• June 29, 2024 11:20 am

पेड़ों से क्यों झड़ती हैं पत्तियां, कैसे बदलती हैं रंग, क्या कहता है विज्ञान?

01 अप्रैल 2023 |  भारत में अलग-अलग जगहों पर मौसम अलग समय में करवट बदलता है. ठीक इसी तरह अलग-अलग जगहों पर पतझड़ भी अलग-अलग समय पर आता है. मध्‍य भारत में जहां पतझड़ का मौसम सर्दियां खत्‍म होने और बसंत ऋतु शुरू होने पर यानी फरवरी से अप्रैल के बीच आता है. वहीं, कश्‍मीर में सितंबर से दिसंबर तक पतझड़ का मौसम रहता है. इस दौरान पत्तियां धीरे-धीरे अपना रंग बदलती हैं और पेड़ों से टूटकर अलग हो जाती हैं. कश्‍मीर में तो पतझड़ के आखिर तक चिनार की पत्तियां कई रंग बदल लेती हैं. आखिर पेड़ों से पत्तियां झड़कर अलग क्‍यों हो जाती हैं और इससे पहले ये अपना रंग कैसे बदलती हैं?

पेड़ों के लिए पत्तों का झड़कर अलग हो जाना मौसमी विकास चक्र का अंत होता है. पत्तियां तब झड़ती हैं, जब पेड़ स्थानीय जलवायु की प्रतिकूलता महसूस करना शुरू करते हैं. इस दौरान वातावरण में सर्दी या गर्मी बढ़ती जाती है. वातावरण में नमी की कमी हो जाती है और पत्तियों से ज्‍यादा वाष्पोत्सर्जन होने लगता है. पेड़ों के लिए यह तनावपूर्ण समय होता है. इसका सामना करने के लिए ही पेड़ पत्तियों को गिरा देते हैं. पत्तियों के झड़ने के कारण ऊतक कम हो जाते हैं. वहीं, पत्तियां कम होने से वाष्‍पोत्‍सर्जन भी कम होता है. लिहाजा, पेड़ों को कम पानी की जरूरत पड़ती है. इससे पेड़ खुद को जीवित और स्वस्थ रखने में कामयाब हो जाते हैं.

पत्तियों से सोख लेते हैं पौष्टिक तत्‍व
पेड़ पतझड़ से पहले पत्तियों से पौष्टिक तत्‍वों को भी खींच लेते हैं. कुछ पौधे इन पौष्टिक तत्‍वों का इस्‍तेमाल सही मौसम आने पर नई पत्तियां बनाने के लिए कर लेते हैं. वहीं, कुछ क्षेत्रों में पतझड़ फल-फूल लगने के मौसम में होता है. ऐसे इलाकों में पेड़-पौधे पत्तियों से सोखे गए पौष्टिक तत्‍वों का इस्‍तेमाल फल-फूल में बांट देते हैं. वहीं, जिन इलाकों में सर्दियों से पहले पतझड़ आता है, वहां, पेड़-पौधे ऐसा करके खुद को सफलतापूर्वक जिंदा रख पाते हैं. पेड़ों को भी इंसानों व दूसरे जीव-जंतुओं की तरह जीने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है. पेड़-पौधे इस ऊर्जा को प्रकाश संश्‍लेषण की क्रिया के जरिये हासिल करते हैं. ये क्रिया सूर्य की रोशनी में हरी पत्तियां ही कर पाती हैं.

पतझड़ में रंग बदलती हैं पत्तियां
पत्तियों में मौजूद क्‍लोरोफिल की मदद से पेड़-पौधे धूप को सोख लेते हैं. इसके बाद पानी और कार्बन डाई-ऑक्‍साइड को शर्करा में बदल लेते हैं. पेड़-पौधे क्‍लोरोफिल को छोटे अणुओं में तोड़कर तने और जड़ों में इकट्ठा कर लेते हैं. पत्तियों में क्‍लोरोफिल के साथ ही लाल और पीले पिगमेंट्स भी होते हैं. पतझड़ के समय क्‍लोरोफिल तने और जड़ों में जमा होने लगता है. इससे ये लाल-पीले पिगमेंट्स उभरकर सामने आने लगते हैं. जहां क्‍लोरोफिल के कारण पत्तियों का रंग हरा होता है. वहीं, कैरोटीनाइड के कारण पत्तियों का रंग नारंगी व पीला और एंथोसायनिन के कारण लाल व गुलाबी हो जाता है.

पतझड़ में ऊर्जा की बचाते हैं पेड़
पतझड़ के मौसम में पेड़-पौधे पत्तियों में क्‍लोरोफिल इकट्ठा होने की प्रक्रिया को रोककर जड़ व तना में जमा करने लगते हैं. दरअसल, ये पेड़-पौधों की पतझड़ से मुकाबला करते हुए जिंदा रहने के लिए ऊर्जा बचाने की तैयारी होती है. वहीं, जिन इलाकों में सर्दियों में पतझड़ आता है, वहां पत्तियों पर पानी जमने के कारण पेड़ों को प्रकाश संश्‍लेषण के लिए पर्याप्‍त पानी नहीं मिल पाता है. ऐसे में पत्तियों को गिराकर पेड़-पौधे अपने लिए जरूरी ऊर्जा की बचत कर लेते हैं. इसके बाद जब फिर दिन बड़े होने लगते हैं और तापमान बढ़ने लगता है तो जड़ और तने में मौजूद क्‍लोरोफिल ऊपर आकर नई हरी पत्तियां बनाना शुरू कर देता है.

गिरी पत्तियों से पोषक तत्‍व लेते हैं
जिन इलाकों में सर्दियों के जाने पर पतझड़ का मौसम आता है, वहां पेड़-पौधे गर्मियों में खुद को जिंदा रखने के लिए पत्तियों को गिराकर तैयारी करते हैं. पत्तियों में बदलाव करना पेड़-पौधों के लिए जैविक प्रक्रिया है. इस दौरान वे शाखाओं से पत्ते गिराकर सूखे के दौरान मरने से बचने की तैयारी करते है. दरअसल, गर्मियों में हरी पत्तियां होने से वाष्‍पोत्‍सर्जन क्रिया काफी तेजी से होगी. इससे ऊर्जा तो बहुत बनेगी, लेकिन इसके लिए पानी की आवश्‍कता भी ज्‍यादा ही पड़ेगी. गर्मियों के मौसम में जमीन में भी पानी का स्‍तर घटने लगता है. वहीं, पेड़ों से गिरी हुई पत्तियां कचरा नहीं होती हैं. ये पत्तियां मिट्टी में पोषक तत्वों को जोड़ने का काम भी करती हैं. इन्हीं पत्तियों के कारण बसंत ऋतु के बाद पेड़ मिट्टी से पोषण प्राप्त करता है और जड़ें मजबूत हो जाती हैं. पेड़ों को फॉस्फोरस, मैग्नेशियम जैसे जरूरी पोषक तत्‍व झड़कर गिरी सूखी पत्तियों से ही मिल जाते हैं.

सोर्स :-“न्यूज़ 18 हिंदी|”   

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