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क्या रूस की आमदनी घटाने में कारगर होगी जी-7 की नई तेल खरीद नीति

ByADMIN

Jun 28, 2022
28 जून 2022 |विश्लेषकों के मुताबिक अब तक लगाए गए प्रतिबंधों का रूस पर ज्यादा असर इसलिए नहीं पड़ा है, क्योंकि वह तेल के नए बाजार ढूंढने में सफल रहा। फिर जो पश्चिमी देश अभी भी उससे तेल और गैस खरीद रहे हैं, उन्हें उसने इनके बदले अपनी मुद्रा रुबल में भुगतान करने के लिए मजबूर किया है...

विस्तार

जी-7 देशों ने रूस से कच्चे तेल के आयात के बारे में जिस नई नीति की बात की है, उसके प्रभावी होने को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। यहां अपनी शिखर बैठक के दौरान जी-7 देशों ने फैसला किया कि वे रूसी तेल के आयात की इजाजत देंगे, लेकिन शर्त यह होगी कि इसके बदले रूस को चुकाई जाने वाली कीमत पूर्व निर्धारित होगी। यानी उस कीमत से ज्यादा रकम रूस नहीं वसूल पाएगा।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नई योजना किस रूप में लागू होगी, इसका विवरण अभी सामने नहीं आया है। अमेरिकी अधिकारियों ने भरोसा जताया कि इस पर अमल से तेल निर्यात से रूस की आमदनी घट जाएगी। उधर विश्व बाजार में तेल की कीमत भी घटेगी। लेकिन अमेरिकी अखबार द न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि ये नई योजना इस बात की स्वीकृति है कि अब तक पश्चिमी देशों की तरफ से लगाए गए प्रतिबंधों से रूस के तेल राजस्व में कोई गिरावट नहीं आई है। जबकि उनकी वजह से दुनिया के बाकी हिस्सों में प्राकृतिक गैस और अन्य ईंधन के दाम रिकॉर्ड सीमा तक चढ़ गए हैं।

बेअसर रहे प्रतिबंध

विश्लेषकों के मुताबिक अब तक लगाए गए प्रतिबंधों का रूस पर ज्यादा असर इसलिए नहीं पड़ा है, क्योंकि वह तेल के नए बाजार ढूंढने में सफल रहा। फिर जो पश्चिमी देश अभी भी उससे तेल और गैस खरीद रहे हैं, उन्हें उसने इनके बदले अपनी मुद्रा रुबल में भुगतान करने के लिए मजबूर किया है। ज्यादातर यूरोपीय देशों ने गैस और तेल के बदले भुगतान के लिए रुबल के खाते खोल लिए। बुल्गारिया और पोलैंड जैसे कुछ गिने-चुने जिन देशों ने ऐसा करने से इनकार किया, रूस ने उनके यहां सप्लाई रोक दी। तब यूरोपियन यूनियन (ईयू) को बाकी सदस्य देशों में खरीदी गई गैस और तेल उन देशों को पहुंचाने का इंतजाम करना पड़ा।

अब यह सवाल उठाया गया है कि अगर रूस ने पश्चिमी देशों की तरफ से निर्धारित दर पर तेल या गैस देने से इनकार कर दिया, तो इसका क्या विकल्प उन देशों के पास होगा? पश्चिमी देश तेल के नए स्रोत ढूंढने में जोरशोर से लगे हुए हैं। सोमवार को एक बार फिर एक अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल वेनेजुएला पहुंचा। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद दूसरी बार अमेरिकी अधिकारी वहां गए हैं, जबकि अमेरिका ने वहां के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को मान्यता तक नहीं दे रखी है। समझा जाता है कि वेनेजुएला पश्चिमी देशों को तेल देने पर राजी हो गया है। लेकिन इसके बदले उसने क्या शर्त रखी है, इस बारे में अभी जानकारी सामने नहीं आई है।

सउदी अरब जाएंगे बाइडन

इस बीच अगले महीने के मध्य में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन सऊदी अरब जाएंगे। वहां उनका प्रमुख एजेंडा तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक को अधिक मात्रा में तेल उत्पादन के लिए राजी करना होगा। लेकिन सोमवार को आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि ये देश अपनी क्षमता के बराबर पहले से ही उत्पादन कर रहे हैं। इसलिए वहां उत्पादन में ज्यादा बढ़ोतरी की संभावना नहीं है।

जानकारों का कहना है कि जब तक पश्चिमी देश तेल और गैस के नए स्रोत नहीं ढूंढ लेते, रूस पर कीमत संबंधी शर्त थोपना मुश्किल बना रहेगा। इसीलिए रूस तेल खरीद की नई नीति को लेकर संशय जताया जा रहा है।

सोर्स ;-“अमर उजाला”  

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