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10 मीटर एयर राइफल में दुनिया की नंबर 1 शूटर जिन्हें शूटिंग में मिलती हैं शांति

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Feb 6, 2021
10 मीटर एयर राइफल में दुनिया की नंबर 1 शूटर जिन्हें शूटिंग में मिलती हैं शांति

दुनिया की नंबर एक 10 मीटर एयर राइफल शूटर इलावेनिल वलारिवन एक ऐसे परिवार से आती हैं जहां शिक्षा पर ध्यान दिया जाता था लेकिन खेल पर नहीं.

उनके माता-पिता, दोनों ही शिक्षाविद हैं. लेकिन वलारिवन को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने से किसी ने रोका नहीं और परिवार से प्रोत्साहन मिलता रहा.

वो कहती हैं कि उनके माता-पिता ने न केवल खेल के प्रति उनके जुनून का पूरी तरह से समर्थन किया, बल्कि कभी भी पढ़ाई को लेकर दबाव नहीं डाला.

वलारिवन ने अब तक अंतरराष्ट्रीय शूटिंग स्पोर्ट फेडरेशन (आइएसएसएफ) द्वारा आयोजित टूर्नामेंट में सात स्वर्ण पदक, एक रजत और एक कांस्य जीत चुकी हैं.

उन्होंने सिडनी में 2018 जूनियर विश्व कप में नया विश्व रिकॉर्ड बनाकर पहली बड़ी अंतरराष्ट्रीय सफलता हासिल की थी.

वलारिवन के लिए वो जीत बहुत ख़ास है क्योंकि परिस्थितियां उनके ख़िलाफ़ थीं. वह मैच से एक दिन पहले ही सिडनी पहुंची थीं. जेट लैग तो था ही, उनके पांव में चोट के कारण सूजन भी थी.

एक साल बाद वलारिवन ने रियो डी जनेरियो में आईएसएसएफ विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद, उन्होंने साल 2019 में चीन में आईएसएसएफ विश्व कप फाइनल में स्वर्ण पदक जीता. लगातार मिलती जीत ने उन्हें दुनिया की नंबर 1 खिलाड़ी बना दिया.

वह कहती हैं कि पहले पायदान पर पहुंचने के बाद लोगों की उनसे उम्मीदें स्वाभाविक रूप से बढ़ गई हैं. हालांकि उनका कहना है कि इसका असर उनके खेल पर नहीं पड़ा है.

शीर्ष तक पहुंचने का सफ़र
शुरुआत में, वलारिवन को ट्रैक-एंड-फील्ड इवेंट्स में ज़्यादा रुचि थी. शूटिंग में हाथ आज़माने का सुझाव उनके पिता ने दिया था. उन्होंने उनकी सलाह मानी, वो कहती हैं कि शूटिंग ने उन्हें शांति का अनुभव कराया.

वलारिवन ख़ुद को एक बेचैन व्यक्तित्व वाला मानती हैं और शूटिंग करने के लिए उन्हें अपने अंदर कई बदलाव लाने पड़े.

शूटिंग के लिए बहुत अधिक ध्यान और धैर्य की आवश्यकता होती है, इसलिए वालारिवन को खेल के मानसिक पहलुओं पर काम करना पड़ा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वो मैच से पहले दिमागी तौर पर तैयार रहें.

ट्रेनिंग के शुरुआती दिनों में ही वलारिवन ने अपनी योग्यता और प्रतिभा का प्रदर्शन किया जिसके कारण पूर्व भारतीय निशानेबाज़ गगन नारंग का ध्यान उनकी तरफ़ आकर्षित हुआ. उन्होंने वलारिवन की मदद करने का फैसला किया.

वलारिवन ने 2014 में एक ज़िला स्तरीय स्पोर्ट्स स्कूल में पेशेवर प्रशिक्षण शुरू किया जिसकी गगन नारंग स्पोर्ट्स प्रमोशन फाउंडेशन के साथ साझेदारी थी.

शीर्ष पर बने रहना
प्रशिक्षण में शुरुआती कठिनाइयों को याद करते हुए, ये युवा निशानेबाज़ कहती हैं कि वो एक मैनुअल शूटिंग रेंज में अभ्यास करती थीं जिसे हर दिन बनाना और अभ्यास के बाद हटाना होता था.

वहां, उनकी कोच नेहा चौहान थीं, साथ ही नारंग भी 2017 तक उनका मार्गदर्शन करते रहे. उनका कहना है कि नारंग के मार्गदर्शन ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने में काफ़ी मदद की.

वो स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ गुजरात और स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एसएआई) की मदद के लिए भी शुक्रग़ुज़ार हैं.

दूसरे कई खिलाड़ियों से अलग वलारिवन एसएआई और खेल से जुड़ी दूसरी संस्थाओं की तारीफ़ करती हैं. उनका कहना है कि 2017 में जब वो नेशनल स्कॉवड से जुड़ी थीं, तब से लेकर अबतक बहुत बदलाव आए हैं, सुविधाएं बेहतर हुई हैं.

वलारिवन तमाम लोगों की उम्मीदों पर ख़रा उतरना चाहती हैं. उनका लक्ष्य है, टोक्यो ओलंपिक में मेडल हासिल करना.

BBC

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