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कोरोना दौर में एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ता देश

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Jan 14, 2021
कोरोना दौर में एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ता देश
  • ओमान के सुल्तान ने एक बड़े संवैधानिक फेरबदल का ऐलान किया है. इस फेरबदल के तहत पहली दफ़ा एक युवराज (क्राउन प्रिंस) की नियुक्ति की जाएगी. इसके अलावा, कई बड़े सुधारों का भी ऐलान किया गया है.
  • माना जा रहा है कि इस बड़े रद्दोबदल के तहत ओमान के सुल्तान देश को ज़्यादा आधुनिक बनाने और क़ानूनी व्यवस्थाएं दुरुस्त करने की कोशिश कर रहे हैं.
  • क्राउन प्रिंस की नियुक्ति के उत्तराधिकार को लेकर किसी भी तरह के विवादों को रोकने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

ओमान में नए सुल्तान हैथम बिन तारिक़ अल-सईद के आने के बाद से कई बड़े बदलाव किए जा रहे हैं और देश को आधुनिक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं.
बड़े तौर पर तेल पर टिकी ओमान की अर्थव्यवस्था इसकी क़ीमतों में गिरावट आने और कोरोना महामारी के फैलने के बाद से डगमगा गई है.
सुल्तान ने अर्थव्यवस्था के एक मीडियम टर्म प्लान बनाने के लिए एक कमेटी भी गठित की है.

नए क़ानून को सोमवार को ओमान के सुल्तान हैथम बिन तारिक़ अल-सईद ने जारी किया है. उन्होंने नागरिकों को ज़्यादा अधिकार और आज़ादी देने में राज्य की भूमिका पर ज़ोर दिया. सरकारी न्यूज़ एजेंसी ओएनए के मुताबिक़, उन्होंने पुरुषों और महिलाओं में बराबरी लाने की भी बात की.

राष्ट्रीय टीवी पर पढ़े गए एक शाही आदेश में कहा गया है, “शासन के स्थानांतरण के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व एक स्पष्ट और स्थायी प्रक्रिया तैयार करना और एक क्राउन प्रिंस नियुक्त करने की व्यवस्था तैयार करना है.”
ओमानी संविधान के मुताबिक़, गद्दी रिक्त होने के तीन दिन के भीतर ही शाही परिवार को सुल्तान का उत्तराधिकारी नियुक्त करना होता है. अगर परिवार उत्तराधिकारी के लिए सहमत नहीं होता है तो सुल्तान द्वारा चुने गए व्यक्ति को नामित किया जाएगा.

सुल्तान के लिए शाही परिवार का सदस्य होना ज़रूरी है. साथ ही सुल्तान वही बन सकता है जो कि “मुस्लिम हो, परिपक्व हो और ओमानी मुस्लिम मां-बाप की वैध संतान हो.”

पिछले सुल्तान क़ाबूस बिन सईद अल-सईद का कोई वारिस नहीं था और उन्होंने अपने पसंदीदा उत्तराधिकारी का नाम एक सीलबंद लिफ़ाफ़े में लिखकर रख दिया था. यह लिफ़ाफ़ा उनकी मौत के बाद खोला जाना था. उनके परिवार ने उनके चुनाव पर अपनी सहमति दे दी थी.

  • सोमवार को जारी किए गए बेसिक क़ानून में क्राउन प्रिंस की नियुक्ति और उनके कर्तव्यों के लिए नियम तय किए गए हैं.

सरकारी न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट में हालांकि, इस बात का ज़िक्र नहीं किया गया है कि नया क्राउन प्रिंस कौन होगा. इसमें इस मसले की बाबत अन्य कोई ब्योरा भी नहीं दिया गया है.

इसमें क़ानून के राज और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ओमान में प्रशासनिक व्यवस्था का आधार बनाने की बात की गई है.

ओमान एक छोटा सा तेल उत्पादक देश है और अमरीका का क्षेत्रीय सहयोगी है.

संसद के लिए भी नया क़ानून
एक अलग डिक्री में संसद के लिए एक नया क़ानून तैयार किया गया है. ओमान में विधायिका के दो सदन हैं.

नए आदेश में इस काउंसिल की सदस्यता और इसकी शर्तों को तय किया गया है. हालांकि, इस बारे में ज़्यादा ब्यौरा नहीं दिया गया है.

बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक सुधारों की माँगों को लेकर 2011 में ओमान को भी अरब स्प्रिंग जैसे विरोध-प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा था.

ओमान में राजनीतिक पार्टियां या राजनीतिक प्रतिनिधित्व के किसी भी दूसरे स्वरूप को कोई जगह नहीं दी गई है.

जानकारों का कहना है कि ओमान के सुल्तान के उठाए गए ये क़दम काफ़ी अहम हैं और इसके पीछे कई वजहें हैं.

लोगों की नाराज़गी कम करने की कोशिश
रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) की वेस्ट एशिया सेंटर की हेड रह चुकीं मीना सिंह रॉय कहती हैं कि अरब स्प्रिंग और कोरोना वायरस और इसके असर के चलते चाहे सऊदी अरब हो या यूएई और ओमान खाड़ी क्षेत्र के हर शासन को अपने यहां के लोगों के लिए नए प्रस्ताव लाने पड़ रहे हैं ताकि लोगों में बनी हुई नाख़ुशी को कम किया जा सके.

रॉय कहती हैं कि सभी खाड़ी देशों की नीतियों में एक आमूल-चूल बदलाव देखा जा रहा है.

वे कहती हैं, “यह पूरा रीजन रणनीतिक हैरानियों और रणनीतिक भूलों से भरा पड़ा है. आप देख लीजिए, क़तर की नाकेबंदी यूएई और सऊदी अरब की एक बड़ी ग़लती थी. इसका सबसे ज़्यादा फ़ायदा ईरान और तुर्की को हुआ.”

उम्रदराज़ सुल्तान और उत्तराधिकार पर स्पष्टता
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं कि मौजूदा वक़्त में यह क़दम बेहद महत्वपूर्ण है.

पाशा कहते हैं, “पिछले सुल्तान क़ाबूस ने क़रीब 50 साल तक शासन किया. उनका न कोई क्राउन प्रिंस थे न ही उनका कोई उत्तराधिकारी था. पूरी सत्ता उनके हाथ में ही थी.”

ओमान का शाही परिवार अल-बुसैदी परिवार कहा जाता है क्योंकि वे अल-बुसैदी वंश से आते हैं.


पाशा कहते हैं कि मौजूदा सुल्तान की लोकप्रियता पिछले सुल्तान के मुक़ाबले काफ़ी कम है. परिवार में भी मौजूदा सुल्तान का प्रभाव वैसा नहीं है. साथ ही मौजूदा सुल्तान बीमार और उम्रदराज़ भी हैं.

ऐसे में यह नियम बनाया गया है कि सब मिलकर यह तय करें कि कोई कम उम्र के सदस्य को क्राउन प्रिंस बनाया जाए.

रॉय कहती हैं कि सुल्तान क़ाबूस का कोई वारिस नहीं था, लेकिन अब हैथम बिन तारिक़ के आने के बाद एक सिस्टम बनाने की यह कोशिश है ताकि उत्तराधिकारी तय करते वक़्त विवाद न हों.

लोकतंत्र को मज़बूत करने की कोशिश
इस आदेश के ज़रिए ओमान में लोकतंत्र को ज़्यादा मज़बूत करने की कोशिश की जा रही है.

पाशा कहते हैं, “खाड़ी के जीसीसी देशों में कुवैत ही ऐसा इकलौता देश था जहां 1961 में ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद से नेशनल असेंबली, संविधान और चुनाव जैसी लोकतंत्रिक परंपराएं निभाई जा रही थीं. इसके बाद बहरीन में 1971 में आज़ादी के बाद केवल पाँच साल ही राजा का शासन रहा. इसके बाद वहां लोकतंत्र आ गया.”

इन दो देशों के बाद ओमान ही ऐसा देश था जिसने अपने यहां राजनीतिक सुधार शुरू किए हैं. यहां पार्लियामेंट में भले ही ज़्यादा शक्तियां नहीं हैं, लेकिन सवाल-जवाब के सत्र होते हैं. इसके अलावा, ओमान में सीमित चुनाव भी होते हैं.

नए सुल्तान ये कोशिश कर रहे हैं कि पार्लियामेंट के दोनों सदनों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में ज़्यादा शामिल करें.

रॉय कहती हैं, “ओमान के लाए जा रहे नए क़ानूनों का एक मक़सद लोगों का अपने नेतृत्व में भरोसा पैदा करना भी है.”

मंदी का असर, अर्थव्यवस्था की फ़िक्र
सुधार के मौजूदा क़दमों के पीछे आर्थिक वजहों की भी एक बड़ी भूमिका है.

पाशा कहते हैं कि ओमान 2008 की मंदी से अभी तक उबर नहीं पाया है. ओमान का बाह्य क़र्ज़ बढ़ रहा है. दूसरी तरफ़, तेल के दाम घट रहे हैं और देश की आबादी और ख़र्चे बढ़ रहे हैं.

ऐसे में सुल्तान देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लौटाना चाहते हैं.

सत्ता में आने के बाद से सुल्तान हैथम बिन तारिक़ सरकारी और राज्य की इकाइयों में खलबली पैदा कर चुके हैं. उन्होंने लंबे वक़्त से लंबित पड़े वित्तीय सुधारों को लागू किया. उन्होंने वित्त और विदेश मंत्रियों की नियुक्ति की और देश के केंद्रीय बैंक का चेयरमैन भी नियुक्त किया. इन सभी पदों को इससे पहले गुज़र चुके सुल्तान ही संभाल रहे थे.

रॉय कहती हैं कि अर्थव्यवस्थाएं कमज़ोर हो रही हैं और केंद्रीयकृत व्यवस्थाओं से मामलों को हल करने में मुश्किल पेश आ रही है.

तेल की क़ीमतों में गिरावट और कोरोना महामारी के चलते ओमान के वित्तीय हालात गड़बड़ाए हैं. सभी बड़ी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने वहाँ निवेश के पैमान को कमतर क़रार दिया है.

ओमान का वित्तीय घाटा लगातार बढ़ रहा है और आने वाले वर्षों में इसे बड़े पैमाने पर कर्ज़ों की व्यवस्था करनी होगी.

नए बेसिक क़ानून में सुल्तान की अगुवाई में एक कमिटी बनाई गई है जो कि मंत्रियों और दूसरे अधिकारियों के प्रदर्शन का आकलन करेगी.

पिछले साल अक्तूबर में सुल्तान हैथम बिन तारिक़ ने एक मध्यम अवधि की वित्तीय योजना को मंज़ूरी दी थी ताकि सरकारी वित्तीय स्थिति को बेहतर और ज़्यादा टिकाऊ बनाया जा सके.

विदेशी निवेश हासिल करना
बाहरी निवेश और नौकरियां पैदा करना भी ओमान के इस ऐलान की एक वजह है. चीन पूरे खाड़ी में अपने पैर पसार रहा है. अमरीका पर यहां के देश पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे हैं.

रॉय कहती हैं, “अगर दूसरे देशों को लगेगा कि उनका यहां निवेश करना फ़ायदेमंद है और मार्केट खुला हुआ है तभी वे वहां निवेश करेंगे. इस वजह से भी ओमान ने अपने यहां नियमों में बदलाव किया है.”

अरब स्प्रिंग और असंतोष का डर
अरब स्प्रिंग के दौर में ओमान ऐसा देश था जहां बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए थे. राजधानी मस्कट और दूसरे 5-6 शहरों में कई दिनों तक तनाव रहा था.

पाशा कहते हैं कि दूसरे अरब मुल्कों के मुक़ाबले ओमान में तेल के भंडार कम हैं और लोगों की आमदनी कम है, ऐसे में वहां शासन पर लोगों का काफ़ी दबाव बना हुआ है.

दूसरे खाड़ी देशों के मुक़ाबले ओमान में सारक्षता दर काफ़ी ज़्यादा है.

पाशा कहते हैं, “यमन से सटे ओमान के प्रांत दोफार में कई वर्षों तक सुल्तान क़ाबूस के ख़िलाफ़ बग़ावत चलती रही. हालांकि, क़ाबूस ने उन्हें शासन, प्रशासन में शरीक कर लिया था, लेकिन अभी भी इस प्रांत में बग़ावती तेवर बने हुए हैं.” ये इलाक़ा काफ़ी पिछड़ा है और यहां विकास की माँग काफ़ी लंबे वक़्त से बनी हुई है.

इन वजहों से खाड़ी देशों में ओमान में विद्रोह का सबसे ज़्यादा ख़तरा है और सुल्तान लोगों को संतुष्ट करने के लिए इस तरह के क़दम उठा रहे हैं.

पाशा कहते हैं, “नए बेसिक क़ानून के ज़रिए सुल्तान और शाही परिवार लोगों में बने हुए असंतोष को कम करने और राजनीतिक दायरे को बढ़ाने और गहरा करने का प्रयास कर रहे हैं.”
पिछले सुल्तान क़ाबूस बिन सईद और नए सुल्तान
सुल्तान क़ाबूस बिन सईद ने 1970 में ब्रिटेन के समर्थन से एक रक्तहीन विद्रोह के ज़रिए अपने पिता को अपदस्थ कर दिया था.

सुल्तान क़ाबूस ने ओमान की तेल की संपत्ति का इस्तेमाल करते हुए देश को विकास के रास्ते पर चलाना शुरू किया. उन्हें बड़े तौर पर लोकप्रिय माना जाता था, हालांकि उन्हें विरोध की आवाज़ों को बर्दाश्त नहीं करने वाले एक शासक के तौर पर भी जाना जाता था.

पिछले साल जनवरी में ओमान के पिछले सुल्तान क़ाबूस बिन सईद अल-सईद की मौत हो गई थी. इसके बाद परिवार की एक परिषद के पास उनके उत्तराधिकारी को चुनने के लिए तीन दिन का वक़्त था.

दरअसल, सुल्तान क़ाबूस का न तो कोई वारिस था, न ही उन्होंने कोई उत्तराधिकारी चुना था. परिवार ने क़ाबूस के लिखे एक सीलबंद लिफ़ाफ़े को खोलना उचित समझा. इसमें क़ाबूस ने उत्तराधिकारी के तौर पर अपनी पसंद को दर्ज किया था.

इस तरह से उनके चचेरे भाई हैथम बिन तारिक़ अल-सईद को ओमान के सुल्तान की गद्दी मिली.

हैथम बिन तारिक़ अल-सईद का जन्म 1955 में हुआ था. वे जल्द ही देश के लोगों और बाक़ी की दुनिया को यह सुनिश्चित कराने में सफल रहे कि वे अपने पूर्ववर्ती सुल्तान के पदचिन्हों पर ही चलने वाले हैं.

ओमान में निर्णय करने की पूरी ताक़त सुल्तान में ही निहित होती है. सुल्तान ही प्रधानमंत्री होता है और सुल्तान ही सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर होता है. इसके अलावा, सुल्तान ही रक्षा मंत्री, वित्त और विदेश मंत्री भी होता है.

BBC

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