इंसान के साथ घटित घटना उसके जीवन पर असर डालती है। कुछ लोग घटना से प्रेरित होकर अन्य लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन जाते हैं। गाजियाबाद के लोनी में रहने वाले बुजुर्ग एएम डोबरियाल के साथ हुए वाक्या ने उनके जीवन का अंदाज ही बदल दिया। एयर इंडिया से सेवानिवृत डोबरियाल बीते कई वर्षों से अपने मकान की छत पर खेती करते हैं। जिसका कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी अनुसरण किया है। उनका कहना है कि मुझे दौलत से क्या, सांस चाहिए जीने को, हरी भरी हो वसुंधरा, पीने को पानी चाहिए।
नौकरी के चलते छोड़ा घर
मूल रूप से पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड के रहने वाले आनंद मणि डोबरियाल ने एयर इंडिया में वरिष्ठ पर्यवेक्षक के पद पर नौकरी के चलते 1988 में उत्तराखंड छोड़ दिया।
वह परिवार के साथ रामेश्वर पार्क कालोनी में घर बनाकर जीवन शुरू किया। उस समय कालोनी में अधिक मकान नहीं थे। चारो ओर खेती और हरियाली थी। उन्हें यहां का माहौल अपने गांव जैसा लगा। समय बीता और चारोंं ओर मकान और इमारतें बन गईं। जिसपर उन्हें गांव के हरियाली भरे माहौल की कमी महसूस खलने लगी।
कूकर में नहीं बनी लौकी की सब्जी
एएम डोबरियाल ने बताया कि वर्ष 2008 में वह एक शाम को मंडी से सब्जी लेकर आए। पत्नी लौकी की सब्जी बनाने लगी। कूकर में सात सीटी आने के बावजूद लौकी नहीं गली। तब वह घर के बाहर दोस्तों के साथ बैठे थे। लौकी न गलने की बात को सार्वजिनक की तो कुछ दोस्तों ने बताया कि इंजेक्शन लगी सब्जियां आ रही हैं। कई बार सब्जियां सीटी लगाने से भी नहीं गलती। इसके बाद डोबरियाल को लगा कि उनके और परिवार के स्वास्थ्य से खिलवाड़ हो रहा है। उन्होंने मकान की छत पर खेती शुरू की। बीते 12 साल से वह छत पर ही लौकी, काशीफल, तुरई, खीरा, ककड़ी, लौकी, टमाटर, चुकंदर, मूली आदि सब्जियां उगा रहे हैं। मकान की छत पर 12 फीट लम्बी, चार फीट चैड़ी, एक फिट गहरी क्यारी बनाई। जमीन की 18 फिट गहरी खुदाई कर वहां से निकली मिट्टी क्यारी में डाली। साथ ही जैविक खाद का प्रयोग करते हैं। वह बताते हैं कि बीते 12 साल में उन्होंने बाजार से सब्जी नहीं खरीदी है।
पौधों में बीमारियों का इलाज
वह उत्तराखंड से ऐसे बीज लाकर अपनी छत पर उगाते हैं जो अनेक बीमारियों में भी काम आते हैं। कुछ समय पूर्व उन्होंने मडुवे की खेती की थी। उनका कहना है कि मडुवे के आटे की रोटी खाने से डायबिटीज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में रहता है। बाजार में मिलने वाली ग्रीन टी का पेड़ लगाया हुआ है। जो कई बीमारियों में काम आता है। उनका कहना है कि छत पर खेती से सब्जियां तो मिलती ही हैं। हरियाली से वातारण भी शुद्ध रहता है।
सीखने सीखने आते हैं स्कूल और विश्वविद्यालय के छात्र
डोबरियाल लोनी में खेती वाले अंकल के नाम से प्रसिद्ध हैं। आसपास के सभी बड़े स्कूल छात्रों को जैविक खेती दिखाने लाते हैं। इतना ही नहीं कई कृषि विश्वविद्यालय के छात्र भी उनके द्वारा बनाई क्यारी में उगी सब्जियों को देखकर जा चुके हैं। डोबरियाल के परिवार में पत्नी, बेटे भूषण, संजय और बहू पिंकी हैं। उन्हें खेती में परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है। उनकी गैर मौजूदगी में परिवार के सभी सदस्य खेती का पूरा ध्यान रखते हैं।