लॉकडाउन के दौरान गायब हुआ प्रदूषण अनलॉक होते ही घिर आया। बल्कि इस बार तो बीते साल से भी ज्यादा गहरा हुआ जाता है। सितंबर का हाल डरा रहा है। जबकि जाड़ा आना बाकी है। प्रदूषण की चाल पर नजर रखने वाले जानकार चिंता जता रहे हैं। वहीं, अंदेशा इस बात का है कि कोरान, जाड़े और प्रदूषण का खतरनाक गठजोड़ मौतों की रफ्तार बढ़ा सकता है…। कानपुर से जागरण संवाददाता शशांक शेखर भारद्वाज और दिल्ली से संजीव गुप्ता की रिपोर्ट।
लॉकडाउन के कारण दिल्ली एनसीआर और उत्तर भारत के कई राज्यों का वायु गुणवत्ता सूचकांक बेहतर स्थिति में पहुंच गया था, लेकिन अगस्त से स्थिति तेजी से बिगड़ रही है।
दिल्ली सहित देश के 38 शहरों पर लगातार नजर रखी जा रही है। पीएम 2.5 की औसत मात्रा 15-18 फीसद तक बढ़ी पाई गई है। यानी प्रदूषण की रफ्तार बीते साल के मुकाबले कहीं अधिक है।
पिछले साल सितंबर में दिल्ली-एनसीआर में पीएम 2.5 की औसत मात्रा जहां 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी, वह इस साल यह 47 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक जा पहुंची है। आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों की टीम नेशनल क्लीन एयर मिशन और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सहयोग से इस काम में जुटी हुई है। आइआइटी के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के एचओडी व नेशनल क्लीन एयर मिशन के सदस्य प्रो. एसएन त्रिपाठी के मुताबिक, दिल्ली-एनसीआर और उत्तर भारत के शहरों के लिए कृषि अवशेष, खासतौर पर पराली का जलाया जाना सबसे खतरनाक है। इससे वायुमंडल में नुकसानदायक गैसों और सूक्ष्म तत्वों की चादर सी बनने का असर कई दिन तक रहता है। जिसकी शुरुआत हो चुकी है।
वहीं, वाहनों से निकलने वाला धुआं भी स्थिति को बिगाड़ रहा है। इससे सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और पीएम 2.5 की मात्रा वातावरण को दूषित कर रही है। दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, गुडग़ांव, सोनीपत, मुजफ्फरनगर आदि शहरों के अलावा उप्र के कानपुर, लखनऊ, अलीगढ़, वाराणसी, प्रयागराज जैसे शहरों के हालात लॉकडाउन खत्म होने के बाद से बिगड़ रहे हैं। उप्र के 15 शहर देश के अति प्रदूषित शहरों में शामिल हैं।
आइआइटी के विशेषज्ञ नासा के मॉडरेट रिसॉल्यूशन इमेजिंग इस्पैक्ट्रोमीटर (मोडिस) वेब के सहयोग से फायर काउंट की जांच करते हैं, जिसमें किसी भी शहर में जलने वाली बड़ी आग की सूचना मिलती है। इससे पता चला कि उप्र में 2019 के मुकाबले 2020 (जून तक) आग (कृषि अवशेष जलाने) की घटनाएं एक चौथाई से भी कम रही हैं। जुलाई भी ठीक रहा। लेकिन अगस्त के अंत से इसमें इजाफा होने लगा, जो लगातार बढ़ता गया। मध्यप्रदेश में भी पिछले साल के मुकाबले तेजी नजर आई है और पंजाब में भी मामले बढ़े हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायुमंडल में सूक्ष्म कण पीएम 10, अतिसूक्ष्म कण पीएम 2.5 और पीएम वन के घनत्व में इजाफा होने से सॢदयों में हानिकारक गैसों और सूक्ष्म तत्वों की मात्रा वायुमंडल में लगातार बढ़ेगी। इस स्थिति में कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा भी काफी बढ़ सकता है।
दरअसल, अनलॉक होने पर सभी गतिविधियां शुरू हो गईं। औद्योगिक इकाइयां चल पड़ीं तो सड़कों पर वाहनों की संख्या पहले जैसी हो गई। जहां-तहां कचरे और मलबे के ढेर भी देखे जा सकते हैं। सड़कों पर पानी का छिड़काव नहीं होने से धूल उड़ने लगी है।
उत्तर भारत के साथ-साथ पाकिस्तान के सीमावर्ती इलाकों में भी पराली जलाने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों ने बताया कि अब हवा की दिशा उत्तर-पश्चिम हो गई है। इससे अगले कुछ ही दिनों में दिल्ली-एनसीआर सहित नीचे के अन्य शहरों में यह धुआं वायु प्रदूषण बढ़ाने लगेगा।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक देश में चार करोड़ लोग सांस संबंधी बीमारियों से पीडि़त हैं। यही नहीं, भारतीयों के फेफड़े 30 फीसद तक कमजोर बताए गए हैं। वहीं, इस समय कोरोना ने भी जीवन को संकट में डाल रखा है। ऐसे में प्रदूषण और जाड़े से स्थिति और बिगाड़ सकती है।
भारत में निकलने वाली पराली की सालाना अनुमानित मात्रा लगभग 60 करोड़ टन है। इसमें उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। कुल कृषि अवशेषों का 17.9 फीसद हिस्सा यहीं से निकलता है। इसके बाद महाराष्ट्र (10.52 फीसद), पंजाब (8.15 फीसद) और गुजरात (6.4 फीसद) की बारी आती है। भारत में ईंट-भट्ठा उद्योग कोयले का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इसमें सालाना छह करोड़ 20 लाख टन कोयले का इस्तेमाल होता है। आमतौर पर ईंट-भट्ठे ऐसे स्थानों पर स्थित हैं, जहां पराली जलाए जाने का चलन सबसे ज्यादा है।
पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण (ईपीसीए) के अध्यक्ष भूरेलाल ने कहा कि कोरोना काल में प्रदूषण से जंग और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। कोरोना संक्रमण औैर वायु प्रदूषण की दोहरी माह से मृत्यु दर में भी इजाफा हो सकता है। हमारी कोशिश रहेगी इस साल प्रदूषण नियंत्रण में ही रहे। ऐसी कोई गतिविधि न हो, जिससे हवा में जहर घुले। इस निमित्त सभी एजेंसियों और राज्य सरकारों को साफ दिशा- निर्देश दे दिए गए है। जवाबदेही तय करने के लिए हर विभाग से एक्शन प्लान मांगा गया है। अक्टूबर माह के दूसरे सप्ताह में एक बार फिर सभी राज्यों के आला अधिकारियों की बैठक बुलाई जाएगी और उस समय की स्थिति पर चर्चा करते हुए अगली रणनीति बनाई जाएगी।