संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 48 करोड़ के आसपास है. वहीं इसका लगभग 22 प्रतिशत आदिवासी भारत देश में रहते हैं.
भारत में आदिवासियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ कहा जाता है. इतना ही नहीं हमारे देश के इतिहास में कई ऐसे संघर्ष और सत्याग्रह दर्ज हैं जिसमें आदिवासी समुदाय ने जल, जंगल, जमीन को आबाद करने में अपना योगदान दिया है. उदाहरण के तौर पर झारखंड को ही ले लीजिये. इस राज्य में जल, जंगल, जमीन को आबाद करने का आदिवासी-मूलवासी किसान समुदाय का अपना गौरवशाली इतिहास है.
ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर भारत में आदिवासियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ क्यों कहा जाता है और ये आदिवासी होते कौन हैं?
आदिवासी यानी ST होते कौन हैं?
आदिवासी को वनवासी, गिरिजन, मूलनिवासी, देशज, स्वदेशी जैसे कई नामों से जाना जाता है. आदिवासी शब्द का मतलब होता है ऐसे लोग जो काफी शुरुआत से ही यहां रह रहे हों. ऐसे लोगों को सरकारी और कागज़ी तौर पर अनुसूचित जनजाति भी कहा जाता है.
आमतौर पर अनुसूचित जनजातियां यानी एसटी समूह मुख्यधारा के समाज से काफी अलग थलग रहते हैं. आदिवासियों का समाज और इनके रीति-रिवाज तक आम लोगों से काफी अलग होते हैं.
आदिवासी समाज अपने अलग नियम- कानून बनाते हैं और उसे ही मानते भी हैं. इस समुदाय की खास बात ये है कि ये किसी भगवान को नहीं मानते, उनके लिए प्रकृति ही सब कुछ है. आमतौर पर आदिवासी समाज जंगलों और पहाड़ों में रहते हैं.
भारत में कितने आदिवासी समुदाय
भारत के आदिवासी समुदाय की बात की जाए तो यहां कुल कुल 705 आदिवासी समुदाय हैं जो सरकारी तौर पर एसटी यानी अनुसूचित जनजातियों के रूप में लिस्टेड है. साल 2011 में हुए जनगणना के अनुसार, भारत में आदिवासियों की कुल आबादी 10.43 करोड़ के करीब है. यह देश की कुल आबादी का 8% से ज्यादा है. इनमें से कुछ ज्यादातर आदिवासी समुदाय छत्तीसगढ़ तो कुछ झारखण्ड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान में रहते हैं.
क्यों कहा जाता है अनुसूचित जनजाति
भारत के संविधान में आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी कैटेगरी की मान्यता दी गई है. ‘अनुसूचित’ शब्द एक विशिष्ट सूची या अनुसूची में उनके शामिल होने का प्रतीक है, जो इस समुदाय के लोगों को संवैधानिक सुरक्षा उपाय, सुरक्षा और सकारात्मक कार्रवाई प्रदान करता है.
संविधान में अनुसूचित जनजातियों के लिए प्रमुख प्रावधान
भारत के संविधान में अनुसूचित जनजातियों के उत्थान के लिए कई विशेष प्रावधान हैं. इनमें विधायी निकायों, शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में सीटों का आरक्षण शामिल है. इन प्रावधानों का लक्ष्य आदिवासी समुदायों के लिए प्रतिनिधित्व, अवसर और सकारात्मक कार्रवाई प्रदान करना है.
पांचवीं अनुसूची: भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित है. यह अनुसूची जनजातीय सलाहकार परिषदों की नियुक्ति, जमीन और संसाधनों पर जनजातीय अधिकारों की सुरक्षा और जनजातीय भूमि के हस्तांतरण के विनियमन का प्रावधान करता है.
छठी अनुसूची: संविधान की छठी अनुसूची देश के पूर्वोत्तर राज्यों जैसे- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है. यह अनुसूची इन क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के हितों की रक्षा और विकास को बढ़ावा देने के लिए विधायी और कार्यकारी शक्तियों के साथ स्वायत्त जिला परिषदों की स्थापना करता है.
वन अधिकार अधिनियम: यह अधिनियम आदिवासियों सहित वन-निवास समुदायों के उनकी पैतृक भूमि और संसाधनों पर अधिकारों को मान्यता देता है.
शिक्षा और रोजगार क्षेत्र में अनुसूचित जनजाती के लिए क्या?
अनुच्छेद 15 (4): अनुच्छेद 15 (4) के तहत शैक्षणिक संस्थानों में एसटी के लिए आरक्षण प्रदान किया गया है.
अनुच्छेद 16: संविधान के अनुच्छेद 16 (4), 16 (4ए) और 16 (4बी) में पदों और सेवाओं तथा पदोन्नति के मामलों में आरक्षण प्रदान किया गया है.
अनुच्छेद 46: अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने के लिए इस अनुच्छेद को शामिल किया गया है. इसमें प्रावधान है कि राज्य अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विशेष देखभाल के साथ बढ़ावा देना. इतना ही नहीं आदिवासियों को सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से बचाएगा.
राजनीति में अनुसूचित जनजाति के लिए क्या
अनुच्छेद 330 और 332: इन दोनों अनुच्छेद में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के आरक्षण की बात कही गई है.
अनुच्छेद 243 डी: सीटों का आरक्षण (पंचायतों में) सुरक्षा उपायों की निगरानी के लिए एजेंसी
भारत में अनुसूचित जनजातियों की आबादी
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत में फिलहाल अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.45 करोड़ है. तो केवल झारखंड में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 86,45,042 है.
झारखंड की अनुसूचित जनजाति के बारे में भी जान लीजिए
झारखंड में वर्तमान में कुल 32 जनजातियां हैं, जिनमें से 24 प्रमुख जनजातियों की श्रेणी में हैं. अन्य आठ को आदिम जनजातियों की कैटेगरी में रखा गया है. इन आठ जनजातियों में बिरहोर, बिरजिया, सौरिया पहाड़िया, माल पहाड़िया, कोरवा, असुर, परहिया और सबर शामिल हैं.
झारखंड अनुसूचित जनजाति की आबादी के हिसाब से भारत में छठे स्थान पर है. यहां कुल आदिवासी आबादी की 8.3% संख्या रहती है.
2011 के जनगणना के अनुसार झारखंड में आदिवासियों की संख्या 86,45,042 है, जो कि राज्य की कुल आबादी का 26.2 प्रतिशत है. इसमें आदिम जनजाति 1,92,425 हैं, जो कि कुल आबादी का 0.72 फीसदी है.
साल 1951 की बात की जाए तो उस वक्त अविभाजित बिहार में आदिवासियों की संख्या 36.02% थी. यानी साल 2011 की जनगणना में आदिवासी की आबादी में 10% गिरावट आयी है.