• May 18, 2024 2:41 pm

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स क्या हैं, सरकार ने क्यों खोले पूरी दुनिया के लिए दरवाजे

भारत सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड (SGrBs) में पैसा लगाना आसान कर दिया है. ये वो निवेशक होते हैं जैसे बीमा कंपनियां, पेंशन फंड्स और दूसरे देशों के सरकारी निवेश फंड्स.

सॉवरेन (ग्रीन) बॉन्ड दरअसल एक तरह से सरकारी लोन होता है. इन बॉन्ड्स के जरिए मिलने वाले पैसे का इस्तेमाल पर्यावरण को बचाने वाले प्रोजेक्ट्स में किया जाता है. ताकि भारत कम कार्बन वाला देश बन सके और हवा को प्रदूषित करने वाली चीजों को कम किया जा सके.

अब विदेशी निवेश भी आएगा तो भारत के लिए ज्यादा फायदा होगा. इससे भारत अपने लक्ष्य को पाने में तेजी से आगे बढ़ सकता है.

ये भारत के लिए बहुत बड़ा कदम है, क्योंकि भारत सरकार का लक्ष्य साल 2070 तक पूरी तरह से प्रदूषण खत्म करना है. ये लक्ष्य 2021 में प्रधानमंत्रीने COP26 कॉन्फ्रेंस में बताए थे, जिसे ‘पंचामृत’ के नाम से जाना जाता है.

पहली बार सरकार ने कितने बॉन्ड जारी किए?
पिछले साल 2023 में जनवरी और फरवरी में रिजर्व बैंक ने दो किस्तों में कुल 16,000 करोड़ रुपये के सॉवरेन बॉन्ड जारी किए थे. ये बॉन्ड्स 2028 और 2033 में मैच्योर होते हैं. ये बॉन्ड काफी लोकप्रिय हुए थे जितने ज्यादा बेचने का लक्ष्य था, उससे भी ज्यादा लोगों ने इन्हें खरीदने के लिए आवेदन किया. हालांकि ज्यादातर भारत के बैंक और कंपनियों ने ही इन्हें खरीदा. यानी, सरकार जिससे पैसा उधार लेना चाहती थी, उन विदेशी निवेशकों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई.

इसका एक कारण ये भी हो सकता है कि इन बॉन्ड्स को ‘स्टेटुटरी लिक्विडिटी रेश्यो’ (SLR) के अंतर्गत गिना जाता है. SLR वो पैसा होता है जिसे बैंकों को अपने पास नकद के रूप में रखना होता है ताकि वे जरूरत पड़ने पर अपने ग्राहकों को कर्ज दे सकें. वित्त वर्ष 2024 में सरकार का लक्ष्य सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड के माध्यम से 20,000 करोड़ रुपये जुटाना है और वित्त वर्ष 2025 के पहले छह महीनों में 12,000 करोड़ रुपये उधार लेने की योजना है.

सॉवरेन बॉन्ड से मिला पैसा कहां कहां खर्च किया जा सकता है?
भारत सरकार ने ये भी बताया है कि वो सॉवरेन बॉन्ड के जरिए आए विदेशी पैसों को किन-किन परियोजनाओं पर खर्च करेगी. इन्हें इलिजिबल कैटेगरी (Eligible Categories) कहा जाता है.

  • नदियों की साफ सफाई, कूड़ा-कचरा इकट्ठा करने के बेहतर तरीके और पानी की बर्बादी रोकने वाली योजनाएं शामिल हैं.
  • हवा और पानी को साफ रखने के लिए किए जाने वाले काम, जैसे फैक्ट्रियों में धुआं कम करने के उपकरण लगाना या गंदे पानी को साफ करने के लिए प्लांट बनाना.
  • ऐसे घर और दफ्तर बनाना जो पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते. उदाहरण के लिए, कम बिजली खर्च करने वाली इमारतें या फिर कम कचरा पैदा करने वाले दफ्तर.
  • जंगलों का सही तरीके से इस्तेमाल करना और जमीन को बचाने के लिए किए जाने वाले काम करना.
  • जंगलों को बचाना, लुप्तप्राय प्रजातियों की संख्या बढ़ाना जैसी योजनाएं
  • बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए किए जाने वाले काम
  • कम प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को बढ़ावा देना. जैसे सार्वजनिक परिवहन या इलेक्ट्रिक गाड़ियां.
  • कम बिजली खर्च करने वाली मशीनों और इमारतों को बढ़ावा देना.
  • सूर्य की रोशनी, हवा और पानी से बिजली बनाने वाली परियोजनाएं.

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड से भारतीय अर्थव्यवस्था को क्या फायदा?
भारत सरकार के सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स से वातावरण तो सुरक्षित होगा ही, साथ ही ये रुपये को मजबूत बनाने में भी मदद करते हैं. ये बॉन्ड भारतीय रुपये में जारी किए जाते हैं. इससे ज्यादातर भारतीय निवेशक ही इन्हें खरीद सकते हैं. जब ज्यादा लोग इन बॉन्ड्स को खरीदेंगे, तो भारतीय रिजर्व बैंक के पास ज्यादा पैसा आ जाएगा. ज्यादा पैसा होने का मतलब है कि लोगों को रुपये पर भरोसा है. इससे रुपया मजबूत होता है.

अगर ये बॉन्ड डॉलर या किसी और विदेशी मुद्रा में होते तो रुपये के गिरने-बढ़ने का असर पड़ता. लेकिन क्योंकि ये रुपये में ही हैं तो इस झटके से बचा जा सकता है. कुल मिलाकर, सॉवरेन बॉन्ड रुपये को स्थिर रखने में अहम भूमिका निभाएंगे.

सॉवरेन बॉन्ड पर निवेशकों कितना मिलता है ब्याज?
ये जानकर थोड़ा अजीब लग सकता है लेकिन आम सरकारी बॉन्ड्स के मुकाबले सॉवरेन बॉन्ड पर थोड़ा कम ब्याज मिलता है. मान लीजिए आपने 100 रुपये का आम बॉन्ड खरीदा और 5 रुपये का ब्याज मिला, तो सॉवरेन बॉन्ड पर  शायद 4.5 रुपये का ही ब्याज मिले. इस कम ब्याज को ‘ग्रीनियम’ (Greenium) कहते हैं. भारत सरकार दुनियाभर में निवेशकों को ये कम ब्याज स्वीकार करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है ताकि पर्यावरण बचाने वाली परियोजनाओं में ज्यादा से ज्यादा पैसा लगाया जा सके.

अभी तक सिर्फ भारतीय संस्थाएं ही सॉवरेन बॉन्ड खरीद सकती थीं. लेकिन, भारत ने हाल ही में ‘सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड फ्रेमवर्क’ (Sovereign Green Bonds Framework) जारी किया है, जिससे ये साफ पता चलता है कि भारत पर्यावरण को लेकर गंभीर है. इससे विदेशी निवेशकों को भरोसा होगा और वे भारतीय सॉवरेन बॉन्ड्स में पैसा लगाने के लिए उत्साहित होंगे. इसका फायदा ये होगा कि भारत को ज्यादा पैसा मिलेगा और वो तेजी से अपने पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल कर सकेगा.

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड की राह में क्या है चुनौती
पिछले बजट (2022-23) में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सॉवरेन बॉन्ड जारी करने की घोषणा की थी. ये पैसा पर्यावरण को फायदा पहुंचाने वाले सरकारी प्रोजेक्ट्स पर लगाया जाना था, जैसे पवन ऊर्जा या इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देना. लेकिन एक दिक्कत ये है कि अभी तक रिजर्व बैंक ने ये तय नहीं किया है कि किन चीजों को वाकई में “ग्रीन” माना जाएगा. इसे ही ग्रीन टैक्सोनॉमी गैप कहते हैं.

आसान भाषा में समझें तो, मान लीजिए कोई कंपनी कहती है कि वो पेड़ लगा रही है, इसलिए वो हरित है. लेकिन, असल में हो सकता है वो काट भी रही हो. ऐसे में ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि कंपनी वाकई में पर्यावरण के लिए अच्छा काम कर रही है या नहीं. यह एक बड़ी चुनौती है.

सरकार ने पूरी दुनिया के लिए दरवाजे क्यों खोले?
भारत सरकार ने सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स (SGBs) के जरिए निवेश करने के दरवाजे पूरी दुनिया के लिए खोल दिए हैं. क्योंकि भारत को ग्रीन प्रोजेक्ट्स पर निवेश करने के लिए बहुत बड़े फंड की जरूरत है. साथ ही सरकार दुनिया को यह भरोसा दिलाना चाहती है कि हम सच में पर्यावरण को लेकर गंभीर हैं. इससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने में मदद होगी.

सॉवरेन ग्रीन बॉन्ड्स के लिए पूरी दुनिया के दरवाजे खोलने का फैसला एक दूरदर्शी कदम है जो जलवायु परिवर्तन से लड़ने, स्थायी विकास को बढ़ावा देने और भारत को एक वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने में मदद करेगा.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

source abp news

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