• April 28, 2024 10:59 am

ऊषा मेहता ने जमकर तोड़े अंग्रेजी कानून, अब सारा अली खान निभाएंगी रोल

22 अगस्त 2022 एक्ट्रेस सारा अली खान स्वतंत्रता सेनानी ऊषा मेहता की बायोपिक पर काम करेंगी। इस फिल्म को करण जौहर की कंपनी ‘धर्मा प्रोडक्शन’ प्रोड्यूस करेगी। इसका डायरेक्शन कन्नन अय्यर करेंगे। फिल्म ‘ऐ वतन… मेरे वतन’ की शूटिंग इसी साल सितंबर में शुरू होने की उम्मीद है। कुछ वक्त पहले सारा अली खान करण के शो ‘कॉफी विद करण’ में नजर आई थीं; तभी से ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि ऊषा मेहता का रोल उन्हें मिल सकता है।

फिल्म की घोषणा होने के बाद एक बार फिर ऊषा मेहता और उनके कामों की चर्चा हो रही है। मात्र 5 साल की उम्र में महात्मा गांधी से मिलकर उनसे प्रभावित होने वाली ऊषा मेहता ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। अंग्रेजों की नाक के नीचे रेडियो स्टेशन चलाकर उन्होंने भारत के लोगों को आजादी के लिए प्रेरित किया था।

पिता थे ब्रिटिश सरकार के जज, बेटी ने तोड़ डाले सारे अंग्रेजी कानून

ऊषा मेहता का जन्म 25 मार्च 1920 को गुजरात के सरस में हुआ था। उनकी मां घेलीबेन मेहता एक घरेलू महिला थीं। उषा के पिता हरि प्रसाद मेहता जिला स्तर के जज थे। लेकिन बचपन में ही ऊषा मेहता के मन में अंग्रेजी कानूनों के लिए नफरत घर कर गई थी। पहली बार मात्र 5 साल की उम्र में वो महात्मा गांधी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित हो गईं। अंग्रेजी सरकार के जज की बेटी चुन-चुनकर सारे काले अंग्रेजी कानून तोड़ने लगीं। केवल 11 साल की उम्र में उन्होंने नमक सत्याग्रह में भाग लिया।

8 साल की उम्र में उषा मेहता ने किया था साइमन कमीशन का विरोध

ऊषा जब केवल 8 साल की थीं; भारत में साइमन कमीशन आया। इस छोटी-सी उम्र में ही ऊषा ने साइमन कमीशन विरोधी मार्च में भाग लेने का फैसला किया। इसी उम्र में ऊषा पूरी तरह से खुद को स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित कर देना चाहती थीं। लेकिन उनके पिता एक सरकारी जज थे। जिसके चलते मां के समझाने पर ऊषा छिप-छिपकर ही अंग्रेजों का विरोध किया करती थीं। लेकिन पिता के रिटायर होने के बाद ऊषा पर ऐसा कोई दबाव नहीं था। ऐसे में उन्होंने अपना पूरा समय आजादी के आंदोलन को देना शुरू किया।

कॉलेज में पढ़ने के दौरान चलाने लगीं रेडियो स्टेशन, जिससे डरे अंग्रेज

22 साल की उम्र में ऊषा मुंबई के विल्सन कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ती थीं। इसी समय महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश में ‘क्विट इंडिया मूवमेंट’ शुरू हुआ। आंदोलन के शुरू होते ही महात्मा गांधी समेत कांग्रेस के सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए। ऐसे में ऊषा मेहता ने अपने युवा साथियों के साथ मिलकर महात्मा गांधी की गैर-मौजूदगी में उनके संदेशों को घर-घर तक पहुंचाने का फैसला किया। उन्होंने मुंबई के ‘कांग्रेस रेडियो’ का प्रसारण शुरू किया। 14 अगस्त 1942 को ‘कांग्रेस रेडियो’ की शुरुआत हुई। उषा मेहता ने इसके पहले प्रोग्राम में कहा था- भारत में कहीं से आप से सुन रहे हैं ‘कांग्रेस रेडियो’।

आंदोलन के दौरान लगभग तीन महीने तक अंग्रजों की नाक के नीचे यह रेडियो स्टेशन चलता रहा। पकड़े जाने से बचने के लिए उषा और उनके साथ समय-समय पर पूरे स्टेशन को ही शिफ्ट कर देते थे। इस दौरान ऊषा मेहता को राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे नेताओं का साथ मिला।

साथी की गद्दारी की वजह से अंग्रजों के हत्थे चढ़ीं ऊषा, हुई 4 साल की जेल

जिस जमाने में प्रेस पर सख्त प्रतिबंध लागू थे। ऊषा का अंडरग्राउंड रेडियो स्टेशन खुलकर आजादी की मांग करता था। इस खुफिया स्टेशन से रोज हिंदी और अंग्रेजी में प्रोग्राम ऑन एयर किया जाता था। दूसरी ओर, अंग्रेज किसी भी तरह इस रेडियो स्टेशन का पता लगाना चाहते थे। ऊषा के ही एक साथी तकनीशियन ने गद्दारी की। उसने अंग्रेजी पुलिस को रेडियो स्टेशन की जानकारी दे दी। जिसके बाद ऊषा और उनके साथियों का गिरफ्तार कर लिया गया। एक सप्ताह की सुनवाई के बाद ऊषा को 4 साल की सजा सुनाई गई।

जेल से निकल कर बोलीं-जेल जाने पर गर्व, महात्मा के विचारों को जन-जन तक पहुंचाया

4 साल जेल की सजा काटने के बाद जब ऊषा बाहर निकलीं तो उनके चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी। उल्टे उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि वो बापू के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जेल गईं।

आजाद भारत में ऊषा मेहता को पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। अपनी बुलंद आवाज से अंग्रेजी हुकूमत को डराने वाली भारत की महान बेटी ने 11 अगस्त 2000 को आखिरी सांस ली।

सोर्स :- “दैनिक भास्कर”

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