• April 27, 2024 12:22 pm

मिट्टी, मौसम या तकनीक… देश में लौंग की सबसे ज्यादा पैदावार कन्याकुमारी में ही क्यों, जहां PM मोदी पहुंचे?

Kanyakumari: कन्याकुमारी सिर्फ मंदिरों के लिए ही नहीं, मसालों के लिए जाना जाता है. देश में जितनी भी लौंग की पैदावार होती है, उसका 65 फीसदी हिस्सा कन्याकुमारी में पैदा होता है. यहां की लौंग यूं ही नहीं इतनी खास है, इसकी कई वजह भी हैं. कन्याकुमारी एक बार फिर चर्चा में हैं. पीएम मोदी शुक्रवार को यहां पहुंचे. आइए जानते हैं कि वो वजह जिसके कारण यहां लौंग की पैदावार ने रिकॉर्ड बनाया और खास खूबियां विकसित हुईं.

कन्याकुमारी सिर्फ मंदिरों के लिए ही नहीं, मसालों के लिए जाना जाता है. मसालों की पैदावार में यहां की लौंग का अलग ही रुतबा है. देश में जितनी भी लौंग की पैदावार होती है, उसका 65 फीसदी हिस्सा कन्याकुमारी में पैदा होता है. यहां की लौंग तेज सुगंध, फ्लेवर और अपने तेल के लिए जानी जाती है. यही वजह है कि इसे ‘कन्याकुमारी क्लोव’ कहा जाता है. इसकी पहली खेप 1800 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पेश की थी.

यह कितनी खास है इसका अंदाज इस बात से लगाया जाता है, दूसरी जगह की लौंग में 18 फीसदी वोलाटाइल ऑयल पाया जाता है, वहीं यहां की लौंग में यह मात्रा 21 फीसदी होती है. यहां की लौंग यूं ही नहीं इतनी खास है, इसकी कई वजह भी हैं. कन्याकुमारी एक बार फिर चर्चा में हैं. पीएम मोदी शुक्रवार को यहां पहुंचे. आइए जानते हैं कि वो वजह जिसके कारण यहां लौंग की पैदावार ने रिकॉर्ड बनाया और खास खूबियां विकसित हुईं.

कन्याकुमारी में लौंग की इतनी पैदावार क्यों?

लौंग की खेती कन्याकुमारी के पहाड़ी हिस्से में होती है. यहां हर साल 1100 टन लौंग का उत्पादन होता है. देश में पैदा होने वाली 65 फीसदी लौंग कन्याकुमारी में होती है. इसकी भी कई वजह हैं. पहली वजह है, यहां की जलवायु. कन्याकुमारी में नॉर्थईस्ट और साउथवेस्ट मानसून दोनों असर पड़ता है. दूसरी, यहां की काली मिट्टी जो लौंग की पैदावार के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है. यहां की मिट्टी में खास तरह के पोषण तत्व पाए जाते हैं जो लौंग की पैदावार को बढ़ाती है.

यहां का तापमान लौंग की पैदावार को बेहतर बनाने में मदद करता है. दोतरफा मानसून के असर के कारण मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहती है. ये सारी चीजें लौंग की खेती के लिए वो परिस्थिति तैयार करती हैं जो इसकी जरूरत है. यहां की लौंग में सबसे ज्यादा 86 फीसदी तक यूजेनॉल होता है. यह खुशबू और स्वाद में दूसरे हिस्से में उगने वाली लौंग से कहीं ज्यादा बेहतर होती है.

100 साल पुराने लौंग के पेड़

कन्याकुमारी में लौंग का इतिहास कई दशकों पुराना है. यहां कई पेड़ ऐसे हैं जो 100 साल से भी ज्यादा पुराने हैं. मरामलाई, करुमपराई और वेल्लिमलाई समेत कई ऐसे क्षेत्र वीरापुली रिजर्व फॉरेस्ट का हिस्सा हैं और लौंग की खेती के लिए जाने जाते हैं. इसी खूबी के कारण कन्याकुमारी को जीआई टैग मिल चुका है.कन्याकुमारी को बेशक लौंग के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां पर कई मसालों की खेती होती है. इसमें इलायची, केला, आम, काली मिर्च, जायफल, सुपारी जैसे मसाले शामिल हैं.औसतन की इसकी न्यूनतम कीमत 500 से 700 रुपए प्रति किलो होती है. हालांकि पैदावार और दूसरी स्थितियों के आधार पर यह बढ़ती है.

149 देशों में एक्सपोर्ट होती है भारत की लौंग

भारत दुनिया के 149 देशों में लौंग एक्सपोर्ट करता है और इस मामले में दुनियाभर का 10वां सबसे बड़ा एक्सपोर्टर देश है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में भारत ने 8 मिलियन डॉलर से अधिक की लौंग को अमेरिका समेत कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और UAE को निर्यात किया.

दुनियाभर में खानपान को लेकर बढ़ते एक्सपेरिमेंट के कारण मसालों की डिमांड बढ़ रही है. इसी डिमांड के साथ भारतीय लौंग की मांग विदेशों में बढ़ी है. तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल की लौंग की मांग दुनियाभर में हैं.

 

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