शारदीय नवरात्र के साथ-साथ इस चुनावी मौसम में फूलों का बाजार अपने पूरे शबाब पर है। मां भगवती की आराधना के अलावे चुनावी दंगल को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों की रैलियों और रोड शो में ज्यादे से ज्यादे फूलों का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसी स्थिति में कोरोना की वजह से उजड़े चमन में फिर से बहार लौट आई है।
मांग के अनुरूप फूलों के दाम भी बढ़े हैं। खासकर गेंदा के फूलों की बिकवाली सर्वाधिक है। चूंकि नेता इसी फूल से निर्मित माला को गले के हार के रूप में इन दिनों ज्यादे पसंद कर रहे हैं। बक्सर जिले के सिमरी दुधिपट्टी गांव निवासी फुल व्यवसायी गोविद मालाकार का कहना है कि गत 15 दिनों पूर्व तक जहां गेंदा का फूल प्रतिदिन दो से ढाई क्विटल तक बिकता था, आज नवरात्र और चुनाव को लेकर उसकी मांग कई गुना अधिक बढ़ गई हैं।
धर्मेंद्र मालाकार ने कहा कि चुनाव के चलते नेताओं के समर्थक किसी भी कीमत पर फूल मालाएं खरीदने के लिए तैयार हैं। क्योंकि, अपने समर्थक प्रत्याशियों के स्वागत में कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाह रहा है।
मांग बढ़ने से फूलों की कीमतों में आया उछाल
आम दिनों में जहां गेंदा फूल के एक माला की कीमत सात रुपये थी आज बीस रुपये तक बिक रही है। गेंदा फूल उत्पादक किसानों का कहना है कि गत दो सप्ताह पहले उन्हें फूल माला की बिक्री करने जिला मुख्यालय जाना पड़ता था। आज स्थिति बिल्कुल विपरीत हो गई है। विभिन्न फूल मंडियों से जुड़े व्यवसायी खुद फूल की खरीदारी करने खेतों तक पहुंच रहे हैं। पहले राज्य के विभिन्न हिस्सों से जिले में फूल का आवक होता था। कोरोना महामारी के चलते ट्रेन सेवा बंद होने से फूल का कारोबार ग्रामीण फूल उत्पादक किसानों के भरोसे है और इसका बेहतर लाभ भी उन्हें मिल रहा है। बीस एकड़ में हुई है गेदा फूल की खेती
प्रखंड क्षेत्र में फूल उत्पादक किसानों ने लगभग बीस एकड़ में गेंदा फूल की खेती की है। चुनावी मौसम में फसल अच्छी होने के कारण इस बार ज्यादे मुनाफे के आसार भी है।चन्नालाल मालाकार का कहना है कि एक एकड़ गेंदा फूल की खेती में लगभग पैतीस से चालीस हजार रुपये खर्च हुआ है। बंगाल से मंगाए गए उत्तम किस्म के बीज के चलते फूल की पैदावार भी बहुत अच्छी हुई है। इतना ही नहीं फूलों की बिकवाली भी जोरों पर है। जिले के अलावे यूपी के व्यापारी भी फूलों की खरीद करने आ रहे हैं। फूल तोड़कर जीविका चलाने वाले मजदूरों के लौटे दिन वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण काल के दौरान भले ही फूल तोड़कर परिवार के भरण पोषण करने वाले दैनिक मजदूरों के समक्ष जो रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गई थी। मगर चुनाव ने उनकी जिदगी को पुन: पटरी पर ला खड़ा कर दिया है। दिनेश कुमार, सुरेश चंद्र, विमल, अशोक सहित कई अन्य दैनिक मजदूरों ने बताया कि फूल तोड़कर प्रतिदिन मंडी तक पहुंचा देने के लिए पारिश्रमिक के तौर पर किसानों से उन्हें अच्छी मजदूरी मिलती थी। कोरोना की नजर लग जाने से उनका काम धंधा चौपट हो गया था। हालांकि, नवरात्र और चुनाव में बढ़ी फूलों की डिमांड को लेकर उन्हें प्रतिदिन खेतों में काम करने का मौका मिल रहा है।