• July 1, 2024 3:53 pm

ईरान में ये क्या हुआ! कौन है कट्टरपंथी सईद जलीली? शिया धर्मगुरु मुस्तफा को राष्ट्रपति चुनाव में पछाड़ा

ByADMIN

Jun 29, 2024

Iran presidential election 2024: ईरान को नया राष्ट्रपति मिलने वाला है. ईरान में राष्ट्रपति पद के चुनाव परिणाम के शुरुआती रुझान में कट्टरपंथी सईद जलीली ने अपनी बढ़त बना ली है, आइए जानते हैं कौन हैं कट्टरपंथी सईद जलीली जिन्होंने शिया धर्मगुरु मुस्तफा को राष्ट्रपति चुनाव में पछाड़ दिया है.  

Saeed Jalili leads Iran presidential election: राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की विमान दुर्घटना में मौत के बाद हुए राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम आने शुरू हो गए हैं. शुरुआती रुझान में कट्टरपंथी उम्मीदवार सईद जलीली ने बढ़त बना ली है जबकि सुधारवादी उम्मीदवार मसूद पेजेशकियन दूसरे स्थान पर हैं. इस चुनाव की सबसे खास बात शिया धर्म से जुड़े उम्मीदवार इस चुनाव में बहुत पिछड़ गए हैं.

शिया धर्मगुरु मुस्तफा पूरमोहम्मदी बहुत बुरी तरह से सईद से पीछे
आंतरिक मंत्रालय के अधिकारी मोहसेन इस्लाम के मुताबिक 28 जून को हुए इलेक्शन के अब तक गिने गए 10.3 मिलियन से ज्यादा वोटों में से शुरुआती रुझानों में सईद जलीली को एक करोड़ से अधिक वोट मिले हैं जबकि पेजेशकियन को 42 लाख वोट मिले है.  संसद के कट्टरपंथी स्पीकर मोहम्मद बाघेर कलीबाफ को 13 लाख 80 हजार वोट मिले. शिया धर्मगुरु मुस्तफा पूरमोहम्मदी को करीब 80,000 वोट मिले हैं.

अगर 50% वोट नहीं मिला तो होगा दोबारा चुनाव
ईरानी कानून के अनुसार विजेता को डाले गए सभी वोटों का 50% से अधिक वोट मिलना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है, तो दौड़ के शीर्ष दो उम्मीदवार एक सप्ताह बाद होने वाले दूसरे दौर के चुनाव में आगे बढ़ेंगे. ईरान के इतिहास में सिर्फ़ एक बार दूसरे दौर का राष्ट्रपति चुनाव हुआ है: 2005 में, जब कट्टरपंथी महमूद अहमदीनेजाद ने पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफ़सनजानी को हराया था.

कौन हैं सईद जलीली
सईद जलीली राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग (NSC) के पूर्व सचिव रहे चुके हैं. वह देश के प्रमिुख परमाणु वार्ताकार रह चुके हैं. उन्होंने पश्चिमी देशों और ईरान के बीच परमाणु हथियारों को लेकर हुई बातचीत में अहम भूमिका निभाई थी. परमाणु हथियार को लेकर उनका आक्रामक रुख रहा है. वे कट्टरपंथी खेमे के माने जाते हैं और अयातोल्ला खामेनई के काफी करीबी हैं. राष्ट्रपति पद के लिए इनका दावा सबसे मजबूत माना जा रहा है.  वर्तमान में जलीली एक्सपीडिएंसी डिस्कर्नमेंट काउंसिल के सदस्य हैं.

अपने कट्टर रुख के लिए जाने जाने वाले जलीली ईरान के मुख्य परमाणु वार्ताकार थे और इससे पहले यूरोपीय और अमेरिकी मामलों के लिए उप विदेश मंत्री के रूप में कार्य कर चुके हैं. 2013 के चुनावों में वे तीसरे स्थान पर रहे और 2021 के चुनावों में इब्राहिम रईसी के पक्ष में नाम वापस ले लिया था.

इस चुनाव में 80 लोगों ने किया था आवेदन
इस बार भी लगभग 80 लोगों ने चुनाव लड़ने के लिए आवेदन दिया था, जिनमें छह को ही मंजूरी दी गई. इन छह प्रत्याशियों के नाम हैं: सईद जलीली, अली राजा जकानी, आमिर हुसैन काजीजादेह, मोहम्मद बाकर, मुस्तफा पोरमोहम्मदी और मसूद पेजेशकियान. ईरानी मीडिया की खबरों के मुताबिक, इन छह में से दो उम्मीदवार आमिर हुसैन काजीजादेह हाशमी और अली राजा जकानी मैदान से हट गए थे.

तीन कट्टरपंथी उम्मीदवार
मतदाताओं को तीन कट्टरपंथी उम्मीदवारों और हार्ट सर्जन, सुधारवादी पेजेशकियन के बीच चुनाव करना था. जैसा कि 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से होता आया है, महिलाओं और कट्टरपंथी बदलाव की मांग करने वालों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया है और मतदान पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त निगरानीकर्ताओं की कोई निगरानी नहीं थी.

मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय 
राजनीति के कई जानकारों के मुताबिक, मुख्य मुकाबला त्रिकोणीय है. तीन प्रमुख उम्मीदवारों में से एक सईद जलीली हैं, जो ईरान के प्रमुख परमाणु वार्ताकार और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य रहे हैं. इन्हें कट्टरपंथी धड़े का माना जाता है. इनके अलावा ईरान की संसद के स्पीकर और राजधानी तेहरान के पूर्व मेयर मोहम्मद बाकर और 2015 के परमाणु समझौते की ओर लौटने के हिमायती मसूद पेजेशकियान भी मुकाबले में हैं. मोहम्मद बाकर के सेना के साथ मजबूत संबंध हैं और उनके जीतने की मजबूत संभावना जताई जा रही है.

सुधारवादी नेता कौन?
सभी उम्मीदवारों में केवल मसूद पेजेशकियान ही सुधारवादी बताए जा रहे हैं. वह देश की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए पश्चिमी देशों के साथ संबंध दुरुस्त करना चाहते हैं. समाचार एजेंसी एपी के मुताबिक, 28 जून को वोट डालने के बाद पेजेशकियान ने बयान दिया कि अगर वह जीतते हैं, तो पश्चिमी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाने की कोशिश करेंगे. उनके इस बयान पर सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह अली खमेनेई की सख्त प्रतिक्रिया आई है.

ईरान में चुनाव को लेकर खासा उत्साह नहीं
ईरान के हालिया चुनावों में मतदान प्रतिशत कम रहा है. 1 मार्च को हुए संसदीय चुनावों में भी जनता में मतदान के लिए बहुत उत्साह नहीं दिखा था. अर्थव्यवस्था की तंगहाली, पश्चिमी देशों से तनाव और यूक्रेन युद्ध में रूस को समर्थन दिए जाने जैसे कारणों से ईरान के कई लोग मतदान नहीं करने की बात कह रहे थे. संसदीय चुनावों के समय समाचार एजेंसी एपी ने 21 लोगों का इंटरव्यू किया था, जिनमें सिर्फ पांच लोगों ने वोट डालने की बात कही.

58,640 मतदान केंद्र बनाए गए थे
देशभर में 58,640 मतदान केंद्र बनाए गए थे. इनके लिए मस्जिदों, स्कूलों और अन्य सरकारी इमारतों का इस्तेमाल किया गया. 18 साल या इससे अधिक उम्र के ईरानी नागरिक अपना परिचय पत्र दिखाकर और एक फॉर्म भरकर वोट डाले.

भारत की तरह होता है चुनाव
भारत की ही तरह यहां भी मतदाताओं की उंगली पर स्याही लगाई जाती है, ताकि लोग एक बार ही वोट डालें. मतदान केंद्र पर मौजूद अधिकारी वोटरों के परिचय पत्र पर आधिकारिक मुहर भी लगाते हैं. मतदान गोपनीय होता है. मतदाता बैलेट पेपर पर उस उम्मीदवार का नाम और क्रमांक संख्या लिखते हैं, जिन्हें वह वोट देना चाहते हैं. मतदान का समय सुबह आठ से शाम छह बजे तक होता है. हालांकि, कम वोटिंग को देखते हुए अक्सर प्रशासन तयशुदा समय खत्म होने के कई घंटे बाद तक मतदान प्रक्रिया जारी रखता है.

राष्ट्रपति का कितने दिन का होता है कार्यकाल
ईरान में राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता है. एक व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक ही राष्ट्रपति रह सकता है. ईरान में असली ताकत सुप्रीम लीडर की मानी जाती है, लेकिन राष्ट्रपति घरेलू और विदेशी नीति के स्तर पर बदलाव ला सकता है. मसलन, 2015 में पश्चिमी देशों के साथ हुए परमाणु समझौते में पूर्व राष्ट्रपति हसन रोहानी की अहम भूमिका रही थी. हालांकि, बीते सालों में पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते तनाव के बीच सुप्रीम लीडर की ताकत और बढ़ गई है.

जंग के बीच ईरान में चुनाव
ये चुनाव ऐसे समय में हो रहे हैं, जब इजराइल-हमास के बीच जारी युद्ध को लेकर पश्चिम एशिया में व्यापक स्तर पर तनाव है और ईरान पिछले कई वर्षों से आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.

इब्राहिम रईसी की मौत के बाद हो रहा चुनाव
63 वर्षीय रईसी की मृत्यु 19 मई को हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई थी, जिसमें देश के विदेश मंत्री और अन्य लोग भी मारे गए थे। उन्हें ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई के शिष्य और संभावित उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था।

SOURCE – ZEE NEWS HINDI

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