• May 9, 2024 9:58 am

छत्तीसगढ़ में बायोगैस संयंत्र की कमान संभाल रहीं महिलाएं, रोशन हो रहे घर और भर रही झोली

23 फ़रवरी 2023 | छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के दूरस्थ वनग्राम जुहली की महिलाओं ने परंपरागत बिजली स्रोत को बढ़ावा देने के लिए बायोगैस संयंत्र की स्थापना की है। महिलाएं घरों तक बिजली पहुंचाने का काम भी कर रही हैं।

इस काम के एवज में आर्थिक रूप से समृद्ध भी हो रही हैं। खास बात यह है कि ग्रामीणों की बिजली से निर्भरता कम हो रही है। केंद्र सरकार की योजना की एक अनूठी तस्वीर उभरकर सामने आई है।

केंद्र सरकार की राष्ट्रीय बायोगैस योजना से जिले के दूरस्थ वन ग्राम जुहली बायोगैस से रोशन हो रहा है। यहां 10-10 घनमीटर के दो बायोगैस संयंत्र की स्थापना की गई है। दोनों संयंत्र की कमान महिलाओं के हाथों में है।

वे सुबह गोबर इकठ्ठा करती हैं और संयंत्र में डालती हैं। दोनों संयंत्रों से पर्याप्त बिजली बन रही है। इसके जरिए बायोगैस से घर में महिलाएं भोजन भी पका रही हैं। गैस आपूर्ति के लिए महिला समूह ने कीमत भी तय कर दी है।

प्रति महीने एक घर से बायोगैस आपूर्ति के एवज में 100 स्र्पये लिए जा रहे हैं। प्रथम चरण में 75 घरों में बायोगैस का कनेक्शन दिया गया है। संयंत्र से मेन पाइप लाइन के जरिए घरों में कनेक्शन देने के लिए सर्विस लाइन बिछाई गई है।

इसके जरिए लोगों को गैस की आपूर्ति की जा रही है। संयंत्र का रखरखाव से लेकर संचालन का काम गांव की महिलाएं कर रही हैं। केंद्र सरकार की इस योजना के जरिए ग्रामीणों की पारंपरिक ऊर्जा से निर्भरता खत्म हो रही है। वहीं स्व सहायता समूह की महिलाएं स्वावलंबी भी बन रही हैं।

गोबर से बना रहीं गोकाष्ठ

आदिवासी बहुल गांव जुहली में केंद्र सरकार की योजना के जरिए आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की कहानी लिख रही महिलाएं बायोगैस संयंत्र से निकलने वाले बायो प्रोडक्ट का उपयोग खाद के रूप में कर रही हैं। इससे वर्मी कंपोस्ट का निर्माण कर रहा है। साथ ही पैकेजिंग भी कर रही हैं।

इसमें एक किलोग्राम से लेकर पांच किलोग्राम का पैकेट तैयार कर बाजार में बिक्री की जाती है। घरों में गार्डन विकसित करने वाले या फिर सरकारी कार्यालयों में विकसित गार्डन में बायो प्रोडक्ट से बनी खाद का उपयोग कर रहे हैं। इसकी अच्छी खासी मांग भी है।

ये भी हैं विशेषताएं

बायोगैस पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती है। लिहाजा यह पर्यावरण के अनुकूल ईंधन है। ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है। मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण को कम करता है। साथ ही जैविक खाद का उत्पादन भी होता है। यह ऊर्जा उत्पादन की कम लागत वाली विधि है, इसलिए यह आर्थिक रूप से भी अनुकूल है।

वनांचल ग्राम जुहली में महिला स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की तस्वीर नजर आ रही है। यहां के महिला समूह द्वारा बायोगैस संयंत्र का संचालन किया जा रहा है। साथ ही महिलाएं गैस की आपूर्ति और रखरखाव को लेकर विशेष ध्यान दे रही हैं। गांव की अन्य महिलाओं को गोबर से अन्य उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण भी दे रही हैं। – जयश्री जैन-सीईओ, जिला पंचायत बिलासपुर

सोर्स :– ” जागरण ”   

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