27 नवम्बर 2021 | आज काल भैरव आष्टमी है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरव अष्टमी मनाई जाती। भगवान काल की कृपा से जातक को भय और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मार्गशीर्ष मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी को भगवान काल भैरव का अवतरण हुआ था। भगवान काल भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है। जहां भक्तों के लिए काल भैरव दयालु, कल्याण करने वाले और अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले देव माने जाते हैं, तो वहीं अनैतिक कार्य करने वालों के लिए ये दंडनायक हैं। इनके विषय में धार्मिक मान्यताएं कहती हैं कि यदि इनके भक्तों का कोई अहित करता है तो उसे तीनों लोकों में कहीं भी शरण प्राप्त नहीं होती है। मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष कीअष्टमी काल भैरव भगवान को प्रसन्न करने हेतु बहुत महत्वपूर्ण होती है। क्या आप जानते हैं कि भगवान कालभैरव कि उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी। आइए जानते हैं क्या है कालभैरव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा
कैसे हुआ कालभैरव का जन्म
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में कौन सबसे श्रेष्ठ है इसको लेकर बहस चली। सभी देवताओं को बुलाकर यह पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? देवताओं ने अपने विचार व्यक्त किया जिसका समर्थन विष्णु जी और भगवान शिव ने किया लेकिन ब्रह्मा जी इस विपरीत शिव जी से अपशब्द कह दिए । भगवान शिव इस बात पर क्रोधित हो गए और उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए। भगवान शिव के इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है। इस अवतार को ‘महाकालेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति भी कहते हैं।
Source :-“अमर उजाला”