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लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में गश्त लगाने के लिए सेना को मिला अनोखा ‘सिपाही’

ByPrompt Times

Sep 22, 2020
लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में गश्त लगाने के लिए सेना को मिला अनोखा 'सिपाही'

भारतीय सेना ने लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान में गश्त लगाने और सामान ढोने के लिए इस बेहद मुश्किल वातावरण में सदियों से काम कर रहे एक जानवर को सेना में शामिल करने का फैसला किया है. लेह स्थित डीआरडीओ के संस्थान Defence Institute For High Altitude Research (DIHAR) में स्थानीय दो कूबड़ वाले ऊंट यानी बैक्ट्रियन कैमल्स को सेना के लिए तैयार किया जा रहा है.  DIHAR के अधिकारियों का कहना है कि बैक्ट्रियन कैमल लद्दाख के माहौल में शानदार ढंग से काम कर रहा है. बैक्ट्रियन कैमल्स चीन, तिब्बत, मंगोलिया से लेकर मध्य एशिया तक सदियों से कारवां में शामिल होकर ठंडे रेगिस्तान और बर्फ में जमे दर्रे पार करते रहे हैं. तीसरी शताब्दी में मध्य़ एशिया की कई कलाकृतियों में बैक्ट्रियन कैमल को दिखाया गया है.

बैक्ट्रियन कैमल
इटली के यात्री और व्यापारी मार्को पोलो ने 1271 से लेकर 1295 तक कई बार सिल्क रूट पर यात्रा की थी. मार्को पोलो ने यूरोप को बैक्ट्रियन कैमल से परिचित कराया था. भारतीय सेना इस समय लेह स्थित  DIHAR की लैब में सामान्य ऊंटों के साथ बैक्ट्रियन कैमल्स को ट्रेंड कर रही है और नतीजे बेहद उत्साहजनक है. DIHAR के वैज्ञानिक सारंगी का कहना है कि ये ऊंट 17000 फीट की ऊंचाई पर 170 किग्रा का वज़न लेकर 12 किमी तक एक बार में यात्रा कर सकता है. बैक्ट्रियन कैमल बिना पानी के एक हफ्ते तक और बिना खाने के एक महीने तक रह सकता है. बैक्ट्रियन कैमल के खुर चौड़े और मज़बूत होते हैं इसलिए वो बर्फ और रेत पर आराम से चल सकता है. 

कड़ी ठंड और तपती धूप में आराम से सकता 
सदियों से इन इलाकों में बैक्ट्रियन कैमल यात्रियों और कारवां का पसंदीदा साथी इसलिए है क्योंकि ये शून्य से 40 डिग्री नीचे के तापमान से लेकर 40 डिग्री तक की गर्मी में आराम से रह सकता है. इसका कद आम ऊंट से काफी कम होता है लेकिन शरीर ज्यादा तगड़ा होने की वज़ह से वजन में लगभग बराबर होता है. इसके शरीर पर लंबे बाल होते हैं जिनसे उसे सर्दी से सुरक्षा मिलती है. इसकी आंखों में पलकों के दो सेट होते हैं इसलिए रेत या बर्फ से उसकी आंखों को नुकसान नहीं पहुंचता है. सेना को लद्दाख के चौड़े रेतीले मैदानों और बर्फ से ढके दर्रों को पार करने में बहुत मुश्किल पेश आती है. 

खासतौर पर पूर्वी लद्दाख में ऐसे बड़े रेतीले मैदान बहुत हैं. ऐसे में गश्त लगाने या सामान ढोने के लिए बैक्ट्रियन कैमल का इस्तेमाल बहुत मददगार होगा. सेना ने आरंभिक परीक्षणों पर संतोष जताया है और बहुत जल्द बैक्ट्रियन कैमल सैनिकों का साथ देने के लिए मैदान में उतर जाएंगे.















ZEE

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