• May 5, 2024 6:30 am

क्या मीट खाने से हिमाचल में आ रही तबाही? एक्सपर्ट्स से जानें IIT डायरेक्टर के दावे का सच

सितम्बर 8 2023 ! हिमाचल प्रदेश में बीते कुछ महीनों से प्रकृति ने कहर बरपा रखा है. बारिश और लैंडस्लाइड ने इस राज्य में भीषण तबाही मचाई है. कई इलाकों में बाढ़ आ चुकी है और पहाड़ दरक रहे हैं. इन आपदाओं की चपेट में आने से अब तक 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. हिमाचल में आई इस प्रलय को लेकर आईआईटी मंडी के डायरेक्टर लक्ष्मीधर बेहरा ने एक बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि जानवरों का मीट खाने की वजह से हिमाचल इस तरह की आपदा का सामना कर रहा है. अगर जानवरों को काटना बंद नहीं किया तो पूरा प्रदेश बर्बाद हो जाएगा. आईआईटी डायरेक्टर का यह बयान सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है.

आईआईटी डायरेक्टर ने ऐसा दावा क्यों किया है और क्या सही में मीट खाने की वजह से देवभूमि में ऐसी आपदाएं आ रही हैं? ये जानने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की है.

स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ डॉ. अंशुमान कुमार बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में हो तबाही की सबसे बड़ी वजह पेड़ों की अंधाधुंध कटाई है. हिमाचल में हर जगह पेड़ों और पहाड़ों को काटकर सड़क बनाई जा रही हैं. नदियों के रास्तों पर पुल बन रहे हैं. नदियों के रास्तों पर होटल बनाए जा रहे हैं, लेकिन इसमें कुछ भी प्लान तरीके से नहीं हो रहा है. यही कारण है कि हिमाचल में ऐसी आपदाएं आ रही हैं. अगर इस बिना प्लान के विकास पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले सालों में स्थिति और बिगड़ सकती है.

डॉ. अंशुमान बताते हैं कि जानवरों को काटने के बाद जो वेस्ट निकलता है उसको इधर-उधर फेंक दिया जाता है. इस वेस्ट से कार्बन फुटप्रिंट निकलते हैं जो सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. कार्बन फुटप्रिंट की वजह से ही जलवायु परिवर्तन होता है और इससे प्रदूषण बढ़ता है. ये ग्लेशियर के पिघलने का भी कारण है. इसके कारण एसिड रेन भी होती है. यानी, कार्बन फुटप्रिंट का बढ़ना प्राकृतिक आपदाओं की एक वजह है.

लेकिन हिमाचल में हो रही तबाही के लिए यह अकेला फैक्टर जिम्मेदार नहीं है. अगर मीट खाने से तबाही होती तो अमेरिका, यूरोप और फ्रांस जैसे देशों में सबसे ज्यादा आपदाएं आती. ऐसे में इस तरह के दावों को बिलकुल सही नहीं माना जा सकता. समय की जरूरत यह है कि हिमाचल में हो रही तबाही के मूल कारणों पर ध्यान देकर उसको रोकने की कोशिश करें.

दिल्ली में पशु चिकित्सक डॉ. नरसी राम बताते हैं कि पशुओं को पालने के लिए जमीन की जरूरत होती है. इसके लिए पहाड़ी इलाकों में जंगलों को काट दिया जाता है. जंगलों के कटने का सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है. क्योंकि जंगल के कटने से मिट्टी खराब होती है और पानी भी कम होता है. इसका असर पर्यावरण पर देखने को मिलता है.

आईआईटी प्रोफेसर के बयान पर डॉ नरसी कहते हैं कि जानवरों के मांस खाने और हिमाचल में आ रही आपदाओं का कोई सीधा संबंध नहीं है. अलग-अलग फैक्टरों की वजह से राज्य में ऐसा हालात हो रहे हैं. केवल मीट खाना इसका एक मात्र कारण नहीं हो सकता है.

सोर्स :- ” TV9 भारतवर्ष    

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