30 अगस्त 2022 | आपने कई गणेश मंदिरों में भगवान गणेश को उनके वाहन मूषक की सवारी करते देखा होगा, लेकिन मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में एक ऐसा गणेश मंदिर है, जहां भगवान मूषक की सवारी नहीं बल्कि घोड़े की सवारी करते हैं। यही वजह है कि यहां भगवान गणेश की पूजा ‘कल्कि गणेश’ के रूप में की जाती है। जबलपुर शहर की रतन नगर की पहाड़ियों पर स्थित सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में भगवान की स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। करीब 50 फीट की ऊंचाई पर भगवान गणेश की प्रतिमा शिला स्वरूप में हैं। यहां भक्त मनोकामनाओं के लिए अर्जी लगाते हैं मनोकामना पूरी होने पर भगवान गणेश को सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है।
रोचक है मंदिर स्थापना की कहानी
कुछ वर्षों पहले रतन नगर की पहाड़ियों को अवैध तरीके से तोड़ा जा रहा था। उसी दौरान एक महिला को एक शिला पर भगवान गणेश के दर्शन हुए और उसने वहां पूजा की, जिसके बाद धीरे-धीरे इस जगह की ख्याति बढ़ती गई। लोग यहां पूजा कर मन्नतें मांगने आया करते थे। लोगों की मन्नत पूरी होती गई और यहां आने वाले भक्तों की संख्या भी साल दर साल बढ़ती गई। भक्त यहां मनोकामनाओं के लिए अर्जी लगाते हैं।
घोड़े पर सवार हैं गजानन
भगवान गणेश का वाहन चूहा है लेकिन सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में स्थित प्रतिमा में वे घोड़े पर सवार हैं। यहां स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा काफी विशाल है, कहा जाता है कि प्रतिमा पाताल तक समाई है। सिर्फ भगवान गणेश की विशाल सूंड धरती के बाहर नजर आती है, जबकि शेष शरीर धरती के अंदर है। मंदिर करीब डेढ़ एकड़ क्षेत्र में फैला है। मंदिर में भगवान को सिंदूर और झंडा चढ़ाने तथा वस्त्र अर्पित करने की परंपरा है।
सिंदूर चढ़ाने की अर्जी लगाते हैं भक्त
मान्यता है कि भगवान गणेश की 40 दिन नियमित पूजा अर्चना करने वाले भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मनोकामना पूरी होने के बाद लोग दर्शन-अनुष्ठान करते हैं। जो सिंदूर चढ़ाने की अर्जी लगाते हैं, वे लोग सिंदूर चढ़ाते हैं।
मंदिर समिति के सचिव अनिल कुमार सिंह ने बताया कि सुप्तेश्वर गणेश मंदिर में कोई गुंबद या दीवार नहीं है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। भक्तों को प्राकृतिक पहाड़ी में जिस स्वरूप में भगवान हैं उसी स्वरूप में पूजा करने का अवसर मिलता है। मंदिर के पुजारी मदन तिवारी का कहना है कि गणेशोत्सव में प्रत्येक दिन सुबह धार्मिक अनुष्ठान एवं शाम को महाआरती की जाती है। साल भर में मंदिर में तीन माह में एक बार सिंदूर चढ़ाने की रस्म अदा की जाती है। इसके अलावा गणेश चतुर्थी से 11 दिन गणेशोत्सव में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। प्रत्येक माह गणेश चतुर्थी को महाआरती की जाती है, वहीं, श्रीराम नवमीं एवं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव पर भी मंदिर में विशेष पूजा का विधान है।
किसने की थी सबसे पहली पूजा
कहा जाता है कि प्रेम नगर में रहने वाली बुजुर्ग सुधा अविनाश राजे को स्वप्न में भगवान गणेश ने दर्शन दिए थे, जब वे रतन नगर की पहाड़ी पर पहुंची तो उन्हें स्वप्न में जिस गणेश प्रतिमा के दर्शन हुए थे वह एक शिला पर नजर आए, जिसके बाद उन्होंने चार सितम्बर 1989 को गंगा जल एवं नर्मदा जल से शिला का अभिषेक कर सिंदूर और घी चढ़ाकर पूजा की। धीरे-धीरे भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। सुप्तेश्वर विकास समिति का 2009 में गठन हुआ, जिसके बाद मंदिर ने धीरे-धीरे भव्य स्वरूप ले लिया। मंदिर के रिसीवर तहसीलदार जबलपुर हैं।
सोर्स :-“अमर उजाला”