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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:कल्पनाओं का चिंतन शुद्ध व सकारात्मक होना चाहिए क्योंकि कल्पनाएं भी साकार होती हैं

09 मार्च 2022 |कहा जाता है नौकरी मन मारकर करना पड़ती है, व्यापार में धन पर नजर रखना पड़ती है, भक्ति में तन को साधना पड़ता है और परिवार में जन के साथ जीना पड़ता है। लेकिन, कई लोग यहां चूक जाते हैं। हम मनुष्यों को लगभग छह हजार साल हो गए खाना बनाना सीखे हुए, लेकिन अब तक भी जान नहीं पाए कि क्या खाना है, कैसे खाना है और कितना खाना है। बस, ये ही हाल नौकरी, व्यापार, भक्ति, परिवार इन सबके बीच हो जाता है।

इन क्षेत्रों में हमें जमाने की समझाइश दी जाती है, पर सब कपूर की तरह उड़ जाती है। योगी लोग कहते हैं योग में कल्पना का बड़ा महत्व होता है। आंखें बंद कर कुछ कल्पनाएं करना पड़ती हैं कि अब हम इस चक्र पर स्थित हो गए, हमने अपनी आत्मा को केंद्रित कर लिया। चूंकि चक्र का अपना प्रभाव होता है, उसकी तरंगें काम करती हैं, तो धीरे-धीरे कल्पना साकार होने लगती है और हम शांत होते चले जाते हैं।

तो कल्पना का एक प्रयोग अपने भौतिक जगत में भी कर सकते हैं। हमारी जो भी इच्छाएं, चाह या मांग हों उनको कल्पना बनाएं। उसका एक नाटकीय दृश्य तैयार करें, उसे बहुत ही एकीकृत-नियंत्रित करें और अपने किसी चक्र पर रख दें। परंतु ध्यान रखिए, यह चिंतन पूरी तरह शुद्ध व सकारात्मक होना चाहिए। फिर देखिए, चक्र आपकी मदद करेगा और धीरे-धीरे वह मानसिक दृश्य वास्तविक में बदल जाएगा।

Source;- ‘’दैनिक भास्कर’’

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