- जाति जनगणना पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, यदि सभी दल और राज्यों में सहमति बनती है, तो मैं नहीं लड़ूंगी। पहले सभी दलों, मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार को इस पर आम सहमति बनाने दीजिए
25 अगस्त 2021 | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को कहा कि जाति जनगणना पर यदि सभी दल सहमत हों, तो उन्हेें भी इस पर कोई आपत्ति नहीं होगी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में इस मसले पर प्रधानमंत्री से मुलाकात को देखते हुए ममता ने यह प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, यदि सभी दल और राज्यों में सहमति बनती है, तो मैं नहीं लड़ूंगी। पहले सभी दलों, मुख्यमंत्रियों और केंद्र सरकार को इस पर आम सहमति बनाने दीजिए। उन्होंने कहा इस मुद्दे पर राज्यों की भावनाओं में अंतर है। नीतीश ने अपनी मंशा जाहिर की है, अन्य मुख्यमंत्रियों की भी इस पर राय आने दीजिए।
बता दें कि देश में जाति जनगणना पर बहस छिड़ी हुई है। कई राजनीतिक दल जातिगत जनगणना कराने की मांग कर रहे हैं। सभी के अपने-अपने तर्क हैं। वे चाहते हैं कि अभी बहुत से लोगों की विकास में हिस्सेदारी नहीं है। उन तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच रहा है। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर एवं विख्यात समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार कहते हैं, जातिगत जनगणना ठीक है, लेकिन इसके विभिन्न आयाम हैं। ये ध्यान रखना होगा कि जातिगत जनगणना, जाति व्यवस्था को नया खाद-पानी देने की तैयारी तो नहीं है।
अगर ये 10-15 साल के वोट बैंक का षडयंत्र है, तो यह ‘बालू का किला’, की तर्ज पर ढह जाएगा। ‘श्रीराम और शबरी’ आपको याद हैं, ‘हिडिम्बा व भीम’ को भूले नहीं हैं। अब श्रीराम का नारा सब जगह नहीं है, भीम से ‘जय भीम’ कैसे हो गया। ऐसा ही कुछ भ्रम अगर जातिगत जनगणना में हैं तो ‘राष्ट्रनिर्माण और जातिगत व्यवस्था’ की आपस में टकराहट भी तय है। बेहतर होगा कि जातिगत जनगणना का आधार सभी के लिए ‘शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आवास एवं अस्मिता’ तक सीमित रहे।
प्रो. आनंद कुमार के अनुसार, समाज में बहुत से बदलाव आ रहे हैं। कई मान्यताएं भी टूटी हैं। आधुनिकता के परिवेश में जाति के आधार पर सामाजिक निकटता का आधार निरर्थक हो चला है। जाति की पारंपरिक निरर्थकता खत्म हो गई। निजी जीवन में सच छिपाया जाता है कि उसे राजसत्ता में हिस्सा मिल जाए।
Source : “अमर उजाला”