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दिल्ली में सरकार ने दिशानिर्देश किए जारी, लोगों को भी रखना होगा इन बातों का ख्याल

18  नवम्बर 2021 | हालिया दिनों में देश में मच्छरजनित बीमारियों का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ा है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही डेंगू के मामले में नए रिकार्ड बन रहे हैं। यहां केवल डेंगू ही नहीं, बल्कि मलेरिया और चिकनगुनिया के मामले भी बढ़ने लगे हैं। डेंगू और मलेरिया के रोगाणुओं के वाहक मच्छर ही होते हैं। ये मच्छर रोगाणुओं को अपने अंदर रखकर जब किसी व्यक्ति को काटते हैं, तब वह व्यक्ति इन बीमारियों से पीड़ित हो जाता है। हालांकि इन मच्छरों से बचाव के लिए सरकार के स्तर पर हर साल कोशिशें की जाती हैं, बावजूद इसके दिल्ली डेंगू के चपेट में आ ही जाती है। अब दिल्ली में सरकार ऐसे कुछ उपाय करने जा रही है ताकि लोगों को इन बीमारियों से निजात मिल सके। इसने नई इमारतों में कुछ ऐसे इंतजाम करने का फैसला किया है जिससे मच्छर घरों में दाखिल नहीं हो सकेंगे।

डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया को महामारी अधिनियम के तहत दिल्ली सरकार ने अधिसूचित किया है। इसने नगर स्वास्थ्य अधिकारियों को सभी नए भवनों (वाणिज्यिक और आवासीय) के लिए नए नियंत्रण प्राधिकरण के रूप में नामित किया है। उन्हें ‘प्रमाण पत्र’ जारी करने का भी अधिकार दिया गया है। इसका मकसद नए भवनों को ऐसी संरचनाओं से लैस करना है, जो मच्छर विरोधी उपायों के रूप में काम कर सकें। नए दिशानिर्देशों के मुताबिक किसी को भी नए भवन (सरकारी, अर्ध-सरकारी या निजी) को संचालित करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक कि संबंधित स्थानीय प्राधिकरण के प्रबंध अधिकारी एक प्रमाण पत्र जारी नहीं करते हैं जिसमें यह कहा गया हो कि ऐसे परिसर मच्छर-विरोधी प्रणाली से लैस हैं।

अब सवाल है कि किसी भी इमारत में यह प्रणाली विकसित कैसे होगी? दरअसल इस नई व्यवस्था में पूरा फोकस इस बात पर रहेगा कि जल जमाव और मच्छर प्रजनन पर कैसे लगाम लगाई जा सके। या फिर मच्छरों को घरों में आने से कैसे रोका जा सके। इसमें सबसे अहम है कि भवन निर्माण में इस बात का ख्याल रखा जाए कि प्रवेश द्वार की छत और भवन की मुख्य छत का निर्माण इस प्रकार हो कि उन पर जल जमाव की गुंजाइश न रहे। यानी इसके लिए छतों के ढलान स्तरों में बदलाव की जरूरत है। कम-से-कम इतनी ढलान हो कि बारिश या किसी काम में उपयोग होने वाला जल आसानी से नीचे आ जाए। इससे छतों पर जलजमाव के चलते पैदा होने वाले मच्छरों से मुक्ति मिल जाएगी।

एक व्यवस्था यह होगी कि भवन से जल निकासी के लिए निकलने वाले नालों की संख्या कम-से-कम हो। इसकी वजह है कि जल निकासी के लिए बनाए गए नालों से भी मच्छर घरों में प्रवेश करते है। ये निकासी मच्छरों के प्रजनन स्थल भी होते हैं। नए नियम के मुताबिक अब छतों पर खुले में रखे गए पानी के टैंकों और भवन परिसर में बने जलाशयों को जाल से ढंकना भी जरूरी होगा, क्योंकि ये मच्छरों के प्रजनन के महत्वपूर्ण स्नेत होते हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग द्वारा 2018 में किए गए विश्लेषण में पाया गया कि ऐसे स्थल जो मच्छर प्रजनन के लिए उत्तरदायी हैं उनमें 33 फीसद हिस्सेदारी घरेलू जल का भंडारण करने वाले बर्तनों की है। इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करना अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसमें बताया गया है कि अगर कोई भवन मालिक इन नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जाएगी। धारा 188 के अनुसार किसी भी पब्लिक सर्वेट द्वारा जारी किए गए आर्डर को जानबूझकर न मानने वालों को जेल की सजा या जुर्माना या फिर दोनों हो सकते हैं।

इस तरह की व्यवस्था दो प्रदेशों दमन-दीव और गोवा में पहले से ही अमल में है। दिल्ली सरकार इन दोनों ही प्रदेशों के नियमों का अध्ययन कर रही है, ताकि इस व्यवस्था को सही तरह से लागू किया जा सके। हालांकि इस व्यवस्था को लेकर कई तरह की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं। जानकारों की मानें तो सरकार द्वारा जारी नए दिशानिर्देश लोगों को प्रताड़ित करने का हथियार बन सकते हैं। दरअसल इसमें स्थानीय अधिकारी तय करेंगे कि नव निर्मित भवन नए नियमों के अनुरूप है या नहीं। लिहाजा आशंका इस बात की है कि इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए इस नई व्यवस्था के बेहतर क्रियान्वयन के लिए सरकार को ठोस उपाय करने होंगे। बहरहाल देखने वाली बात होगी कि यह नई व्यवस्था दिल्ली को मच्छरजनित रोगों से आजादी दिलाने में कितनी कारगर साबित होती है और दिल्ली सरकार इस व्यवस्था को भ्रष्टाचार मुक्त रख पाने में कामयाब हो पाती है या नहीं।

Source :-“जागरण”

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