16 दिसंबर 2023 ! प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती है यह बात पूरी तरह से पद्म श्री से सम्मानित बसंती बिष्ट पर सटीक बैठती है. जिन्हें 45 साल में पहली बार मंच मिला जिसके बाद से उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली.बसंती बिष्ट सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लॉक के ल्वाणी गांव की हैं. उनका जन्म 14 जनवरी 1952 को बिरमा देवी के घर हुआ. ग्रामीण परिवेश में पली बढ़ी बसंती 5 वीं तक ही पढ़ाई कर सकी. और 15 बरस की छोटी आयु में इनका विवाह ल्वाणी गांव के ही रंजीत सिंह बिष्ट के साथ हुआ. जो फौज में तैनात थे. तेरह बरस से लेकर बत्तीस बरस तक बसंती ने अपने परिवार को संभाला.
बसंती बिष्ट ने इसी दौरान उन्होंने अपनी मां से लोकसंगीत को करीब से जाना. गांव में लगने वाले नंदा देवी लोकजात से लेकर राजजात सहित अन्य कार्यक्रमों में जाकर उन्होंने जागरों को सीखा. लेकिन उस समय तक महिलाओं की मंचों पर जागर गाने की परंपरा नहीं थी इसलिए बसंती बिष्ट को चाह कर भी उचित मंच नहीं मिल पाया था. 32 साल में वो अपने पति रणजीत सिंह के साथ पंजाब चली गईं. जहां उन्होंने लोक संगीत की बारीकियां सीखी और देहरादून लौटीं.
बसंती बिष्ट ने उत्तराखंड के राज्य आंदोलन में हिस्सा लिया. आंदोलन के दौरान उन्होंने गीत गाए, जिससे उन्हें एक नया हौसला मिला. मुजफ्फरनगर, खटीमा, मसूरी गोलीकांड की घटना ने उन्हें बेहद आहत किया. जिसके बाद अपने लिखे गीतों से उन्होंने आंदोलन को एक नई गति प्रदान की. उन्होंने कई मंचों पर आंदोलन के दौरान गीत भी गाए. इन गीतों को लोगों ने खूब सराहा. जिसके बाद बसंती बिष्ट ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा
सोर्स :-“न्यूज़ 18 हिंदी|”