- धर्मशाला के साथ सटी पंचायत भटेहड़ निवासी एवं पूर्व राज्य मंडलीय अग्निशमन अधिकारी बीएस माहल जैसे लोग पर्यावरण असंतुलन के दौर में एक संजीवनी की भांति हैं। ऐसे लोगों के प्रयासों से ही पृथ्वी का शृंगार बचा है।
09-जून-2021 | धर्मशाला के साथ सटी पंचायत भटेहड़ निवासी एवं पूर्व राज्य मंडलीय अग्निशमन अधिकारी बीएस माहल जैसे लोग पर्यावरण असंतुलन के दौर में एक संजीवनी की भांति हैं। ऐसे लोगों के प्रयासों से ही पृथ्वी का शृंगार बचा है। साथ ही प्रकृति और पर्यावरण, सृष्टि और सृजन को संरक्षित करने की प्रेरणा भी मिलती है। बीएस माहल ने पौधारोपण को जीवन का हिस्सा बना लिया है। वह सेवानिवृत्ति के बाद आठ साल में 450 पौधे रोप चुके हैं और इनमें ज्यादातर बरगद व पीपल के हैं।
पौधों को रोपने के लिए उस भूमि का चयन किया है, जिसके आसपास मकान नहीं हैं। माहल को पौधे बिलासपुर जिले के सुंगल व चंबा जिले की एक निजी नर्सरी निश्शुल्क उपलब्ध करवा रही हैं। उन्होंने वन विभाग से अभी तक कोई सहयोग नहीं लिया है। पौधारोपण के साथ-साथ पीपल और बरगद के पेड़ों का मोल कोरोना काल से पहले ही लोगों को समझा रहे हैं। अब वह इस कार्य में जन सहभागिता भी सुनिश्चित करवा रहे हैं। इसके अलावा वह रोपे गए पौधों की देखरेख का जिम्मा भी उठा रहे हैं।
वन विभाग भी निश्शुल्क देगा पौधे
अब धर्मशाला वन मंडल भी लोगों को निश्शुल्क बरगद व पीपल के पौधे मुहैया करवाएगा। इसके लिए लोगों को प्रार्थना पत्र वन परिक्षेत्र अधिकारी या नर्सरी प्रभारी को देना होगा कि वे कहां-कहां पौधे रोपेंगे।
पांच से सात साल तक करनी पड़ती है देखभाल
बरगद के पौधों की पांच से सात साल तक देखभाल करनी पड़ती है। इसके बाद ये पौधे अपनी चाल से बढ़ते हैं। इससे पहले यह देखना पड़ता है कि कहीं कोई पौधा सूख तो नहीं रहा है। मैं अब तक बरगद, पीपल, जामुन व आंवला सहित अन्य प्रजातियों के पौधे रोप चुका हूं। कोरोना काल ने भी लोगों को पौधारोपण का महत्व समझाया है।
वन विभाग की ओर से नर्सरियों में बरगद के पौधे तैयार किए जाते हैं। विभाग की ओर से खुले स्थानों पर ही पौधे रोपे जाते हैं और खुले स्थान पर ही रोपा जाना चाहिए। मांग पर लोगों को निश्शुल्क मुहैया करवाए जाते हैं। ये बड़े पेड़ होते हैं और अन्य पौधों की तुलना में ज्यादा जगह घेरते हैं।
–डा. संजीव शर्मा, डीएफओ वन मंडल धर्मशाला
Source : “जागरण”