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सऊदी अरब में तुर्की के बहिष्कार की अपील क्यों हो रही है?

ByPrompt Times

Oct 7, 2020
सऊदी अरब में तुर्की के बहिष्कार की अपील क्यों हो रही है?

लेकिन अब दोनों देशों की ओर से आ रहे बयान उनके कूटनीतिक संबंधों को नई दिशा में ले जा सकते हैं.

तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन के एक बयान के बाद सऊदी अरब के चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के प्रमुख ने तुर्की का हर तरह से बहिष्कार करने की अपील की है.

काउंसिल ऑफ़ सऊदी चैंबर्स के चेयरमैन अजलान अल अजलान ने ट्वीट किया है, “हर सऊदी नागरिक चाहे वह व्यापारी हो या उपभोक्ता, उसकी ज़िम्मेदारी है कि वह तुर्की का हर तरह से बहिष्कार करे. चाहे वह आयात के स्तर पर हो, निवेश के स्तर पर या फिर पर्यटन के स्तर पर. यह सब हमारे नेता, हमारे देश और हमारे नागरिकों के ख़िलाफ़ तुर्की सरकार के निरंतर विरोध के जवाब में है.”

पोस्ट Twitter समाप्त, 1

क्यों आया यह ट्वीट?

दरअसल इस ट्वीट को हाल में तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन के बयान के जवाब के रूप में देखा जा रहा है.

हाल ही में तुर्की की जनरल असेंबली में राष्ट्रपति अर्दोआन ने कहा था कि खाड़ी के कुछ देश तुर्की को निशाना बना रहे हैं और उन नीतियों का पालन कर रहे हैं, जिससे अस्थिरता आ सकती है.

इसके बाद उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा, “यह नहीं भूलना चाहिए कि जो देश आज सवालों के घेरे में हैं वह कल तक अस्तित्व में ही नहीं थे और शायद वह कल मौजूद न हों. हालाँकि, अल्लाह की सहमति से हम इस क्षेत्र में हमेशा अपना झंडा फ़हराते रहेंगे.”

अर्दोआन के इस बयान को सीधे तौर पर सऊदी अरब से जोड़कर देखा गया, जो साल 1932 में अस्तित्व में आया था.

बहिष्कार का कुछ होगा असर?

सऊदी अरब से बहिष्कार की अपील चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के प्रमुख की ओर से आई है. इसका कितना व्यापक असर होगा यह तो समय बताएगा लेकिन अगर इसका असर होता है तो तुर्की पर प्रभाव पड़ सकता है.

इसकी प्रमुख वजह तुर्की की मुद्रा लीरा का लगातार गिरना है.

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, तुर्की की मुद्रा लीरा लगातार आठवें साल भी गिर रही है और पिछले एक दशक में इसका मूल्य 80 फ़ीसदी तक गिर चुका है.

मध्य-पूर्व मामलों के जानकार क़मर आग़ा कहते हैं कि अगर इस अपील पर अमल हुआ, तो तुर्की पर असर पड़ सकता है क्योंकि तुर्की में सऊदी अरब की तक़रीबन एक हज़ार निजी कंपनियाँ हैं. इसके अलावा तुर्की घूमने जाने वाले सऊदी नागरिकों की अच्छी ख़ासी तादाद है.

वो कहते हैं, “तुर्की और सऊदी अरब के बीच राजनीतिक मतभेद बहुत बढ़ते चले जा रहे हैं. इसमें क्षेत्रीय स्तर पर यमन, लीबिया, इराक़ और सूडान को लेकर राजनीतिक मतभेद के साथ-साथ इस्लाम को लेकर नेतृत्व की रस्साकशी भी चल रही है.”

क़मर आग़ा कहते हैं कि सऊदी अरब सरकार ने अब तक ऐसा कोई फ़ैसला नहीं लिया है, लेकिन अगर सऊदी ऐसा फ़ैसला ले ले, तो बहरीन और यूएई भी इस तरह का फ़ैसला लेगा और तब तुर्की की मुश्किलें बहुत बढ़ जाएँगी.

तुर्की-सऊदी अरब के बीच कितना व्यापार

समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, दूसरी तिमाही में कुल आयात के मामले में तुर्की सऊदी अरब का 12वाँ व्यापारिक साझेदार है. ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि तुर्की से सऊदी अरब में आयात जून में 18 करोड़ डॉलर का था, जो जुलाई में 18.5 करोड़ डॉलर का हो गया.

अंकारा की यिल्दिरिम बेयाज़ित विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ओमेर अनस कहते हैं कि यह अपील सऊदी अरब की हताशा को दिखाता है.

तुर्की के बाद सऊदी अरब को मिला तेल-गैस भंडार

वो कहते हैं, “मैं इसे इसलिए हताशा भरा क़दम कहूँगा, क्योंकि इस आर्थिक बहिष्कार को आधिकारिक बनाने के लिए वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइज़ेशन (WTO) के बहुत सारे क़ानूनों का उल्लंघन करना होगा. अगर क़तर की तरह सऊदी सरकार तुर्की का आर्थिक बहिष्कार करती है, तो तुर्की इसे WTO में चुनौती देगा. और जिस तरह से क़तर के मामले में WTO ने उसके पक्ष में फ़ैसला दिया था वैसे ही तुर्की के पक्ष में फ़ैसला आ सकता है.”

“WTO के क़ानून के मुताबिक़, आप किसी देश का आर्थिक बहिष्कार तब तक नहीं कर सकते, जब तक राष्ट्रीय सुरक्षा का बड़ा मामला सामने न आ जाए. आर्थिक बहिष्कार की यह अपील मुझे लगता है कि एक राजनीतिक दांव है, जो तुर्की को दबाव में लाने के लिए किया जा रहा है. देखना यह है कि सऊदी जनता इसे कितना मानती है.”

ओमेर अनस कहते हैं कि सऊदी अरब और तुर्की के बीच 5 अरब डॉलर का व्यापार होता है, जिसमें ढाई अरब डॉलर तुर्की की ओर से ढाई अरब डॉलर सऊदी अरब की ओर से होता है.

वो कहते हैं, “तुर्की सऊदी अरब से ज़्यादातर तेल लेता है, जबकि बहुत सी चीज़ें वो सऊदी को निर्यात भी करता है. सऊदी अरब के लोगों का तुर्की में बहुत निवेश है. उनके घर और कंपनियाँ यहाँ पर हैं और बीते 5 सालों में तक़रीबन 5 से 6 अरब डॉलर का निवेश तुर्की में सऊदी के लोगों ने किया है.”

“सऊदी पर्यटक सबसे अधिक तुर्की में ही घूमने आते हैं. तक़रीबन 8 लाख सऊदी पर्यटक हर साल तुर्की आते हैं. सऊदी की जनता तभी तुर्की का बहिष्कार कर पाएगी, जब इस पर क़ानून बन जाए लेकिन मुझे लगता है कि इस अपील का व्यापक असर नहीं होगा.”

कब से रिश्ते ख़राब होने शुरू हुए

तुर्की और सऊदी अरब के बीच रिश्ते अच्छे नहीं माने जा रहे हैं और इसकी शुरुआत 2018 में पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद हुई थी.

सऊदी सरकार के प्रमुख आलोचक ख़ाशोज्जी पर 2018 में तुर्की के इस्तांबुल शहर में स्थित सऊदी दूतावास में सऊदी एजेंट्स की एक टीम ने हमला किया था. उनकी लाश के टुकड़े कर दिए गए थे जिन्हें कभी बरामद नहीं किया जा सका.

ख़ाशोज्जी की हत्या के लिए अर्दोआन सऊदी अरब के ‘शीर्ष स्तर’ को ज़िम्मेदार ठहराते रहे हैं. हाल में ख़ाशोज्जी हत्या मामले से जुड़े पाँच दोषियों की सज़ा बदलने से भी तुर्की नाराज़ था.

सऊदी अरब की एक अदालत ने सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी हत्या मामले में दोषी ठहराए गए पाँच लोगों की मौत की सज़ा को बदल दिया था. पहले पाँच लोगों को मौत की सज़ा सुनाई गई थी, लेकिन उसे सात से 20 साल तक जेल की सज़ा में बदल दिया गया.

भारत के लिए इस्लामिक देशों ने बढ़ाई मुश्किल

इसके जवाब में तुर्की ने बीते सप्ताह ख़ाशोज्जी हत्या मामले में छह सऊदी संदिग्धों के ख़िलाफ़ अभियोग शुरू किया था. इनमें से कोई भी नागरिक तुर्की में नहीं है और उनकी ग़ैर-मौजूदगी में यह केस शुरू किया गया है.

इसके अलावा ख़ाशोज्जी हत्या मामले में 20 सऊदी नागरिकों के ख़िलाफ़ इस्तांबुल की कोर्ट में मामला चल रहा है.

तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन मध्य पूर्व के कुछ देशों के इसराइल के साथ सामान्य होते रिश्तों को लेकर भी नाख़ुश हैं.

इसराइल के साथ हाल में यूएई और बहरीन ने सामान्य कूटनीतिक रिश्तों की घोषणा की थी और ऐसा समझा जा रहा है कि सऊदी अरब भी ऐसी कोई घोषणा कर सकता है.

तुर्की और सऊदी की रस्साकशी की वजहें

रेचेप तैय्यप अर्दोआन तुर्की के अब तक के दूसरे सबसे ताक़तवर नेता माने जाते हैं. उनसे पहले सिर्फ़ तुर्की के संस्थापक मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क या मुस्तफ़ा कमाल पाशा का नाम आता है.

दुनियाभर में दो देश मुस्लिम राष्ट्रों के नेता बनना चाहते हैं- सऊदी अरब और तुर्की.

जब भी सऊदी अरब किसी मसले पर अपनी प्रतिक्रिया देता है, तुर्की उसे काटने की कोशिश करता है.

सऊदी अरब को लगता है कि उसके यहाँ मक्का है और पैग़म्बर मोहम्मद का जन्म वहीं हुआ था, इसलिए वो दुनिया के इस्लामिक देशों का नेता है.

हालाँकि तुर्की ख़ुद को सऊदी से ज़्यादा ताक़तवर मानता है और उसे लगता है कि वो मुसलमानों का सच्चा हितैषी है.

यही कारण है कि सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या के मामले में भी तुर्की इसके ख़िलाफ़ मुखर था और अब इसराइल से सामान्य होते कई देशों के रिश्तों के ख़िलाफ़ भी वह बोल रहा है.

हालांकि, ओमेर अनस कहते हैं कि सऊदी अरब के लिए यह मुश्किल है कि वह तुर्की जैसे देश के साथ लंबे समय तक झगड़ा बनाए रखेगा, इसकी वजह तुर्की का नेटो में शामिल होना और लगातार अपनी ताक़त को बढ़ाना है.

वो कहते हैं, “ख़ाशोज्जी के मामले को छोड़ दें तो तुर्की और सऊदी अरब के बीच ऐसा कुछ नहीं हुआ है जिससे रिश्ते बहुत ख़राब हुए हों. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा भी था कि जब तक सऊदी अरब में किंग सलमान हैं और तुर्की में अर्दोआन हैं तब तक दोनों देशों के बीच रिश्ते ख़राब नहीं हो सकते. मुझे लगता है एक पहल की जानी बाक़ी है, क्योंकि रिश्ते ख़राब होने का दौर ज़रूर है लेकिन टूटने का वक़्त अभी नहीं आया है.”

इसके अलावा ओमेर अनस इस बात से भी सहमत नहीं हैं कि तुर्की अपने आप को मुस्लिम देशों का लीडर बनाना चाहता है.

वो कहते हैं, “तुर्की की विदेश नीति और उसके इतिहास को देखें तो यह कहना ज़्यादा सही नहीं होगा कि तुर्की मुस्लिम देशों का लीडर बनना चाहता है. तुर्की को हमेशा से ख़ुद को एक यूरोपीय देश कहलाने की बेचैनी रही है और उसका मुक़ाबला मिस्र और एशिया से नहीं बल्कि जर्मनी-फ़्रांस और यूरोपीय देशों से रहा है. तुर्की यूरोपीय संघ का सदस्य बनना चाहता है और नेटो का सदस्य है.”

ओमेर अनस कहते हैं कि तुर्की को फ़िलहाल मुस्लिम दुनिया का नया खिलाड़ी समझा जाना चाहिए, क्योंकि सऊदी अरब, ईरान और मिस्र मुस्लिम दुनिया के पारंपरिक खिलाड़ी हैं.

















BBC

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