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अमनी में परंपरागत फसलों को बचाने का प्रयास शुरू

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Feb 24, 2021
अमनी में परंपरागत फसलों को बचाने का प्रयास शुरू

खगड़िया। फरकिया में फसलों की विविधता है। यहां कभी धान की 26 किस्में पाई जाती थी। जिनमें कई विलुप्त हो गई अथवा उसके कगार पर है। धान की ये किस्में यहां की मिट्टी-पानी के अनुकूल है। बीते कुछ वर्षों से परंपरागत फसलों व बीजों को बचाने की मुहिम शुरू हुई है। इसका धीरे-धीरे असर भी दिखाई पड़ने लगा है। किसान विकास ट्रस्ट कृषक किसान क्लब के माध्यम से परंपरागत बीजों को बचाने में लगे हुए हैं ताकि खेती-किसानी को मजबूती मिल सके। 20 गांवों के किसान इसको लेकर वर्ष 2006 से आब तक इस दिशा में काम कर रहे हैं। उन्हें बीच-बीच में किसान विकास ट्रस्ट का सहयोग मिलता है। समता स्वयंसेवी संगठन भी इस दिशा में सक्रिय है।

इस प्रयास से दुर्लभ बरोगर, लरमी, चौतिस, केलाचूर आदि धान आज भी फरकिया में उपजता है। बरोगर और लरमी पानी के साथ बढ़ता है। इसलिए बाढ़ इलाके के अनुकूल है। मुंगेरिया मक्का, सोना चिक्कर मक्का, खैरी, कोनी, मड़ुआ, अल्हुआ को भी वे बचा कर रखे हुए हैं। सोना-चिक्का मक्का काला और उजले रंग का होता है। इन फसलों की खेती लोग शौकिया ही कर रहे हैं, परंतु विलुप्त होने से बचाकर रखे हुए हैं। अमनी में हो रहा है बड़ा प्रयास

मानसी प्रखंड की बागमती नदी किनारे अवस्थित अमनी पंचायत में परंपरागत फसलों को बचाने का बड़ा प्रयास शुरू है। यहां के पूर्व मुखिया और प्रगतिशील किसान प्रमोद कुमार सिंह कहते हैं कि शुरुआती दौर में किसान विकास ट्रस्ट के प्रयास और प्रेरणा से यहां परंपरागत धान की किस्मों समेत मुंगेरिया मक्का (तुलबुलिया मक्का), खैरी, मड़ुआ आदि कि खेती हो रही है। अमनी के बिसरिया चौर और गौछारी चौर में बरोगर व लरमी धान की खेती 80 एकड़ में होती है। पंचायत में 15 एकड़ में मड़ुआ, सौ एकड़ में खैरी, सौ एकड़ के आसपास मुंगेरिया मक्का की खेती होती है। ”परंपरागत धान की किस्में” बरोगर और लरमी में खाद डालने की जरूरत नहीं है। यह पानी के हिसाब से बढ़ता है। बाढ़ क्षेत्र के अनुकूल है। अमनी में लगभग 80 एकड़ में इसकी खेती होती है। यहां के लोगों ने मुंगेरिया मक्का को भी बचाकर रखा है। मुंगेरिया मक्का की रोटी और भूजा स्वादिष्ट होता है। लोग शौकिया तौर पर ही सही लेकिन इसकी खेती कर रहे हैं।

प्रमोद कुमार सिंह, पूर्व मुखिया, अमनी ”फरकिया” के इलाके में महादलित समुदाय के कृषकों के साथ मिलकर परंपरागत कृषि को बचाने का प्रयास किया जा रहा है। इनके पास जोत के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, इसलिए उस अनुरूप खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्रेम कुमार वर्मा, सचिव, समता स्वयंसेवी संगठन, खगड़िया ”परंपरागत खेती” को बढ़ावा देने का प्रयास जारी है। पूरे बिहार में कृषि फार्म के माध्यम से मड़ुआ की बीज के उत्पादन का प्रयास हो रहा है।

मुकेश कुमार, उप निदेशक, भूमि संरक्षण, मुंगेर।

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