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जयशंकर के पांच दिन के अमेरिका दौरे से भारत को क्या हासिल हुआ?

ByPrompt Times

May 31, 2021
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  • भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर का पांच दिन का अमेरिकी दौरा समाप्त हो गया है.

24 से 28 मई के इस दौरे पर जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश, अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवान, अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन और अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन समेत कई अन्य महत्वपूर्ण लोगों से मुलाक़ात की. दौरे से पहले विशेषज्ञों का अनुमान था कि कोरोना वैक्सीन की आपूर्ति और भारत-प्रशांत क्षेत्र में नीतियों के लिहाज़ से ये दौरा अहम है. वहीं, राजनीतिक हलकों में इसे यूं भी अहम माना जा रहा था कि जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद ये किसी शीर्ष भारतीय मंत्री का पहला अमेरिकी दौरा है. भारत को इस दौरे से क्या हासिल हुआ, इस पर बात करने से पहले आपको बताते हैं कि जयशंकर के अमेरिकी दौरे पर क्या-क्या हुआ.

दौरे का पहला हिस्सा

भारतीय कूटनीतिक हितों के लिहाज़ से अमेरिका में न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन के अलग-अलग निहितार्थ होते हैं. जयशंकर के दौरे का पहला पड़ाव न्यूयॉर्क था, जहां वो 24 से 26 मई तक रुके. यहां उन्होंने सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत टीएस तिरुमूर्ति और संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले दल से मुलाक़ात की. जयशंकर ने बताया कि यहां भारत की रणनीति के बारे में अच्छी चर्चा हुई और भारत बड़े समकालीन मुद्दों को दिशा देता रहेगा. 25 मई को जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश से मुलाक़ात की. जयशंकर के ट्विटर हैंडल के मुताबिक़ दोनों के बीच कोविड की चुनौतियों और वैक्सीन उपलब्ध होने की अहमियत पर बात हुई. जयशंकर ने वैक्सीन सप्लाई चेन का मुद्दा उठाते हुए टीके के ज़्यादा उत्पादन और वितरण पर चर्चा की. दोनों के बीच क्लाइमेट ऐक्शन, संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका, भारत के आस-पड़ोस में मौजूद चुनौतियों, म्यांमार और अफ़ग़ानिस्तान संकट पर बात हुई.

मोदी सरकार की छवि के सवाल पर जयशंकर

27 मई को जयशंकर ने न्यूयॉर्क में अमेरिकी पब्लिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट हूवर इंस्टिट्यूट के एक कार्यक्रम में शिरकत की. यहां उन्होंने कोरोना से निपटने में भारत सरकार की नीतियों और भारत के सियासी मुद्दों पर बात की. भारत में हिंदुत्ववादी नीतियों को तरजीह दिए जाने के सवाल के जवाब में जयशंकर ने कहा, “सरकार के फ़ैसलों को देखने पर आप पाएंगे कि सरकार की जो छवि गढ़ी जा रही है, वो सरकार के असली रिकॉर्ड से अलग है. ये ख़ालिस राजनीति है और आपको इसे इसी तरह लेना चाहिए.”

इस आयोजन में जयशंकर ने ये भी कहा, “भारत में पहले वोट-बैंक पॉलिटिक्स पर बहुत ज़ोर था और मतदाताओं को उनकी मान्यताओं के आधार पर लुभाया जाता था. भारत एक बहुलतावादी देश है. हमारे समाज में धर्मनिरपेक्ष का अर्थ सभी मान्यताओं को बराबर सम्मान देना है. धर्मनिरपेक्षता का ये अर्थ नहीं है कि आप अपनी या किसी और की मान्यताओं को नकार दें. आज भारत में लोकतंत्र और मज़बूत हो रहा है.”

अमेरिकी प्रशासन से बातचीत

27 मई को जयशंकर ने अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवान से मुलाक़ात की. दोनों के बीच इंडो-पैसेफ़िक और अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दों पर बात हुई. जयशंकर ने कोविड काल में मिली अमेरिकी मदद के लिए शुक्रिया भी अदा किया. इसी दिन जयशंकर ने भारत-अमेरिका बिज़नेस काउंसिल के सदस्यों, महामारी से राहत के लिए बनाई गई अमेरिकी ग्लोबल टास्क फ़ोर्स, अमेरिकी ट्रेड रिप्रेज़ेन्टेटिव कैथरीन टाई, अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर अवरिल हाइन्स और भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी फ़ोरम के सदस्यों से बातचीत की.

अंत में रक्षा और विदेश मंत्री से मुलाक़ात

दौरे के आख़िरी दिन 28 मई को जयशंकर ने अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड जे. ऑस्टिन से बातचीत की. दोनों के बीच रक्षा और रणनीतिक साझेदारी आगे बढ़ाने और समकालीन सुरक्षा मुद्दों पर बात हुई. जयशंकर ने कोरोना महामारी से निपटने में अमेरिका की भूमिका की तारीफ़ भी की. वहीं अपने अमेरिकी समकक्ष एंटनी ब्लिंकन से जयशंकर की द्विपक्षीय साझेदारी, स्थानीय और वैश्विक मुद्दों, क्वॉड, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद को लेकर बात हुई. जयशंकर ने ब्लिंकन से वैक्सीन साझेदारी और वैक्सीन आपूर्ति को लेकर भी बात की. ब्लिंकन से बातचीत के बाद पत्रकार-वार्ता में जयशंकर से राहुल गांधी के ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी’ वाले बयान पर प्रतिक्रिया मांगी गई, लेकिन जयशंकर ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. राहुल गांधी ने आरोप लगाया था कि ‘वैक्सीन डिप्लोमेसी की वजह से सरकार भारतीयों को भारी संख्या में वैक्सीन न लगाकर वायरस को म्यूटेट होने का मौका दे रही है’.

दौरे को कैसी प्रतिक्रिया मिली?

अमेरिका में हुई हर मुलाकात की जानकारी विदेश मंत्री ने ट्विटर पर साझा की. हालांकि, इन ट्वीट्स में उन्होंने बातचीत के मुद्दों से इतर कोई जानकारी नहीं दी थी. जयशंकर से मुलाक़ात करने वाले अमेरिकी प्रतिनिधियों ने भी ट्विटर पर बातचीत के मुद्दों से ज़्यादा कुछ साझा नहीं किया. भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से भी इस दौरे को लेकर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

दौरे को कैसे देखा जाना चाहिए?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस दौरे से भारत को क्या हासिल हुआ है, ये समझने के लिए एक से दो हफ़्ते इंतज़ार करना चाहिए. विदेश मामलों के जानकार हर्ष वी. पंत कहते हैं, “जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद ये भारत की ओर से पहला बड़ा दौरा था. परंपरा के मुताबिक़ तो इसे फ़रवरी-मार्च में ही हो जाना चाहिए था, लेकिन कोविड की वजह से इसमें कुछ देरी हुई.” “जहां तक स्वास्थ्य संकट का सवाल है, तो भारत पहले ही कह चुका है कि अमेरिका हमारे साथ खड़ा है. वहीं वैक्सीन से जुड़े मुद्दों को लेकर हमें एक-दो हफ़्तों में पता चल सकता है कि दौरे से क्या नतीजा मिला है.”

विदेश नीतियों पर निगाह रखने वाले प्रणय कोटस्थाने भी कहते हैं, “दोनों देशों के बयानों से पता चलता है कि ये दौरा वैक्सीन उत्पादन, म्यांमार और अफ़ग़ानिस्तान के राजनीतिक हालात और वैक्सीन उत्पादन के लिए कच्चा माल मुहैया कराने पर केंद्रित रहा है. इस दौरे का नतीजा आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है.”

वैक्सीन को लेकर क्या उम्मीद?

विशेषज्ञ मानते हैं कि वैक्सीन की आपूर्ति के एलान को लेकर भारत को कुछ इंतज़ार करना पड़ सकता है. वैक्सीन के मसले पर हर्ष बताते हैं, “विदेश मंत्री के दौरे से पहले उम्मीद जताई जा रही थी कि भारत को अमेरिका के वैक्सीन भंडार में से कुछ वैक्सीन मिल सकती हैं, लेकिन इस पर फ़ैसला जल्द स्पष्ट नहीं होगा.” “वैसे भी इस दौरे पर वैक्सीन को लेकर सरकार से कम और प्राइवेट सेक्टर के साथ बातचीत ज़्यादा हुई है. अमेरिकी सरकार अपने स्टैंड के मुताबिक़ पहले ही कई क़दम उठा चुकी है, लेकिन जहां प्राइवेट कंपनियों को क़दम उठाने हैं, वहां सरकार की भूमिका कम है.”

भौगोलिक रणनीति और चीन के मुद्दे पर रुख़

चीन को लेकर भारत-अमेरिका की साझेदारी और क्वॉड को लेकर प्रणय कहते हैं, “जयशंकर और ब्लिंकन पहले भी साथ काम कर चुके हैं और मुझे लगता है कि इस दौरे से क्वॉड की संकल्पना को भविष्य में और मज़बूती मिलेगी.” वहीं, हर्ष बताते हैं कि अमेरिका और भारत मिलकर चीन की वैक्सीन डिप्लोमेसी का असर कम करना चाहते हैं. इसकी बानगी हमें बांग्लादेश से आए बयान से भी मिलती है, जिन्होंने भारत से अमेरिका दौरे पर उनके हितों को ध्यान में रखने की गुज़ारिश की थी. इस पूरे मामले में अच्छी बात ये है कि अमेरिका के कई स्टैंड भारत के पक्ष में हैं. जहां तक भारत की सियासत पर बयानबाज़ी और जयशंकर के रुख़ का सवाल है, तो प्रणय इसमें कुछ भी नया नहीं पाते. वो कहते हैं, “पहले भी शीर्ष मंत्री ऐसे मंचों पर देश की अंदरूनी राजनीति को सतह पर लाने से बचते रहे हैं और इस दौरे पर भी इसमें कुछ अलग नहीं है.”


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