दम पर 272 सुखोई विमान बना रहे हैं और लगभग फ़ाइनल होने के क़रीब हैं. हमारी क़ाबिलियत तकनीक का दोहन करने के मामले में बिल्कुल ना के बराबर है.”
कई रक्षा विश्लेषकों का कहना कि भारत की सेना के आधुनिकीकरण की रफ़्तार काफ़ी धीमी है. समाचार एजेंसी एएफ़पी को दिए इंटरव्यू में रक्षा विश्लेषक गुलशन लुथरा ने कहा था, ”हमारे लड़ाकू विमान 1970 और 1980 के दशक के हैं. 25-30 साल के बाद पहली बार टेक्नॉलजी के स्तर पर लंबी छलांग है. हमें रफ़ाल की ज़रूरत थी.”
25 ही बचेंगे स्क्वाड्रन
अभी भारत के सभी 32 स्क्वाड्रन पर 18-18 फ़ाइटर प्लेन हैं. एयरफ़ोर्स की आशंका है कि अगर एयरक्राफ़्ट की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो स्क्वाड्रन की संख्या 2022 तक कम होकर 25 ही रह जाएगी और यह भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक होगा.
गुलशन लुथरा ने अपने इंटरव्यू में कहा था, ”पाकिस्तान को तो हमलोग हैंडल कर सकते हैं. लेकिन हमारे पास चीन की कोई काट नहीं है. अगर चीन और पाकिस्तान दोनों साथ आ गए तो हमारा फंसना तय है.”
भारत और चीन 1962 में एक युद्ध कर चुके हैं. भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था. अब भी दोनों देशों के बीच सीमा का स्थाई तौर पर निर्धारण नहीं हो सका है.
रफ़ाल लड़ाकू विमान की ख़ास बातें
रफ़ाल लड़ाकू विमान की ख़ास बातें
- रफ़ाल विमान परमाणु मिसाइल डिलीवर करने में सक्षम.
- दुनिया के सबसे सुविधाजनक हथियारों को इस्तेमाल करने की क्षमता.
- दो तरह की मिसाइलें. एक की रेंज डेढ़ सौ किलीमीटर, दूसरी की रेंज क़रीब तीन सौ किलोमीटर.
- रफ़ाल जैसा विमान चीन और पाकिस्तान के पास भी नहीं है.
- ये भारतीय वायुसेना के इस्तेमाल किए जाने वाले मिराज 2000 का एडवांस वर्जन है.
- भारतीय एयरफ़ोर्स के पास 51 मिराज 2000 हैं.
- डस्सो एविएशन के मुताबिक, रफ़ाल की स्पीड मैक 1.8 है. यानी क़रीब 2020 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार.
- ऊंचाई 5.30 मीटर, लंबाई 15.30 मीटर. रफ़ाल में हवा में तेल भरा जा सकता है.
रफ़ाल लड़ाकू विमानों का अब तक अफगानिस्तान, लीबिया, माली, इराक़ और सीरिया जैसे देशों में हुई लड़ाइयों में इस्तेमाल हुआ है.
कब हुआ था समझौता?
साल 2010 में यूपीए सरकार ने ख़रीद की प्रक्रिया फ़्रांस से शुरू की.
2012 से 2015 तक दोनों के बीच बातचीत चलती रही. 2014 में यूपीए की जगह मोदी सरकार सत्ता में आई.
सितंबर 2016 में भारत ने फ़्रांस के साथ 36 रफ़ाल विमानों के लिए करीब 59 हज़ार करोड़ रुपये के सौदे पर हस्ताक्षर किए.
मोदी ने सितंबर 2016 में कहा था, ”रक्षा सहयोग के संदर्भ में 36 रफ़ाल लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर ये खुशी की बात है कि दोनों पक्षों के बीच कुछ वित्तीय पहलुओं को छोड़कर समझौता हुआ है.”
रक्षा मामलों के जानकार राहुल बेदी के मुताबिक, ”पहले भारत को 126 विमान खरीदने थे. तय ये हुआ था कि भारत 18 विमान खरीदेगा और 108 विमान बेंगलुरु के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में एसेम्बल होंगे. लेकिन ये सौदा नहीं हो पाया.”
BBC