18 मई 2022 | देश भर में आजकर ज्ञानवापी मामला छाया हुआ है. हर जगह यह मामला चर्चा का केंद्र बना हुआ है हालांकि, अगर कुछ रिपोर्ट की मानें तो यह मामला नया नहीं है बल्कि इसे देश की आजादी से पहले उठाया जाता रहा है. क्या है पूरा मामला आइए जानते हैं.
व्यासपीठ से उठा था मामला
‘दैनिक जागरण’ की रिपोर्ट के अनुसार, ज्ञानवापी मामला भारत की आजादी से पहले से उठता आया है. हालांकि, उस समय यह मुद्दा मंदिर-मस्जिद का नहीं बल्कि मालिकाना हक का था. इस मामले को सबसे पहले व्यासपीठ से उठाया गया था. इसमें कुछ हद तक व्यास परिवार (Vyas family) को सफलता भी मिली थी
याचिका की गई थी दाखिल
वहीं, भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 15 अक्टूबर 1991 में पं. सोमनाथ व्यास ने ज्ञानवापी परिसर में नए मंदिर के निर्माण और पूजा-पाठ को लेकर याचिका दाखिल की थी. उनकी मृत्यु के बाद विजय शंकर रस्तोगी ने आगे बढ़ाया. उनके प्रार्थना पत्र पर पिछले साल सिविल जज सीनियर डिविजन (फास्ट ट्रैक) की अदालत ने पुरातात्विक सर्वेक्षण का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में इस आदेश पर हाई कोर्ट (High Court) ने रोक लगा दी थी.
1959 में सत्याग्रह
आजाद भारत की बात करें तो ज्ञानवापी परिसर को कब्जा मुक्त कराने के लिए सत्याग्रह हो चुका है. 1959 में यह सत्याग्रह गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ महाराज और काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) के पुनरुद्व्रार को लेकर शुरू हुए आह्वान के बाद हुआ था. इसकी अगुवाई हिंदू महासभा (Hindu Mahasabha) के संगठन मंत्री शिवकुमार गोयल ने की थी. हालांकि, उन्हें शांति भंग की धाराओं में गिरफ्तार कर 3 महीने तक जेल में रखा गया था.
कई गणमान्य लोगों का गवाह है ज्ञानवापी परिसर
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1669 में औरंगजेब (Aurangzeb) ने ज्ञानवापी परिसर (Gyanvapi Campus) स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद का निर्माण कराया था. ज्ञानवापी परिसर व्यास परिवार का हुआ करता था. मंदिर विस्तारीकरण व सुंदरीकरण परियोजना शुरू हुई तो मंदिर प्रशासन की ओर से व्यास आवास खरीदने की जरूरत महसूस हुई तो पंडित सोमनाथ व्यास व एक अन्य भाई के उत्तराधिकारी ने इसे बेच दिया, लेकिन आवास का अस्तित्व रहने तक पं. केदारनाथ व्यास इसमें रहे. ज्ञानवापी में मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru), जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru), इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) समेत देश की कई विभूतियां आ चुकी हैं.
Source;-“ZEE न्यूज़हिंदी”