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जब अमेरिका ने ‘गलती’ से बना डाला हिरोशिमा से भी हजार गुना ताकतवर बम, मांगनी पड़ी माफी

ByADMIN

Mar 2, 2024

अमेरिका ने 1 मार्च, 1954 बिकिनी अटोल पर हाइड्रोजन-बम का परीक्षण किया जिसे कैसल ब्रावो टेस्ट नाम दिया गया. वैज्ञानिकों ने विस्फोट की ताकत का बहुत कम अनुमान लगाया था. उन्होंने सोचा था कि इससे 50 लाख टन टीएनटी के बराबर का धमाका होगा, लेकिन ब्रावो से इससे तीन गुना ज्यादा बड़ा धमाका हुआ.

दूसरे विश्व युद्ध में जब जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर एटॉमिक बम गिराएं गए तो लगा था कि इंसान इन खतरनाक हथियारों से दूरी बना लेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद अगले दशक में बिकनी अटोल नाम की जगह पर दर्जनों एटॉमिक बम टेस्ट किए. 1946 से 1958 के बीच बिकनी अटोल पर 20 हाइड्रोजन बम परीक्षण किए गए. इनमें से ही एक था ‘ब्रावो’ टेस्ट जो अब तक का सबसे बड़ा अमेरिकी परमाणु परीक्षण है, जिसे 1954 में आज ही तारीख यानी 1 मार्च को किया गया था.

बिकिनी अटोल प्रशांत महासागर में एक कोरल आइलैंड है, जो एक अंगूठी के आकार का है. ये दो स्क्वायर किमी का एक क्षेत्र है और इसमें 23 छोटे कोरल द्वीप हैं. यह मार्शल आइलैंड-चेन में स्थित एक द्वीप है, जो हवाई और फिलीपींस के बीच स्थित है. परमाणु परीक्षण के बाद यह यह अटोल दुनिया की सबसे मशहूर जगहों से एक बन गया. एक फ्रांसीसी डिजाइनर ने तो इसके नाम पर एक स्विमिंग सूट का नाम तक रख दिया था. आइए जानते हैं बिकिनी अटोल पर हुए ऐतिहासिक ब्रावो टेस्ट के बारे में.

क्यों चुना गया बिकनी अटोल, निवासियों को क्या बताया गया?

बिकनी अटोल को टेस्ट साइट चुनने की वजह थी कि वो सेना के मानदंडों को पूरा करता है. यह शिपिंग लेन से बहुत दूर था. यहां एक छोटी आबादी थी – एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल 167 लोग – जिन्हें सेना द्वारा स्थानांतरित किया जा सकता था. द्वीप के निवासियों को वहां से हटाने का भी एक दिलचस्प किस्सा है.

100 किलोमीटर दूर तक जोरदार विस्फोट को महसूस किया गया था.

साल 1946 में, नेवी कमोडोर बेन व्याट ने बिकनी अटोल पर रहने वाले 167 लोगों से मुलाकात की. व्याट ने उन लोगों को भरोसा दिलाया कि इस अटोल का इस्तेमाल ‘मानव जाति की भलाई के लिए’ होगा. उन्होंने समझाया कि परमाणु हथियारों को बेहतर बनाने से भविष्य के युद्धों को रोका जा सकता है. निवासियों को इसको लेकर संकोच था. लेकिन अंत में उनके नेता ने यह कहते हुए द्वीप छोड़ दिया की, ‘हम यह विश्वास करते हुए जा रहें कि सब कुछ भगवान के हाथ में है.’ निवासियों से वादा किया गया था कि वे एक दिन वापस लौट सकते हैं. हालांकि, टेस्ट के बाद ऐसी परिस्थिति बन गई जिसकी वजह से अमेरिकी सरकार अब तक अपने वादे को पूरा नहीं कर पाई.

गलती से बना डाला सबसे ताकतवर बम

अमेरिका ने 1 मार्च, 1954 बिकिनी अटोल पर हाइड्रोजन-बम का परीक्षण किया जिसे कैसल ब्रावो टेस्ट नाम दिया गया. आंकड़ों में हुई चूक के चलते वैज्ञानिकों ने विस्फोट की ताकत का बहुत कम अनुमान लगाया था. उन्होंने सोचा था कि इससे 50 लाख टन टीएनटी के बराबर का धमाका होगा, लेकिन ‘ब्रावो’ से इससे तीन गुना ज्यादा बड़ा धमाका हुआ.

ब्रावो से 150 लाख टन का धमाका हुआ. यह धमाका हिरोशिमा पर गिराए गए बम से हजार गुना ज्यादा बड़ा था. आसमान में बनने वाले मशरूम बादल की ऊंचाई 40 किलोमीटर (1,30,000 फीट) तक पहुंच गई थी. धमाके से करीब 2 किलोमीटर चौड़ा छेद बन गया जो 80 मीटर (260 फीट) गहरा था. दूर-दूर के द्वीपों से धमाके की रोशनी करीब एक मिनट तक दिखाई देती रही. यह अमेरिका के इतिहास में हाइड्रोजन बम का जमीन के ऊपर किया गया सबसे बड़ा परीक्षण था. 15 मेगाटन का यह डिवाइस उस दौर के परमाणु बमों में सबसे ज्यादा शक्तिशाली था.

स्रोत :- ” TV9 भारतवर्ष    

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