26 मई 2022 | इंदौर का नाम आते ही अहिल्या देवी का नाम सबसे पहले आता है। अहिल्या देवी ने अपने शासनकाल में ऐसे फैसले लिए जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे। उनमें जितनी शिवभक्ति थी, प्रजा के लिए वे जितनी मृदुभाषी थीं, राजपाट के नियमों में उतनी ही सख्त थीं। नियमों के पालन के मामले में वह अपने पति-पुत्र के प्रति भी सख्त रहती थीं।
अहिल्या देवी ने 13 मार्च 1767 को रियासत की कमान अपने हाथों में ली थी। वे जनता की गाढ़ी कमाई बचाने के लिए एक-एक आने का हिसाब रखती थीं। नियम कायदों को लेकर काफी सख्त थीं। एक मर्तबा तो उन्होंने अपने पति तक को अग्रिम वेतन देने से इनकार कर दिया था। 28 बरस के अपने शासनकाल में उन्होंने देशभर में 65 मंदिर, धर्मशालाएं, सड़कें, तालाब और नदियों के भव्य घाट बनवाए। बताते हैं कि वे शिव की इतनी अनन्य भक्त थीं कि रियासत के हर ऑर्डर पर हुजूर शंकर लिखा जाता था।
सबसे पहले जानिए कौन थीं अहिल्या देवी…
अहिल्या देवी का जन्म 31 मई 1725 ई. को महाराष्ट्र के अहमदनगर के चौंडी ग्राम में हुआ। उनके पिता मंकोजी राव शिंदे अपने गांव के पाटिल थे पर निर्धन थे। वे कई परेशानियों का सामना कर परिवार का लालन-पालन करते थे। पुणे जाते समय मालवा के पेशवा मल्हार राव होलकर चौंडी गांव में विश्राम के लिए रुके। यहीं उन्होंने अहिल्या देवी को देखा। आठ साल की लड़की निष्ठा से भूखे और गरीब लोगों को भोजन करा रही थी। यह देख मल्हार राव ने अहिल्या देवी का रिश्ता अपने बेटे खंडेराव होलकर के लिए मांगा। 1733 में खंडेराव के साथ विवाह कर कम उम्र में ही अहिल्या देवी मालवा आ गईं।
मल्हारराव होलकर के वीर पुत्र खंडेराव होलकर की चार पत्नियां थीं- अहिल्या देवी, पाराबाई, पीताबाई और सुरताबाई। मल्हार राव होलकर को बेटे खांडेराव से ज्यादा बहू अहिल्या देवीपर भरोसा था। 1754 में खंडेराव की युद्ध में वीरगति प्राप्त होने पर ससुर मल्हारराव होलकर के कहने पर अहिल्या देवी सती नहीं हुई जबकि अन्य 3 रानियां सती हो गईं। इसके बाद ससुर मल्हार राव ने बहू अहिल्या देवी को होलकर साम्राज्य की कमान सौंप दी थी।
Source;- ‘’दैनिकभास्कर’’