• May 19, 2024 7:37 am

पटना आर्ट कॉलेज से पढ़ बड़े आर्टिस्ट बने, अब ऊंचे पहाड़ों पर रहकर बनाते हैं पेटिंग

20 जून 2022 | त्रिभुवन देव का नाम पहाड़ पर फोटोग्राफी, पहाड़ पर पेटिंग और बाइक से पहाड़ चढ़ाई करने के लिए जाना जाता है। पटना के आर्ट कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की और फिर शिमला, मनाली जैसे पहाड़ों पर लंबा समय बिताया। पहाड़ पर रहकर पेटिंग करने और फोटोग्राफी करने के लिए पहाड़ पर होटल भी चलाने लगे। इन दिनों बिहार म्यूजियम में पटना के त्रिभुवन की पहाड़ों वाली पेटिंग की खूबसूरत प्रदर्शनी लगी है। यह रेस्ट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी है यानी त्रिभुवन ने अब तक के समय में जो बेहतर पेटिंग बनाई है उसकी प्रदर्शनी। हालांकि एक हॉलनुमा कमरे में किसी बड़े कलाकार के लिए अपनी सभी खास पेंटिंग्स को लगाना कठिन है।

पहाड़ सिर्फ पहाड़ नहीं

बिहार म्यूजियम में त्रिभुवन ने आर्ट कॉलेज, पटना में पढ़ते हुए डाक बंगला चौराहा, गंगा घाट आदि की जो पेंटिंग बनाई थी उसे भी लगाया है। उनकी बड़ी पेटिंग को आप देखेंगे तो उसमें आपको सीधे-सीधे पहाड़ नहीं दिखेगा। उसमें पहाड़ के ऊपर से नीचे की तरफ दिखती हुई दुनिया पतली नदी, पहाड़ से रिस्ता हुआ पानी, बर्फ के हटने के बाद पहाड़ के बदन पर लड़े निशान, छोटी सी नाव इस तरह से दिखेंगे जैसे कई बार पहाड़ आने-जाने के बाद दूसरी आंख से यह सब देख रहे हों।

त्रिभुवन कई बार पहाड़ को उसके अध्यात्म के साथ देखते हैं। कई बार उसके पूरे दुख के साथ, कई बार उसकी जवानी और उमंग के साथ देखते हैं। पहाड़ पर पड़ती सूरज की किरण पहाड़ को सिर्फ पहाड़ नहीं रहने देती, उसे जीवन से जोड़ देती है त्रिभुवन को उसमें स्त्री-पुरुष के बीच का खिंचाव दिखने लगता है। वे कहते हैं काफी वर्षों से पहाड़ को देखने से माइक्रो चीजें दिखनी लगींं। उसे मैंने कैनवास पर लाया। नेचर से बड़े क्रिएशन कोई नहीं कर सकता।

जहानाबाद के कौवाडोल पहाड़ी पर बनाई पेंटिंग

पहाड़ के कई शेड्स इस प्रदर्शनी में हैं। रुई जैसा हल्का पड़ा, दुखों जैसा भारी पहाड़, पानी बनता पहाड़, आकाश बनता पहाड़। इन पेटिंग्स को आप देखें तो आप पाएंगे आप किसी छोटे पत्थर की तरह लुढक कर नीचे आ रहे हैं बहुत तेजी के साथ और आपको अपनी जीवन की कई तरह की घटना याद आने लगती है। जहानाबाद के कौवाडोल पहाड़ी को उन्होंने गहरे शेड में बनाया है। गौर से देखेंगे तो उसमें पानी है और नाव भी है। पहाड़ से चूता हुआ पानी अलग है और नाव वाला पानी अलग। पहाड़ के साथ ही पानी के कई रंग, धूप के कई रंग, अंधेरे के कई रंग दिखते हैं। ये पहाड़ आपको कैनवास से निकलकर छूने लगते हैं।

बिहार के बेगूसराय के रहनेवाले हैं त्रिभुवन

हमने त्रिभुवन से उनकी पेटिंग यात्रा पर बात की। उन्होंने शुरुआती दिनों से बताना शुरू किया। कहा कि उनका पहला सोलो एग्जीबिशन जब दिल्ली में लगा था तो वह पटना की गंगा पर था। उसे देखने मकबूल फिदा हुसैन भी आए थे। उनका जन्म उनके नानीघर समस्तीपुर के रोसड़ा में हुआ और घर है बेगूसराय। जब त्रिभुवन पटना से अपने पिता के पास आते -जाते तो रास्ते में पारसनाथ की पहाड़ियां मन में रोमांच पैदा करतीं। उनके मित्र संजय दत्ता ने उनसे कहा कि तुम मनाली चले जाओ। मनीली में लीज पर होटल ले लिया और वहीं स्टूडियो भी बना लिया। लंबे समय तक मनाली में पहाड़ को, वहां के जीवन को कैनवास पर उतारते रहे। उन्होंने कई एग्जीबिशन विदेश में भी लगाया है। त्रिभुवन की पहाडों वाली चित्र प्रदर्शनी को देखकर लगता है पहाड़ हमारे अंदर, वह पिघलता भी है और दरकता भी।

सोर्स;- ‘’दैनिकभास्कर’’

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