पश्चिमी देशों (Western countries) के विपरीत भारत में इस मामले पर ज्यादा डिबेट्स नहीं हुई कि क्या स्कूलों को खोलना चाहिए या नहीं क्योंकि लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी देश में बड़े पैमाने पर लोगों को कोविड-19 के संक्रमण का डर सता रहा है. जैसे-जैसे वक्त बीत रहा है कोरोना वायरस के केस बजाए कम होने के लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं. देश भर कई स्कूल्स ऐसे हैं जो ऑनलाइन क्लासेस के जरिए बच्चों को पढ़ा रहे हैं. हालांकि ये व्यवस्था सिर्फ शहरी क्षेत्र या उनसे सटे गांवों और कस्बों में ही संभव है, जहां के बच्चे नेट और लैपटॉप के जरिए अपने लर्निंग स्किल्स को इंप्रूव कर रहे हैं वहीं जिन गांवों में इंटरनेट की स्पीड काफी धीमी है, वहां ऑनलाइन क्लासेस लेना स्टूडेंट्स के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है.
हालांकि, पश्चिमी भारत के नीलमनगर में शिक्षकों ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक अनूठी पहल शुरू की है ताकि बच्चे तकनीकी कमियों (technological shortfalls) के कारण स्कूल की क्लासेज लेने से न चूकें. यहां पर शिक्षकों ने 6-16 के साल के कुल 1,700 छात्रों के लिए आउटडोर क्लासेस की शुरुआत की है. जहां घर की दीवारों को बोर्ड बनाया गया है और इन्हें चित्रित किया गया है. छात्रों का एक छोटा ग्रुप चित्रित दीवारों के आसपास इकट्ठा होता है जिसके जरिए शिक्षक बच्चों को पढ़ाते हैं. यकीनन ग्रामीण क्षेत्र में शिक्षकों की यह काबिल-ए-तारीफ पहल है. ऐसे में घर की कच्ची दीवारे बच्चों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गई हैं.
चित्रित दीवारों पर शिक्षक लेखन से लेकर त्रिकोणमिति (trigonometry) तक के जरिेए छात्र-छात्राओं को पढ़ा रहे हैं। गांव में भित्ति चित्र कई विषयों को कवर करते हैं, जो स्थानीय मराठी और अंग्रेजी में लिखे गए हैं. दीवारों में से एक में दीवार पर अक्षर ‘एस’ से शुरू होने वाली वस्तुओं को स्कूटर, कुदाल और झूले सहित बनाया जाता है और ‘देखो, सुनो और कहो’ जैसे शब्दों के नीचे काले रंग में चित्रित किया जाता है.
समाचार एजेंसी एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, आशा मराठी विद्यालय के शिक्षक राम गायकवाड़ ने कहा, “चूंकि अधिकांश परिवारों को अपने बच्चों को डिजिटल रूप से शिक्षित करने के लिए संसाधनों की कमी है, इसलिए हमने बच्चों को पढ़ाने के लिए अपना एक नया तरीका (Innovative method) खोजा है. बता दें कि वर्तमान में, गांवों में 250 दीवारों को चित्रित किया गया है और 200 को दीवारों को इसी अभियान से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.
इस गांव में IAS बनने के सपने देखने वाले 13 साल के यशवंत अंजलकर के लिए महामारी के वक्त चित्रित दीवारें ही सीखने की एकमात्र उम्मीद हैं क्योंकि उनके परिवार की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है.
अंजलकर ने कहा, “जब मेरी मां मुझे दूध खरीदने के लिए भेजती है, तो मैं गांव से गुजरता हूं और दीवारों पर पाठ देखता हूं..मुझे अपने स्कूल और मेरे दोस्तों की बहुत याद आती है. घर पर बैठना बोरिंग लगता है पर दीवारों के आस-पास आकर पढ़ाई करने का एक शानदार तरीका है। मैं इस महामारी के दौरान भी पढ़ाई जारी रखना चाहता हूं.”
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