• July 3, 2024 4:18 am

काशी में मनाई जाने वाली मसान की होली का क्या है इतिहास, जानें क्यों है प्रसिद्ध

होली के त्योहार को काशी में एक अलग परंपरा के साथ हर साल निभाई जाती है. काशी में हर साल मसान की होली बड़े ही धूमधाम से खेली जाती है. जिसका अपना एक अलग महत्व है.

हिन्दू धर्म में उत्तर प्रदेश के बनारस में मसान की होली का बहुत महत्व है. यहां के लोग एक अलग ही तरीके के होली का त्योहार मनाते हैं. मसान की होली खेलने के लिए लोग श्मशान घाटों पर जाते हैं और वहां पर चिता की राख से होली खेलते हैं. इस होली मुख्य उद्देश्य अपने पूर्वजों को याद करना और उनकी आत्मा को शांति देना होता है. इसलिए यहां के लोग भगवान शिव की पूजा करते हैं और पूरी श्रद्धा भाव के साथ मसान की होली मनाते हैं.

खासतौर पर होली के मौके पर हर साल बाबा विश्वनाथ मंदिर और असी घाट पर भारी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं और होली का आनंद लेते हैं. इसे मसान होली कहा जाता है क्योंकि यह उत्सव श्मशान घाटों में मनाया जाता है जो कि मसान के रूप में जाना जाता है.

कब है मसान की होली?

हिन्दू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर साल मसान होली मनाई जाती है. ऐसी मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मसान की होली खेली जाती है. इस साल बनारस में 21 मार्च को मसान की होली खेली जाएगी. इस त्योहार पर लोग चिता की राख से होली खेलते हैं. इस दिन मां पार्वती और भगवान शिव की भी विशेष पूजा की जाती है.

मसान की होली का इतिहास

बनारस की मसान की होली को ‘चिता भस्म होली’ कहा जाता है, एक अनोखी और प्राचीन परंपरा है. यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि मृत्यु पर शोक मनाने के बजाय, मृत्यु को जीवन का एक चक्र मानकर मनाया जाना चाहिए. मसान की होली भगवान शिव को समर्पित है, जो मृत्यु के देवता भी हैं. काशी की मसान की होली एक अनोखा और अद्भुत त्योहार है जो हर साल होली के दिन मनाया जाता है. यह त्योहार मृत्यु पर विजय का प्रतीक माना जाता है.

ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने मृत्यु के देवता यमराज को पराजित करने के बाद मसान में होली खेली थी. इस घटना को यादगार बनाने के लिए, बनारस के लोग हर साल मसान की होली खेलते हैं. बता दें कि मसान होली हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है. यह त्योहार दो दिनों तक चलता है. पहले दिन लोग चिता भस्म इकट्ठा करते हैं और दूसरे दिन होली खेलते हैं. मसान की होली में शामिल होने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं.

जानें क्यों प्रसिद्ध है मसान की होली?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने मसान की होली की शुरुआत की थी. ऐसा माना जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना कराने के बाद उन्हें काशी लेकर आए थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ रंग-गुलाल के साथ होली खेली थी, लेकिन वे श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गन्धर्व, किन्नर जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे. इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद भोले शंकर ने श्मशान में रहने वाले भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी. तभी से काशी विश्वनाथ में मसान की होली खेलने की परंपरा चली आ रही है. चिता की राख से होली खेलने की वजह से ये परंपरा देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है.

मसान की होली किस बात का है संदेश?

पूरी दुनिया में भारत का काशी ही इकलौता ऐसा शहर है जहां मसान की होली (चिता की राख से होली) खेली जाती है. चिता भस्म की होली पर काशी विश्वनाथ के भक्त जमकर झूमते हैं. महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर हर हर महादेव के नारे गूंजते हैं. इस अवसर पर देवाधिदेव महादेव के भक्त चिता भस्म की होली खेलते हैं. मणिकर्णिका घाट हर-हर महादेव से गूंज उठता है. होली के मौके पर चिता की भस्म को अबीर और गुलाल एक दूसरे पर अर्पित कर सुख, समृद्धि, वैभव संग शिव का आशीर्वाद पाते हैं. मसान की होली इस बात का संदेश देती है शिव ही अंतिम सत्य है. शिवपुराण और दुर्गा सप्तशती में भी मसान की होली का वर्णन किया गया है.

 

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