भारत ने शुक्रवार को चीन के साथ 11 वें दौर की सैन्य वार्ता में पूर्वी लद्दाख के हॉट स्प्रिंग, गोगरा और देपसांग जैसे गतिरोध वाले शेष हिस्सों से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया को जल्द आगे बढ़ाने पर जोर दिया. रक्षा मंत्रालय ने कहा कि भारत-चीन कोर कमांडर स्तर की 11वीं बैठक 09 अप्रैल को चुशुल-मोल्दो सीमा बैठक स्थल पर आयोजित की गई थी. दोनों पक्षों ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ विघटन से संबंधित शेष मुद्दों के समाधान के लिए विचारों का विस्तृत आदान-प्रदान किया.
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि दोनों पक्षों ने मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार एक तत्काल प्रभाव से बचे हुए मुद्दों को हल करने की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की. इसके साथ ही यह रेखांकित किया गया था कि अन्य क्षेत्रों में असंगति को पूरा करने के लिए 2 पक्षों के लिए बलों की वृद्धि पर विचार करने का मार्ग प्रशस्त होगा और द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति सुनिश्चित करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाएगा. 2 पक्षों ने सहमति व्यक्त की कि उनके नेताओं की आम सहमति से मार्गदर्शन लेना महत्वपूर्ण था, उनके संचार को जारी रखें और जल्द से जल्द शेष मुद्दों के पारस्परिक स्वीकार्य समाधान की दिशा में काम करें.
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि वे संयुक्त रूप से जमीन पर स्थिरता बनाए रखने, किसी भी नई घटनाओं से बचने और सीमा क्षेत्रों में संयुक्त रूप से शांति बनाए रखने के लिए सहमत हुए.फरवरी में हुई थी 10वें दौर की वार्ता
दसवें दौर की सैन्य वार्ता 20 फरवरी को हुई थी. इससे दो दिन पहले दोनों देशों की सेनाएं पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों से अपने-अपने सैनिक और हथियारों को पीछे हटाने पर राजी हुईं थीं. वह वार्ता करीब 16 घंटे चली थी. शुक्रवार को शुरू हुई वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई लेह स्थित 14 वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन ने की.
पिछले महीने थल सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने कहा था कि पैंगोग झील के आसपास के इलाके से सैनिकों के पीछे हटने से भारत को खतरा ”कम” तो हुआ है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुआ.
भारत और चीन की सेनाओं के बीच पिछले साल पैंगोंग झील के आसपास हुई हिंसक झड़प के चलते गतिरोध पैदा हो गया, जिसके बाद दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे अपने हजारों सैनिकों की उस इलाके में तैनाती की थी. कई दौर की सैन्य और राजनयिक स्तर की वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने फरवरी में पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से से सैनिकों और हथियारों को पूरी तरह पीछे हटाने पर सहमति जतायी थी.