29 सितंबर 2022 | 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत के साथ हिंदुत्व को सियासी कामयाबी की कुंजी के तौर पर पहचान मिली। इसके बाद विधानसभा चुनावों में भाजपा ने इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल किया। भाजपा की लगातार जीत के बाद इसे सत्ता का सक्सेस मंत्रा मान लिया गया। कांग्रेस भी इसी राह पर चली। हालांकि, उसका रास्ता सॉफ्ट हिंदुत्व का था। पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी अध्यक्ष रहे राहुल गांधी की हिंदू छवि पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह तो हुई हिंदुत्व के रास्ते सत्ता तक पहुंचने की बात, लेकिन दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में हिंदुत्व की पैरोकारी से उलट हिंदू विरोध ही सत्ता की कुंजी बना हुआ है। इसे तफसील से समझने से पहले तमिलनाडु में सत्ताधारी पार्टी DMK के दो नेताओं के बयानों पर नजर डालते हैं…
DMK के दो बड़े नेताओं के ये बयान दिखाते हैं कि तमिलनाडु की राजनीति में धर्म और भाषा को लेकर विवाद एक बार फिर गहराने लगा है। दरअसल इसकी शुरुआत 1916 में ही हो गई थी, जब टीएम नायर और पी त्यागराज चेट्टी से द्रविड़ पॉलिटिक्स की शुरुआत की थी। इन दोनों नेताओं ने तमिलनाडु के निवासियों को द्रविड़ मानते हुए उन्हें उत्तर भारत में रहने वाले आर्यों से अलग कहा था।
तमिलनाडु को देश बनाने की मांग कश्मीर से भी पुरानी, पेरियार ने 1939 में मांगा था द्रविड़नाडु
तमिलनाडु में द्रविड़ों के नाम पर पॉलिटिक्स आजादी के पूर्व शुरू हुई थी। 1916 में पहली बार टीएम नायर और पी. त्यागराज चेट्टि ने जस्टिस पार्टी बनाई थी। 1925 में इरोड वेंकट रामास्वामी यानी ईवी रामास्वामी उर्फ पेरियार इस आंदोलन से जुड़े। पेरियार ने ही 1944 में जस्टिस पार्टी का नाम बदलकर द्रविड़ कड़गम बनाई।
1939 में पेरियार ने अलग देश की मांग को लेकर एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। 17 दिसंबर 1939 को अपनी स्पीच में उन्होंने द्रविड़ों के लिए द्रविड़नाडु का नारा दिया। पेरियार आर्य लोगों को आक्रमणकारी बताते थे। साथ ही कहते थे कि ब्राह्मणों के आने से ही तमिल सोसाइटी में विभाजन हुआ। तमिलनाडु को अलग देश बनाने की मुहिम के हर पहलू पर रोशनी डालता
तमिलनाडु में 55 साल सत्ता का फार्मूला द्रविड़ फैक्टर, 234 में 170 सीटों पर असर
तमिलनाडु की 234 विधानसभा सीटों में से करीब 170 सीटों पर द्रविड़ वोटरों का सीधा असर है। राज्य की दो प्रमुख पार्टियां DMK और AIDMK दोनों ही द्रविड़ियन कॉन्सेप्ट को लेकर चलती हैं। पिछली एक सदी में यह फैक्टर कितना मजबूत हो चुका है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 55 साल से तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति करने वाली पार्टियों DMK और AIADMK की ही सरकार है।
Source:-“दैनिक भास्कर”