8 फरवरी 2022। कहानी – संत वीरदास जी से जुड़ा किस्सा है। उन दिनों आने-जाने के साधन बहुत कम थे, लोग पैदल आना-जाना करते थे। संत वीरदास जी का एक ही काम था, थके हुए लोगों को रोककर भोजन कराना और पानी पिलाना। दूसरों का पेट भरकर वे खुद को तृप्त महसूस करते थे। उनका ये रोज का नियम था। एक दिन ऐसा हुआ कि सुबह से रात तक कोई राहगीर वहां से निकला ही नहीं।
संत वीरदास जी ने सोचा कि राहगीरों को भोजन कराए बिना मैं खुद कैसे भोजन कर सकता हूं। तब उन्हें एक बूढ़ा यात्री दिखाई दिया। वीरदास जी ने उस बूढ़े को आवाज लगाई और कहा, ‘आप भोजन कर लें।’
बूढ़ा व्यक्ति भोजन करना नहीं चाहता था, लेकिन वीरदास जी ने कहा, ‘कुछ तो खा लीजिए, दूर तक जाना है।’ ये बात सुनकर बूढ़ा व्यक्ति भोजन करने बैठ गया। वीरदास जी ने उसके सामने खाना परोसा। उसने खाना शुरू ही किया था कि वीरदास जी ने उससे कहा, ‘आप खाना खाने से पहले परमात्मा को याद नहीं करते हैं? भगवान को धन्यवाद नहीं देते हैं?’
बूढ़ा बोला, ‘इसमें भगवान को धन्यवाद देने की क्या बात है? आपने बुलाया हमने भोजन किया, अब बीच में भगवान कहां से आ गया?’ ये बात सुनकर वीरदास जी चौंक गए। उन्हें गुस्सा आ गया। संत जी ने उस बूढ़े से खाने की थाली ले ली और कहा, ‘अब आप भूखे ही जाइए। आपको भोजन कराना परमात्मा का अपमान है।’
बूढ़ा वहां से चला गया और संत वीरदास जी भूखे ही सो गए। उस रात संत जी के सपने में भगवान आए और बोले, ‘वीरदास ये तुमने क्या किया? आज तुमने मेरा ही अपमान कर दिया।’ वीरदास जी बोले, ‘वह व्यक्ति आपका अपमान कर रहा था, इसलिए मैंने उससे खाने की थाली ले ली।’
भगवान ने कहा, ‘उस व्यक्ति की उम्र 90 साल है और वह मुझे इतने ही समय से कोस रहा है, मुझे नहीं मानता, लेकिन फिर भी मैं रोज उसके भोजन की व्यवस्था कर देता हूं। फिर तुम्हें उससे भोजन छिनने का अधिकार किसने दिया?’ संत वीरदास जी समझ गए कि भगवान क्या कहना चाहते हैं।
सीख- हमें यह बात समझनी चाहिए कि अगर किसी को खाना खिलाने का अवसर मिले तो उसे प्रेम से भोजन कराएं। दूसरों को खाना खिलाने के बाद घमंड न करें और अन्न का एक दाना भी फेंकना नहीं चाहिए। किसी के अच्छे-बुरे काम का निर्णय भगवान पर छोड़ दें, हम इस संबंध में निर्णय न करें। हमें तो नि:स्वार्थ भाव से सभी की सेवा करनी चाहिए।
Source;-“दैनिक भास्कर”