6 जुलाई 2023 ! “हम सत्ता के लोभ में ग़लत काम करने को तैयार नहीं हैं, यहां शरद पवार बैठे हैं, यशवंत जी कह रहे थे कि किस तरह शरद पवार ने अपनी पार्टी तोड़कर हमारे साथ सरकार बनाई थी. सत्ता के लिए बनाई थी या महाराष्ट्र के भले के लिए बनाई थी. ये एक अलग बात है लेकिन उन्होंने पार्टी तोड़ी. मैंने तो ऐसा कुछ नहीं किया. अगर पार्टी तोड़ कर, सत्ता के लिए नया गठबंधन करने से सत्ता हाथ में आती है तो मैं ऐसी सत्ता को चिमटे से भी छूना नहीं चाहता.”
प्रफुल्ल पटेल और छगन भुजबल जैसे शरद पवार के वफ़ादार माने जाने वाले नेताओं के साथ उनके भतीजे अजित पवार एनडीए में शामिल हो चुके हैं.
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण में कहा था कि बीजेपी सत्ता के लिए पार्टियों को तोड़ने की राजनीति नहीं करती.
लेकिन साल 2014 के बाद वाली बीजेपी का रुख अटल बिहारी वाजपेयी वाली बीजेपी से बिलकुल अलग दिखता है.
बीते लगभग एक दशक में ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ (विधायकों की कथित ख़रीद फरोख़्त) और ‘ऑपरेशन कमल’ जैसे शब्द देश के अलग-अलग राज्यों में सुनाई दिए हैं.
ताज़ा उदाहरण महाराष्ट्र का है, जहां बीते एक साल से राजनीतिक उथल-पुथल थमने का नाम नहीं ले रही.
बीते साल जून में शिवसेना से अलग होकर एकनाथ शिंदे 40 विधायकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए और राज्य में महाविकास अघाड़ी गठबंधन की सरकार गिर गई.
शिवसेना के हाथ से सरकार तो गई ही और बाद में पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न भी गया.
अब महाराष्ट्र में एक नया सियासी ड्रामा चल रहा है जहां शरद पवार की पार्टी एनसीपी दो गुट में टूटती दिख रही है. अजित पवार एनडीए सरकार में एक बार फिर उप मुख्यमंत्री बन गए हैं.
बुधवार को अजित पवार ने खुद को एनसीपी का अध्यक्ष घोषित कर दिया और चुनाव आयोग को लिखे एक पत्र में पार्टी के चुनाव चिह्न घड़ी पर भी दावा किया है.
बताया जा रहा है कि इस पत्र के साथ अजित पवार ने आयोग को एक याचिका भेजी है जिसमें उनके समर्थन में 40 विधायकों के हस्ताक्षर हैं.
सोर्स :-“BBC न्यूज़ हिंदी”