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इस्लामिक देशों का यह ग़ुस्सा क्या किसी नतीजे पर पहुँचेगा?

ByADMIN

Dec 11, 2023 ##prompt times

11 दिसंबर 2023 ! संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की ओर से अनुच्छेद 99 लागू करने के बाद शुक्रवार को यूएन सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक हुई थी.

अनुच्छेद 99 लागू होने के बाद ग़ज़ा में जारी इसराइली सैन्य कार्रवाई को रोकने के लिए सुरक्षा परिषद को वोटिंग के लिए मजबूर होना पड़ा.

संयुक्त अरब अमीरात ने यूएन सुरक्षा परिषद में युद्धविराम को लेकर प्रस्ताव रखा और इस पर वोटिंग हुई. इस प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद के 13 सदस्यों ने पक्ष में वोट किया लेकिन अमेरिका ने इसे वीटो कर दिया.

इस वोटिंग से ब्रिटेन बाहर रहा था लेकिन अमेरिका वीटो नहीं करता तो उसके बाहर रहने से भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

वीटो के पक्ष में तर्क देते हुए संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के उपराजदूत रॉबर्ट आर वुड ने कहा था, ”युद्धविराम के प्रस्ताव में जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया था, उसमें सात अक्टूबर को इसराइल के भीतर हमास के हमले की निंदा नहीं की गई थी. ख़ास कर इसराइली नागरिकों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा जैसी रिपोर्ट आई है, उसका भी ज़िक्र नहीं था. प्रस्ताव में इस बात का भी ज़िक्र होना चाहिए था कि इसराइल के पास आत्मरक्षा का अधिकार है.”

50 साल पहले इसराइल को लगता था कि कोई उस पर हमला नहीं करेगा और इसी तरह अमेरिका को लगता था कि अरब देश तेल की आपूर्ति नहीं रोकेंगे. मगर ये दोनों बातें हुईं.

क़तर के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ अरब देशों के विदेश मंत्रियों से समूह ने कहा कि अमेरिका को इसराइल के मामले में व्यापक भूमिका निभानी चाहिए.

वहीं सऊदी अरब के विदेश मंत्री प्रिंस फ़ैसल बिन फ़रहान ने शुक्रवार को वॉशिंगटन में कहा था, ”हम जिस प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते थे, वो नाकाम हो गया है क्योंकि इसके इस्तेमाल से परहेज़ कर रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पास अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने के पर्याप्त मौक़े थे. अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता के लिए ज़रूरी है कि वैश्विक संगठन अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें. हम एक ऐसी स्थिति देख रहे हैं, जिसमें युद्धविराम कोई गंदा शब्द बना गया है. सच कहिए तो हम इसे समझने में नाकाम रहे हैं.”

अमेरिका के वीटो को लेकर ओमान के विदेश मंत्री बद्र अल्बुसइदी ने तो बहुत ही कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया.

ओमानी विदेश मंत्री ने ट्वीट कर कहा, ”सुरक्षा परिषद में वीटो का इस्तेमाल मानवीय मूल्यों का शर्मनाक अपमान है. मुझे अमेरिका को लेकर गहरा अफ़सोस है कि यहूदीवाद के लिए निर्दोष नागरिकों की जान ली जा रही है. आज के दिन के इस वीटो को इतिहास में एक शर्म के रूप में देखा जाएगा.”

ओमान के विदेश मंत्री की इस प्रतिक्रिया पर थिंक टैंक क्विंसी इंस्टिट्यूट के वाइस प्रेसिडेंट तृता पार्सी ने लिखा है, ”संयुक्त राष्ट्र में युद्धविराम पर बाइडन के वीटो पर ओमानी विदेश मंत्री ने बहुत ही सख़्त शब्द का इस्तेमाल किया है. ओमान अमेरिका का क़रीबी साझेदार रहा है. बाइडन इसराइल के लिए अपने अच्छे दोस्तों को भी अलग-थलग कर रहे हैं.”

हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि इसराइल के मामले में इस्लामिक देश चाहे जिनती नाराज़गी दिखा लें लेकिन वो कुछ ख़ास कर नहीं पाएंगे.

हालात 1973 के अरब-इसराइल युद्ध से अलग हैं, जब अरब देशों ने तेल की सप्लाई रोक दी थी.

1973 में अरब-इसराइल युद्ध के बाद से लगे अरब देशों के तेल प्रतिबंध के बाद ही अमेरिका ने तेल सप्लाई के वैकल्पिक स्रोत तलाशने शुरू कर दिए थे.

जहां तक इसराइल का सवाल है तो हमास से इसका युद्ध जारी रहा और इसमें दूसरे अरब देश शामिल हुए तो उसकी स्थिति नाज़ुक हो सकती है. क्योंकि हमले में इसराइल के वो बंदरगाह निशाने पर रहेंगे, जहाँ उसके आयातित तेल टैंकर आते हैं.

  सोर्स :-“BBC  न्यूज़ हिंदी”                                  

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