भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव कम होता नहीं दिख रहा है. इसी बीच अब भारत ने चीन पर सख्ती करते हुए प्रतिबंधों की दूसरी किस्त लगा दी है. अब चीन से आने वाले वीजा आवेदनों की ज्यादा जांच पड़ताल की जाएगी.
भारतीय विदेश मंत्रालय को बताया गया है कि चीनी व्यापारियों, अकादमिक जगत के लोगों, इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स और एडवोकेसी ग्रुप को वीजा पाने के लिए एक सिक्योरिटी क्लियरेंस लेना होगा. ये बात मंत्रालय से जुड़े किसी अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताई है. ये उसी तरह के कदम हैं जो पाकिस्तान के केस में लागू किए गए थे
चीनी संस्थानों के साथ करारों को कम किया जाएगा
अधिकारियों ने ये भी बताया है कि भारतीय यूनिवर्सिटीज के चीनी संस्थानों से टाइ-अप को काफी घटाया जाएगा. भारत और चीन के बीच साइन किए गए उन 54 मेमोरंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग को सरकार रिव्यू करने वाली है जिसमें एजुकेशनल संस्थान जैसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और दूसरे और संस्थान जो चीनी केंद्रीय भाषा विभाग (हानबान) से संबंधित हैं.
मंदारिन भाषा पर चलने वाले कोर्स को छोड़कर बाकी सभी चीनी संस्थानों का साथ करारों को खत्म किया जाएगा. ऐसा मानना है कि ये संस्थान पॉलिसी मेकर्स, थिंक टैंक, पॉलिटिकल पार्टी, कॉरपोरेट को प्रभावित करता है.
विदेश मंत्रालय ने टाइम्स ऑफ इंडिया के सवालों का जवाब नहीं दिया है.
वॉशिंगटन स्थित ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो तानी मदान ने बताया कि ‘पिछले हफ्तों में ये और इसके अलावा कई फैसले किए गए हैं जिससे कि भारत की चीन के ऊपर निर्भरता कम हो और भारत के अलग-अलग सेक्टर्स से चीनी संस्थानों का सीधा संपर्क कम हो.’
न्यू एजुकेशन पॉलिसी में भी चीनी भाषा का नहीं था जिक्र
न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 के पैरा 4.20 में कुछ विदेशी भाषाओं के नाम उदाहरण के तौर पर दिए थे. खास बात ये रही थी कि इसमें चीनी भाषा का जिक्र नहीं किया गया. वहीं 2019 में न्यू एजुकेशन पॉलिसी का जो ड्राफ्ट आया था उसमें बाकी भाषाओं जैसे फ्रेंच, जर्मन, जापानी, स्पेनिश के साथ चीनी भाषा का भी जिक्र किया गया था.