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एमएस धोनी के रिटायरमेंट से क्रिकेट की दुनिया कितनी कमी हो गई है?

ByPrompt Times

Aug 17, 2020
एमएस धोनी के रिटायरमेंट से क्रिकेट की दुनिया कितनी कमी हो गई है?

जिन अनिश्चितताओं के चलते महेंद्र सिंह धोनी को रिटायर होने का फ़ैसला करना पड़ा उन्हें जल्द ही भुला दिया जाएगा. लेकिन, क्रिकेट के उनके लंबे करियर में उनकी निश्चितताओं और प्रदर्शन का गौरव याद रखा जाएगा.

क्या उन्हें पहले ही रिटायर हो जाना चाहिए था? या कम से कम उन्हें इस बारे में चीज़ें पहले ही स्पष्ट कर देनी चाहिए थी?

इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है. धोनी पर दूसरों के लिए चीज़ें आसान बनाने का कोई दबाव नहीं था, खासतौर ऐसे लोगों के लिए जिनका काम अपने करियर को करीने से सजाकर दूसरे बड़े कामों पर शिफ्ट हो जाना होता है.

यह मुमकिन है कि धोनी शायद आईपीएल खेलते रहें. वे इस टूर्नामेंट को पसंद करते हैं, वे अपनी पसंदीदा टीम के लिए खेलते हैं और जिसके फैन्स ने उन्हें कई गुना ज़्यादा प्यार उन्हें बदले में दिया है.

एक ऐसा शख़्स जो 90 टेस्ट, 350 वनडे और 98 टी20 मैच खेल चुका हो, उसकी कमी निश्चित तौर पर खलेगी.

इसके अलावा, वे देश के सबसे सफल कप्तान भी रहे हैं. वे भारत को पहली रैंकिंग पर ले गए और उन्होंने 28 साल बाद 2011 में वर्ल्ड कप जीतने वाली टीम की अगुवाई की. 2007 में उन्होंने टी20 वर्ल्ड कप जिताया जिसने आईपीएल की क्रांति की नींव रखी. इसके अलावा 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी जिताने का कारनामा भी उनके नाम ही दर्ज है.

सफ़ेद बॉल वाले क्रिकेट में वह दुनिया के महानतम खिलाड़ियों में एक गिने जाएंगे.

धोनी की कप्तानी

एक-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में उनकी 84 अजेय पारियां उनके औसत को 50 से ऊपर ले जाती हैं.

इस मामले में केवल रिकी पोंटिंग ही अपनी ऑस्ट्रेलिया को उनसे ज़्यादा जीतें दिलाने वाले कप्तान रहे हैं.

धोनी ने टी20 इंटरनेशनल मैचों में किसी भी दूसरे कप्तान के मुक़ाबले ज़्यादा जीतें हासिल की हैं.

सबसे ज़्यादा 60 टेस्ट मैचों में उन्होंने भारत की अगुवाई की है. और इस मामले में सबसे ज़्यादा सफल कप्तान के तौर पर हाल में ही विराट कोहली उनसे आगे निकले हैं.

भारतीय क्रिकेट पर धोनी की एक बड़ी छाप रहेगी और यह चीज़ केवल आंकड़ों पर आधारित नहीं है.

झारखंड के रांची से निकलकर भारतीय क्रिकेट की धुरी बने धोनी ने खुद से पिछले कप्तान सौरव गांगुली के शुरू किए गए काम को जारी रखा.

गांगुली ने क्रिकेट के गैर-पारंपरिक केंद्रों पर फ़ोकस किया और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी खोजे.

धोनी के एक कप्तान बनने की प्रक्रिया उस कड़ी का हिस्सा थी जिसकी शुरुआत महाराजों और नवाबों के साथ हुई थी. इस अभिजात्य वर्ग के बाद मध्य वर्ग के खिलाड़ी (अक्सर बैंकर) आए और इसके बाद छोटे कस्बों से टैलेंट का आना शुरू हुआ. इसससे इस पूरे खेल का विस्तार हुआ. इसी तरह से भारतीय समाज के आगे बढ़ने को भी समझा जा सकता है.

धोनी तब महज आठ साल के थे जब सचिन तेंदुलकर ने अपना पहला टेस्ट खेला था. तेंदुलकर के हाथ से जब कमान उन्हें मिली तो उसके चंद महीनों बाद तेंदुलकर ने कहा था, “मैं धोनी के खेल से खुश हूं. वे एक संतुलित शख़्स हैं और उनका दिमाग़ तेज़ है.”

धोनी को उनके सीनियरों ने आसानी से स्वीकार कर लिया. यह उनके अंदर मौजूद संभावनाओं और स्वच्छ व्यवहार को दिखाता है.

विकेटकीपिंग के अंदाज़ बदले

उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों से काफ़ी सीखा. राहुल द्रविड़ के नीचे उन्होंने 19 टेस्ट खेले और अनिल कुंबले के नीचे उन्होंने 10 टेस्ट खेले. कर्नाटक के इन दोनों ही क्रिकेटरों ने इस खेल में समझदारी, रणनीतिक पहलू और मानव प्रबंधन स्किल खड़ा किया था. धोनी ने एक बार कहा था, “मैं एक ऐसी टीम चाहता हूं जो कि एक सामने से आते ट्रक के सामने टिक सके.” और उन्होंने ठीक ऐसी ही टीम बनाने पर काम किया.

बतौर खिलाड़ी धोनी के बारे में ख़ास चीज़ यह थी कि उनमें आम खिलाड़ियों वाली बात नहीं थी. यह चीज़ उनके हक में काम आई.

भारत के पूर्व विकेटकीपर सैयद किरमानी ने कहा था कि एक विकेटकीपर के तौर पर धोनी में “किताब में लिखी मूल बातें” नहीं थीं. उन्होंने धोनी के अंगूठे की बजाय अपने एड़ियों पर खड़े होकर बॉल को पकड़ने की आदत की आलोचना भी की. हैलीकॉप्टर शॉट धोनी की ही देन और ख़ासियत थी.

उनका रिटायर होना एक खिलाड़ी और उनकी टीम दोनों के लिए एक मुश्किल चीज़ है.

सुनील गावस्कर के रिटायरमेंट के बाद पहले टेस्ट में भारत को वेस्ट इंडीज़ ने महज 75 रनों पर आउट कर दिया था और इस तरह से पांच विकेट से देश हार गया था.

इसके 19 टेस्ट बाद भारत की ओर से शतक लगाने वाली ओपनिंग पार्टनरशिप हुई थी. यह सिक्के का एक पहलू है.

सिक्के का दूसरा पहलू यह हैः अपनी आख़िरी टेस्ट पारी में जब तेंदुलकर का कैच स्लिप पर पकड़ा गया तब अगली ही गेंद पर एक नए बैट्समैन विराट कोहली ने चौका मार दिया था.

प्रतीकवाद से बचा नहीं जा सकता है. अंग्रेजी में कहते हैं द किंग इज डेड, लाँग लिव द किंग. इसका अर्थ यह है कि एक राजा की मौत हो गई है लेकिन उसी वक्त उसकी जगह लेने के लिए दूसरा राजा बिलकुल तैयार है.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह रहे धोनी इस बात को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं कि आज उनका उत्तराधिकारी मौजूद है.

समाज में बदलाव की झलक

वह भारतीय क्रिकेट को एक मजबूत स्थिति में छोड़कर रिटायर हो रहे हैं.

उन्हें बेहतरीन आत्म-नियंत्रण, मैच का रुख़ कभी भी बदलने की क़ाबिलियत रखने और बोलर्स को प्रोत्साहित करने के तरीकों के लिए याद रखा जाएगा. ख़ासतौर पर विकेट के पीछे से वे जिस तरह से स्पिनर्स को प्रोत्साहित करते थे वह हमेशा याद किया जाएगा.

उनके करियर के बाद के वक्त में कई दफ़ा ऐसा लगा कि जैसे उनकी आंखें उनके सिर के पीछे भी हैं जिनसे वे अपने पीछे बैट्समैन को स्टंप्स को देखे बगैर रनआउट कर देते थे. विकेटकीपिंग की उनकी कला बेहतरीन है.

15 सालों में धोनी ने 538 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले. 17,000 से ज़्यादा रन बनाए. उनका औसत 45 का रहा और स्ट्राइक रेट क़रीब 80 है. उन्होंने 634 कैच लिए और 195 स्टंपिंग की.

क्रिकेट के इतिहास में केवल पांच खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्होंने उनसे ज़्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं. इनमें से एक केवल एक विकेटकीपर था. इनमें से किसी ने भी धोनी जितने मैचों की अगुवाई नहीं की.

उनकी जगह भरना आसान नहीं होगा. लेकिन, धोनी की विरासत आंकड़ों से कहीं आगे जाती है और यह भारत के समाज के बदलाव को दिखाती है. उन्होंने देश की आबादी के एक बड़े हिस्से में आत्म-विश्वास पैदा किया.

















BBC

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