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हिटलर की बमबारी में बर्बाद हुआ था प्राचीन जीवाश्म, अब ऐसे लौट आया 19 करोड़ साल पुराना ‘समुद्री राक्षस’

05 नवंबर 2022|   एक प्रचीन समुद्री सरीसृप का पहला पूर्ण कंकाल 1941 में लंदन में बमबारी में नष्ट हो गया था। माना जा रहा था कि ये बहुमूल्य कंकाल हमेशा के लिए इंसानों की पहुंच से दूर हो गया है। लेकिन अब एक अनोखे तरीके से कंकाल का पता वैज्ञानिकों को चला है। जीवाश्म वैज्ञानिक मैरी एनिंग ने 1818 में इचिथ्योसौर (Ichthyosaur) का जीवाश्म खोजा था। इससे दो दशक पहले डायनासोर शब्द हमारे शब्दकोष का भी हिस्सा था। प्राचीन समुद्री सरीसृप इचिथ्योसौर को मछली छिपकली का नाम मिला। ऐसा इसलिए क्योंकि ये अजीब दिखने वाला जीव दोनों के बीच का एक क्रॉस था।

एनिंग को जो जीवाश्म मिला था वो 19 करोड़ से 19.5 करोड़ वर्ष पुराना था। मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के जीवाश्म वैज्ञानिक डॉ. डीन लोमैक्स ने कहा, ‘उस समय तक किसी भी प्रागैतिहासिक (Prehistoric) सरीसृप जीवाश्म का पहला पूर्ण कंकाल होना इसे और भी खास बना देता था।’ इस जीवाश्म की वास्तविक हड्डियां तो बहुत पहले बर्बाद हो चुकी हैं, लेकिन अब एक बार फिर ऐसा मौका मिला है, जिससे जीवाश्म को फिर से जीवित किया जा सकता है।

ऐसे खोजा गया था जीवाश्म
कंकाल के दो प्लास्टर ऑफ पेरिस के कास्ट बनाए गए थे, लेकिन उनका कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं किया गया था। ये कास्ट तब तक पहुंच से दूर थे जब तक हाल ही में उन्हें वैज्ञानिकों ने गलती से नहीं खोज निकाला। एनिंग इंग्लैंड के लाइम रेजिस में बड़े हुए, जो अब यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट का हिस्सा है। यहां आज भी जीवाश्म मिलते रहते हैं। एनिंग और उनके बड़े भाई जोसेफ ने इस जीवाश्म को खोजा। 1819 में ब्रिटिश सर्जन सर एडवर्ड होम ने इसका अध्ययन किया और इससे जुड़े निष्कर्ष को प्रकाशित किया। स्थानीय लोगों ने इसे एक राक्षस और वैज्ञानिकों ने एक मगरमच्छ समझा। 1820 में लेफ्टिनेंट कर्नल थॉमस जेम्स ने एनिंग को वित्तीय सहायता देने के लिए इसे रॉयल कॉलेज ऑफ सर्जन को बेच दिया। माना जाता है कि दूसरे विश्युद्ध तक ये यहीं मौजूद था।

जीवाश्म की दोबारा कैसे हुई खोज
डीन लोमैक्स और ब्रॉकपोर्ट में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर जूडी मासारे ने 2016 में येल यूनिवर्सिटी में पीबॉडी म्यूज़ियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री में एक रिसर्च ट्रिप के दौरान पहली बार कास्ट को खोजा। म्यूजियन के सहायक डैनियल ब्रिंकमैन ने एक बयान में कहा, ‘पीबॉडी क्यूरेटोरियल स्टाफ को लगता था कि ये मूल जीवाश्म है। उन्हें इसका पता ही नहीं था कि ये एक प्लास्टर कास्ट है।’ स्टाफ को ये पता था कि इसे येल के प्रोफेसर चार्ल्स शूचर्ट ने एक पेशेवर कलेक्टर से खरीदा था। 1930 में उन्हें इसे दान किया था, लेकिन इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था। लोमैक्स और मसारे ने जब 1819 के जीवाश्म चित्र के साथ इसकी तुलना की तो ये मैच हो गया। बाद में दोनों को ऐसा ही कास्ट 2019 में बर्लिन के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में मिला। बर्लिन में मिला कास्ट बेहतर स्थिति में था। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसके पीछे की असल वजह है कि दोनों को अलग-अलग समय में बनाया गया था।

सोर्स :- “नवभारतटाइम्स       

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