हिन्दू धर्म में शादी की कई परंपराएं आमतौर पर देखने को मिलती है. हालांकि शादी के लिए हर किसी के अपने-अपने रिती-रिवाज होते हैं, जिसके अनुसार सब शादी-विवाह करते हैं. हिंदू धर्म में शादी से पहले कुछ अहम रस्में निभाई जाती हैं, इनमें से तेल और पानी की एक जरूरी रस्म है. ज्यादातर लोगों ने हिंदू धर्म में होने वाली तेल और पानी की रस्म को देखा होगा. क्या आप जानते हैं कि तेल और पानी की रस्म क्यों मनाई जाती है और इस रस्म का क्या महत्व है.
शादी से पहले तेल और पानी की रस्म में दूल्हा और दुल्हन को तेल और पानी चढ़ाने के लिए घर के आंगन में एक सादा चौक बनाया जाता है और उस चौक पर दूल्हा और दुल्हन को बैठाया जाता है. दूल्हा और दुल्हन को मां या भाभी एक प्लेन थााली में तेल और पानी मिलाकर चढ़ाती हैं. इसके साथ ही रस्म को लेकर महिलाएं ढोलक की धुन के साथ कुछ गीत भी गाती हैं. इसके साथ ही लड़कियां भी तेल पानी लगाती हैं. बाद में भाभी, चाची दूल्हा और दुल्हन को तेल पानी चढ़ाती हैं.
तेल चढ़ाती हैं ये महिलाएं
तेल और पानी की रस्म मनाने के साथ उसी दिन दो नए पटे रखे जाते है. नया कलश व थाली में सात सौभाग्य शाली महिलाएं तेल चढ़ाती है और उनको सकोरे दिए जाते है. लड़की के मुंह (चेहरा) हाथ पैर आदि पर ऐपन लगाया जाता है. तभी ये रस्म पूरी मानी जाती है.
दूल्हा और दुल्हन तेल और पानी की रस्म के बाद स्नान करते हैं. स्नान के बाद मामा उनको पाटा उतारते हैं. उस समय पाटे के पास पाले मिटटी के रखकर उसको एक पैर से फोड़ा जाता है. पाटा उतार कर मामा गोद में लेकर दूल्हा दुल्हन को मांडे के नीचे छोड़ता है और दूल्हे को निकास के लिए बैठाता है.