• April 27, 2024 12:31 pm

न मजदूरों का धैर्य टूटा, न बचाने वालों का हौसला… एक साथ चीर डाला मुश्किलों का पहाड़

ByADMIN

Nov 29, 2023 ##prompt times

29  नवंबर 2023 ! कमरे का गेट बाहर से लॉक हो जाए तो 10 मिनट में अंदर फंसे व्यक्ति का हाल कैसा हो जाता है, जो कभी बंद हुआ हो सिर्फ वही यह महसूस कर सकता है. अगर वही 10 मिनट 17 दिन में बदल जाएं तो क्या होगा? कल्पना कीजिए उत्तरकाशी की टनल में फंसे मजदूरों की मनोस्थिति क्या रही होगी? बेशक वह उन्हें मनोरंजन के लिए बैट बॉल दिए गए, फिल्में देखने के लिए मोबाइल फोन दिया गया, लेकिन क्या ये सब उनका धैर्य बनाए रखने के लिए काफी था?

उत्तरकाशी की टनल में फंसे मजदूरों के सामने सबसे बड़ी चुनौती धैर्य बनाए रखने की थी, 17 दिन तक वह लगातार इस परीक्षा में पास हुए. सुरंग से बाहर निकलते वक्त सभी 41 मजदूरों के खिलखिलाते चेहरे उस जीत के गवाह थे जो वे हर पल मौत से लड़कर जीते थे. सिर्फ मजदूर ही नहीं सलाम तो उन रक्षकों को भी करना चाहिए तो इन 17 दिनों तक बिना रुके, बिना थके फंसे मजदूरों को बचाने के लिए जुटे रहे. सामने मुश्किलों का पहाड़ था, पल-पल पर बाधाएं थीं, लेकिन न डिगे न हौसला छोड़ा और मिलकर मुश्किलों का पहाड़ चीर सभी 41 जिंदगियां बचा लीं.

सुरंग में फंसे मजदूरों की जिंदगी और मौत के बीच 70 मीटर की दीवार थी, दरअसल सिलक्यारा टनल के 200 मीटर अंदर सुरंग धंसी थी, यह हिस्सा कच्चा था, 12 नवंबर को जब मजदूर फंसे तब सुरंग का 60 मीटर हिस्सा गिरा था. राहत टीम एक्टिव हुई और मलबा हटाने का काम शुरू किया तो 10 मीटर सुरंग और धंस गई. ऐसे राहत टीम और मजदूरों के बीच कुल दूरी 70 मीटर हो गई थी. राहत टीम पहले तो समझ ही नहीं पा रही थी कि क्या किया जाए, फिर पाइप से मजदूरों को निकालने की तैयारी हुई, लेकिन चुनौती यही थी कि आखिर मजदूरों तक पहुंचा कैसे जाए.

राहत टीम मजदूरों को बाहर निकालने के लिए हर विकल्प पर काम कर रही थी, अंदर मजदूर बेचैन थे, जहां मजदूर फंसे थे वहां अंदर ढाई किलोमीटर लंबी सुरंग थी, मजदूरों के पास सबसे पहले पहुंचे रैट माइनर्स ने खुद यह बात बताई. यहां पहुंचे नासिर ने बताया कि इसी ढाई किमी हिस्से में चहलकदमी कर मजदूरों ने अपना समय काटा. इसी हिस्से में मजदूर टहलते थे, इसी एक हिस्से में सभी मजदूरों ने अपने लिए सोने की जगह बना रखी थी, टॉयलेट आदि के लिए एक अलग हिस्सा था. बैठने के लिए भी एक स्थान तय कर रखा था, ताकि बाहर से बचाव के जो भी प्रयास हों, उनसे अंदर किसी तरह का नुकसान न हो.

13 नवंबर को मजदूरों को सबसे पहले उम्मीद की किरण दिखी जब राहत टीम ने सबसे पहले वॉकी-टॉकी से संपर्क स्थापित किया. सभी मजदूरों के स्वस्थ होने की जानकारी पर एक पाइप से उन्हें खाने-पीने की चीजें और ऑक्सीजन सप्लाई की गई. इसके बाद ऑगर मशीन से रास्ता बनाने की कोशिशें शुरू कर दी गईं, दिल्ली से वायुसेना के विमान से ऑगर मशीन मंगाई गई जो दिन रात काम करने लगी. 17 नवंबर तक 24 मीटर ड्रिलिंग हो गई थी, लेकिन तभी मशीन खराब हो गई, राहत कार्य रुक गया. दूसरी मशीन मंगाई गई और काम फिर शुरू किया गया.

अब तक मजदूरों को ड्राईफूट सप्लाई किए जा रहे थे, 20 नवंबर को इन्हें पहली बार खिचड़ी और दलिया भेजा गया. 22 नवंबर को लगा कि अब मजदूर बाहर आ जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, ऑगर मशीन के सामने लगातार इस तरह की मुश्किलें आ रहीं थीं, 25 नवंबर को मशीन पाइप में ही फंस गई और मजदूरों के बाहर आने की उम्मीदें धराशाई होने लगीं, लेकिन राहत टीम ने हौसला नहीं छोड़ा. उसी दिन एक नहीं बल्कि छह विकल्पों पर काम किया गया. पहाड़ के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू करा दी गई. हैदराबाद से प्लाज्मा कटर मंगाकर फंसी ऑगर मशीन को बाहर निकालने का काम किया गया और तय किया गया कि इसके आगे की खुदाई मैनुअल की जाएगी.

सोर्स :- ” TV9 भारतवर्ष    

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